रविवार, 21 सितंबर 2025

असत्य आचरण

असत्य आचरण

हम सब लोग असत्य या झूठ के सहारे अपना सारा जीवन व्यतीत करते हैं। सुनने में यह बात अटपटी अथवा अविश्वसनीय लग सकती है। यदि सचमुच हम गम्भीरतापूर्वक सोचेंगे तो हमें यह बात सत्य प्रतीत होगी। यह केवल चौंकाने वाली बात नहीं है। इस विषय पर हम लोगों को गम्भीरता से विचार करना चाहिए। इसके पीछे के कारणों को ढूँढकर उनको हमें ही दूर करना है। चलिए असत्य बोलने के कुछ कारणों पर आज हम चर्चा करते हैं। मुझे आशा ही नहीं बल्कि विश्वास है कि सभी सुधीजन मेरे विचारों से सहमत होंगे।
             यह सत्य है कि अपने घर-परिवार में प्रायः माता-पिता अपने बच्चों से उस समय झूठ बोलते हैं जब उन्हें कहीं लेकर नहीं जाना होता। बच्चे अपनी गलतियों को छुपाने के लिए अपने माता-पिता से झूठ बोलते हैं। पति अपनी पत्नी से झूठ बोलता है और पत्नी अपने पति से। मित्र अपने मित्र से झूठ बोलता रहता है। बच्चे गृहकार्य न करने पर अपने स्कूल में अध्यापकों से और घर में माता-पिता से झूठ बोलने में अपनी शान समझते हैं। घरों में काम करने वाली घरेलू सहायिकाऍं तो काम पर न आने के लिए अनावश्यक ही किसी को बीमार कर देती हैं या किसी की मृत्यु हो गई बता देती हैं।
            बॉस या मालिक अपने अधीनस्थों से झूठ बोलते हैं। उसी तरह अधीनस्थ कर्मचारी भी अपने मालिक से। जब कभी छुट्टी चाहिए होती है तो झूठा मेडिकल सर्टिफिकेट बनाकर भेज देते हैं। प्रायः धर्मगुरु अपनी शेखी बघारने के लिए अपने ही अनुयायियों से झूठ बोलकर उन्हें गुमराह करते हैं। व्यापारी, राजनेता आदि सभी महानुभाव इस असत्य के व्यापार में संलग्न हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि असत्य के व्यवहार में सभी लोग योग्यता प्राप्त करके उत्तीर्ण होना चाहते हैं।
              हम सभी जानते हैं कि असत्य बोलना बहुत गलत होता है। यह अविश्वास का मूल कारण है। इससे अपना मन अपवित्र होता है। सबसे मजे की बात यह है कि स्वयं असत्य का व्यवहार करने वाले दूसरों की झूठी बात को सुनकर बौखला जाते हैं। उन पर क्रोध करने लगते हैं। स्वयं को ईश्वर का सच्चा भक्त कहने वाले लोगों को तो कदापि असत्य भाषण नहीं करना चाहिए। 
              इस असत्य के व्यवहार के विषय में गहराई से सोचने की आवश्यकता है। हम सब लोग सोचकर बहुत ही प्रसन्न होते हैं कि फलाँ व्यक्ति को हमने मूर्ख या उल्लू बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लिया। परन्तु वास्तव में उसकी हानि होती है या नहीं परन्तु हमारे चारित्रिक पतन की शुरूआत अवश्य हो जाती है। असत्य भाषण से मनुष्य का कल्याण इस प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे आँधी आने से बड़े-बड़े वृक्ष नष्ट हो जाते हैं। योगशास्त्र का कहना है- शुरू
         असत्यवचनात् वैरविषादाप्रत्ययावय:।
    प्रादु:षन्ति न के दोषा: कुपथ्याद् व्याधयो यथा॥अर्थात् कुपथ्य सेवन से व्याधियाँ या रोग उत्पन्न होते हैं। असत्य बोलने से वैर-विषाद और अविश्वास आदि कौन से दोष हैं जो उत्पन्न नहीं होते। अर्थात् सभी दोष मनुष्य में आ जाते हैं।
               सत्यमेव जयते नानृतम्
हमारे ऋषियों ने हमें समझाया है कि अन्तत: सत्य की ही विजय होती है झूठ की नहीं। सत्य को चाहे सात परदों में छुपा लो फिर भी वह कस्तूरी की तरह अपनी सुगन्ध बिखेरता हुआ, मुस्कुराता हुआ हमारे समक्ष प्रकट हो जाता है। इसके विपरीत हींग को कितना ही मुल्लमा चढ़ा कर रख लिया जाए, वह अपनी दुर्गन्ध छोड़ ही देती है। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि उसी प्रकार चाशनी में डूबा हुआ असत्य भी समय आने पर स्वत: प्रकट हो ही जाता है। मनुष्य को तब शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ता है। अपनी नजरें चुरानी पड़ती हैं।
          सत्य खरे सोने की तरह होता है जिसकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ती। असत्य को हम चाहे कितना भी गोल्ड प्लेटेड कर लें, समय बीतने पर वह अपनी चमक खो देता है। उस समय असली और नकली का अन्तर समझ आ जाता है। तब फिर हम लोग नकली वस्तुओं के पीछे क्यों भागें? खरा सोना जब उपलब्ध है तो उसे ही खरीदकर अपनी पूँजी को बढ़ाने का यत्न करना चाहिए।
              असत्यवादी व्यक्ति की जब पोल खुलती है तब उसके सामने मृत्यु के समान बहुत ही कष्टदायी स्थितयाँ उत्पन्न हो जाती हैं। यह सबसे बड़ा अधर्म है जो जगत के पिता परमेश्वर को बिल्कुल पसन्द नहीं आता। 'वृहन्नारद पुराण' का यह मत है- 
      असत्यनिरतश्चैव ब्रह्म हा परिकीर्तित:।
अर्थात् असत्य में लगा हुआ व्यक्ति ब्रह्म का हत्यारा कहलाता है।
        वाल्मीकि रामायण में कहा गया है-
'असत्य भाषी व्यक्ति से लोग उसी प्रकार डरते हैं जैसे साँप से।'
        अपनी सुविधा या आदत के कारण चाहे बच्चा हो या कोई बड़ा व्यक्ति किसी के भी झूठ की सराहना नहीं की जा सकती। यह भी एक ऐसा रोग है जिससे छुटकारा पाना कठिन होता है। जिसने इस शत्रु को अपने वश में कर लिया वह संयमी महान बन जाता है।
चन्द्र प्रभा सूद 

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