शनिवार, 13 सितंबर 2025

हिन्दी के प्रति हीनता और उपेक्षा

हिन्दी के प्रति हीनता और उपेक्षा

अपने देश, वेष और भाषा से जिसको प्यार नहीं वह मनुष्य नहीं। अपने ही देश में हमारी मातृभाषा हिन्दी के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। बहुत वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी के बाद हमारे वीरों के बलिदान के फलस्वरूप हमारा देश तो स्वतन्त्र हो गया परन्तु फिर भी मानसिक रूप से हम आज तक परतन्त्र हैं।
           वैसे तो भारतीय संविधान में हिन्दी को मातृभाषा स्थान दिया गया है परन्तु वास्तविकता कुछ और ही है। हमारे देश को स्वतन्त्र हुए लगभग 75 वर्ष हो गए हैं लेकिन आज तक पूरे देश में हिन्दी भाषा को लागू नहीं किया जा सका। विचारणीय है कि हमारा भारत देश में हिन्दी भाषी लोगों का प्रतिशत अधिक है। बहुत दुर्भाग्य है हमारे देश का कि तुच्छ राजनैतिक स्वार्थों के कारण भाषा के नाम पर गाहे-बगाहे दंगा-फसाद तक होते रहते हैं। 
             अंग्रेजी भाषा आज भी हमारे दिलो दिमाग पर हावी है। सारे सरकारी, गैर सरकारी व वैधानिक कार्य जब अंग्रेजी भाषा में होते हैं, तो एम.एन.सीज जो बाहर से आई हैं उनको हम क्या कहें? 
            हर स्थान व क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा का ही वर्चस्व है। हिन्दी भाषा का व्यवहार करने वाले लोगों के साथ अपने ही देश में अछूतों की भाँति बर्ताव किया जाता है। उन्हें द्वितीय श्रेणी का नागरिक समझा जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दी भाषी लोग अपने ही देश में बेगाने हो गए हैं।
            इसी रवैये का परिणाम है पब्लिक स्कूल। इन स्कूलों में हिन्दी की दशा बहुत दयनीय है। कक्षा दशम तक भी हिन्दी अनिवार्य रूप से नहीं पढ़ाई जाती। वहाँ भी संस्कृत, जर्मन, फ्रैंच, उर्दू, जापानी, चायनीज आदि देशी-विदेशी भाषाएँ हिन्दी के विकल्प के रूप में विद्यार्थियों को दी जाती हैं।ग्यारहवीं कक्षा में साईंस, कामर्स, आर्टस आदि में से किसी एक स्ट्रीम को चुनना होता है इसलिए हिन्दी पढ़ने वाले बच्चे न के बराबर होते हैं। 
           मात्र प्रशासनिक पदों के आवेदन के लिए हिन्दी भाषा का कक्षा दशम की परीक्षा का प्रमाणपत्र होना अनिवार्य होता है। इसलिए दूसरी भाषा पढ़ने वाले कुछ ही बच्चे केवल दसवीं कक्षा की हिन्दी की बोर्ड में परीक्षा देते हैं।
             दुर्भाग्यपूर्ण है यह स्थिति कि घर में, विद्यालय में व मित्रों के साथ सारा दिन हिन्दी बोलने वालों को हिन्दी कठिन लगती है और अच्छी नहीं लगती। माता-पिता भी हिन्दी को हौव्वा बनकर रखते हैं। उनका भी यही कहना होता है- 'अरे भाई, हिन्दी तो बहुत मुश्किल है। जब हमें ही समझ में नहीं आती तो हम बच्चों को क्या कहें?'
          मिश्नरी स्कूलों में तो हिन्दी भाषा की स्थिति बहुत अधिक खराब है। कई स्कूलों में हिन्दी बोलने पर बच्चों को जुर्माना देना पड़ता है या सजा भुगतनी पड़ती है।
           यह तो है अपने ही देश में, अपनी मातृभाषा हिन्दी की दुर्दशा। समझ नहीं आता कि हिन्दी भाषा की इस दुर्दशा के दोषियों को कौन सजा देगा? जबकि विदेशों में हिन्दी भाषा की आवश्यकता को अनुभव किया जा रहा है और वहॉं के स्कूलों में इसे पढ़ाया जा रहा है।
            आधुनिक वैज्ञानिक युग में संस्कृत भाषा और हिन्दी भाषा को कमप्यूटर के लिए सर्वोत्तम भाषा माना गया है।
चन्द्र प्रभा सूद

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