मंगलवार, 23 सितंबर 2025

गृहिणी का महत्व

गृहिणी का महत्व 

गृहिणी की महत्ता बताते हुए महर्षि वेदव्यास ने 'महाभारतम्' के शान्तिपर्व में कहा है -
      न गृहं गृहमित्याहुः गृहणी गृहमुच्यते।
     गृहं हि गृहिणीहीनं अरण्यं सदृशं मतम्॥
अर्थात् घर तो गृहणी के कारण ही घर कहलाता है। बिन गृहणी तो घर जंगल के समान होता है।
             ईट-पत्थरों से बना हुआ मकान तभी घर बनता है जब एक स्त्री उसे अपने तप और त्याग से उसे सजीव करती है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि एक घर सिर्फ एक इमारत नहीं होता है, बल्कि यह एक ऐसा स्थान है जहॉं प्यार, देखभाल और स्नेह होता है। यह सब एक गृहिणी के कारण ही सम्भव होता है। इसलिए एक गृहिणी अपने घर का दिल होती है, उसकी आत्मा होती है। वहीं घर की धुरी होती है। उसकी परिक्रमा घर के सदस्य करते रहते हैं।
              एक स्त्री जो अपने घर का सुचारु रूप से संचालन करती है और आने-जाने वाले मेहमानों का यथोचित स्वागत-सत्कार करती है, उसका यश दूर-दूर तक फैलता है। जिस पुरुष को ऐसी सौभाग्यशालिनी पत्नी मिल जाए उसका तो जन्म सफल हो जाता है। ऐसा घर स्वर्ग के समान होता है जहाँ पति-पत्नी में सामंजस्य होता है। उनके बच्चे सुसंस्कारी होते हैं। घर के सभी सदस्य एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हैं। घर के बड़े छोटों के सिर पर अपना वरद हस्त रखते हैं और छोटे अपने बड़ों के मान को बनाए रखते हैं। यह सभी सुस्थितियाँ किसी गृहिणी के अथक प्रयास का परिणाम होती हैं।
            यह सत्य है कि घर को सम्हालना पुरुष के बूते की बात नहीं। ईश्वर ने यह कार्य स्त्री को ही सौंपा है। उसका सुघड़ होना ही उसकी पहचान है। वह सदा अपने पति व बच्चों को बॉंधकर रखती है। उसके सुरुचिपूर्ण होने से घर में घुसते ही एक अलग ही तरह का अनुभव होता है। घर का हर कोना उसकी सुव्यवस्था से महकता हुआ दिखाई देता है। वह चाहे घर से बाहर जाकर कार्य करती हो या घर में ही रहने वाली गृहिणी हो। दोनों ही स्थितियों में वह घर के सभी दायित्वों को बिना परेशान हुए बखूबी निभाती है।
              बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि जिस घर में हमेशा कलह-क्लेश रहता है, उस घर के मटकों का पानी भी समाप्त हो जाता है। वहॉं बच्चे व बड़े सभी अपनी मनमानी करते हैं। कोई भी किसी की बात सुनने समझने के लिए तैयार ही नहीं होता। वहाँ पर रहने वाले सभी सदस्य नरक से भी बदतर जिन्दगी जीते हैं। ऐसे घर में घुसते ही वहाँ की अव्यवस्था को देखकर पलभर भी रुकने की इच्छा नहीं होती। ऐसा लगता है मानो अवॉंछित मेहमान बनकर अनजानी जगह पर आ गए हैं। इस माहौल को देखकर कोई भी व्यक्ति गृहिणी के बारे में अपनी धारणा बनाने में स्वतन्त्र होता हैं।
             एक सद्गृहिणी अपने कर्मानुसार ईश्वर प्रदत्त नेमतों से अपनी गृहस्थी को बहुत अच्छी तरह से चलाती है। अपनी सामर्थ्य के अनुसार जीवन व्यतीत करते हुए वह अनावश्यक गिला-शिकवा नहीं करती। मजबूरियों को वह अपनी राह का रोड़ा नहीं बनने देती। जो मिल गया उसी में सन्तोष करने की उसकी प्रवृति, उसे दूसरे लोगों से विशेष बना देती है। अपने घर में यदि रूखी-सूखी रोटी भी खानी पड़े तो किसी दूसरे को इसकी कानों-कान खबर नहीं लगने देती। यह उसकी अपनी सुव्यवस्था है कि वह अपने घर व आने वाले अतिथियों को उस स्थिति में भी बखूबी सम्हाल लेती है।
             एक समझदार गृहिणी वही है जो सभी आवश्यक खर्चों को करते हुए, जीवन की धूप-छाँव के लिए भी कुछ धन सुरक्षित रख लेती है। कभी घर-परिवार में कुछ ऊँच-नीच हो जाए तो उसका ढिंढोरा नही पीटती। न ही अपने माता-पिता को इन छोटी-छोटी बातों के लिए अनावश्यक परेशानी में डालती है। घर में बाहर से आने वालों को इस सब की भनक नहीं लगने दती है। सभी गृहिणियों को अपने प्यारे घर व बच्चों को नौकरों के हवाले न छोड़कर उनकी देखरेख का दायित्व स्वयं संभालना चाहिए। बच्चों को नौकरों के नहीं आपके संस्कारों की आवश्यकता होती है।
              एक गृहिणी के बारे में जितना लिखा जाए वह कम ही है क्योकि वही परिवार की धुरी है।विष्णु शर्मा विरचित 'पंचतन्त्रम्' में भी गृहिणी के विषय में इस प्रकार कहा है - 
           गृहं गृहमित्याहुर्गृहिणी गृहमुच्यते।
       गृहं तु गृहिणीहीनं कान्तारादतिरिच्यते॥
अर्थात् पंचतन्त्र के अनुसार जिस घर में गृहिणी न हो, वह घने जंगल से भी बदतर जगह है।
            यही एक सद्गृहिणी की महानता का प्रतीक है। उसके बिना घर बिल्कुल सूना लगता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो घर की आत्मा कहीं चली गई है। घर में बेशक सभी सदस्य विद्यमान हों परन्तु उसके बिना उस घर में रौनक नहीं होती।
चन्द्र प्रभा सूद 

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