बुधवार, 17 सितंबर 2025

शब्द ब्रह्म

शब्द ब्रह्म

हमारे भारतीय शास्त्र शब्द को ब्रह्म कहते हैं यानी ईश्वर का रूप मानते हैं। इससे भी अधिक बढ़कर 'ब्रह्मविद्योपनिषद' का कथन है- 
         यस्मिन्विलीयते शब्दस्तत्परं ब्रह्म गीयते।
         धियं हि लीयते ब्रह्म सोऽमृतत्वाय कल्पते।। अर्थात् जिस शब्द में लय होती है, उसे परब्रह्म कहा गया है। जो बुद्धि ब्रह्म में लीन हो जाती है, वह अमृत स्वरूप कही गई है।
           शब्द संस्कार होता है जिसकी अपनी एक पहचान होती है। हमें प्रयास यही करना चाहिए कि शब्द का उच्चारण शुद्ध किया जाए। इस बात को हम इस प्रकार कह भी सकते हैं कि शब्द का अशुद्ध उच्चारण सीधा-सीधा ईश्वर का अपमान है।
          शब्द को नाद भी कहते हैं जिसका ब्रह्म की तरह कोई आकार नहीं होता। वह भी उसकी तरह सर्वत्र व्यापक होता है। उस ध्वनि में व्यवधान पैदा करने का अर्थ होता है, वायुमण्डल की तंरगों को दूषित करना। यहाँ संगीत के सुरों की चर्चा कर सकते हैं जिनके साथ यदि छेड़छाड़ की जाए तो वे बेसुरा राग अलापते हैं। वे सुर इतने कर्णकटु होने लगते हैं कि हम उन्हें वहीं रोक देने के लिए शोर मचा देते हैं।
             इसी प्रकार भौतिक संसाधन टीवी, फ्रिज, किसी भी तरह की कोई गाड़ी, कोई भी मोटर आदि यदि स्वर यन्त्र की खराबी से भयानक शब्द करने लगें तो हम अनमने से हो जाते हैं। तब उसे वहीं बन्द करके सुधारने का प्रयत्न करते हैं। इसी प्रकार कनफोड़ू संगीत भी हमारी सहनशक्ति को झकझोर देता है। जब तक वह बन्द नहीं हो जाता या हम उससे दूर नहीं चले जाते बेचैन रहते हैं। यहाँ तो हम उनके सुधार का उपाय कर सकते हैं पर प्रदूषित वातावरण का सुधार तो नहीं कर सकते। मात्र भाषण देकर हम औपचारिकता का निर्वहण कर लेते हैं फिर बस अपना कार्य समाप्त हो गया समझ लेते हैं।
             सत्य यही है कि ब्रह्माण्ड में शब्द हमेशा विचरण करते रहते हैं। शब्दों का शुद्ध उच्चारण वातावरण को शुद्ध रखता है और अशुद्ध उच्चारण उसे प्रदूषित करता है। जिससे निश्चित ही हम सबकी अपनी हानि होती है। ब्रह्माण्ड में ये शब्द एक ध्वनि करते रहते हैं। 
           शब्द का अशुद्ध उच्चारण यदि किया जाता है तो वह कर्णकटु हो जाता है अथवा कानों को चुभता है। हम भारतीय वैसे भी मानते हैं कि यदि मन्त्र का उच्चारण अशुद्ध किया जाए तो वह सुफल देने के स्थान पर विनाश तक कर देता है। इसलिए मनीषी मन्त्रों के शुद्ध उच्चारण पर बल देते हैं। वैसे भी अशुद्ध शब्द सुनने से मन को पीड़ा होती हैं। उस समय ऐसा लगता है कि अशुद्ध बोलने वाले को किसी तरह से भगा दिया जाए।
           शब्द चमत्कार से भरा होता है। यह भावना को मूर्तरूप देकर साकार करता है। बोलते समय उचित शब्द का चयन करना भी किसी साधना से कम नहीं होता। गलत शब्द का प्रयोग दूसरे को मानसिक आघात व पीड़ा दे सकता है। इस प्रकार इसकी बड़ी ही विचित्र महिमा है। अर्थवान शब्द की अपार शक्ति होती है। परन्तु लोग अशुद्ध बोलते हैं और अशुद्ध ही लिखते हैं। ऐसा करने से कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है और लेने के देने पड़ जाते हैं। 
             एक उदाहरण देखते हैं। मान लो हमने किसी को जाने से रोकना है तो हम कहेंगे- 'रुको, मत जाओ।' परन्तु हमने कह दिया- 'रुको मत, जाओ।' तो हो गया झगड़ा। इसका अर्थ यह हुआ कि हमने उस व्यक्ति को रोकने के बजाय जाने के लिए कह दिया। महाकवि कालिदास विवाह से पूर्व महामूर्ख थे। विवाह के उपरान्त जब दोनों पति-पत्नी एक कमरे में बैठे हुए थे तो ऊँट की आवाज सुनकर उन्होंने उष्ट्र के स्थान पर उट्र कहा तो उनकी विदुषी पत्नी ने उन्हें अपने घर से बाहर निकाल दिया था।
           इस प्रकार हमारी छोटी-सी गलती के कारण बहुधा अपरिहार्य स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जब हमें न चाहते हुए भी मुँह छुपाना पड़ जाता है। कभी किसी के सामने झेंपना न पड़े इसीलिए शायद 'पहले तोलो फिर बोलो' उक्ति का प्रचलन हुआ होगा। इस उक्ति का बहुत गहरा भाव है। इसका सीधा-सा अर्थ हम यह कर सकते हैं कि अनर्गल प्रलाप नहीं करना चाहिए या अनावश्यक बोलने से बचना चाहिए। बहुत अधिक बोलना कभी-कभी व्यर्थ ही झगड़े का कारण बन जाता है।
           आजकल प्रचलन होता जा रहा है यह कहने का कि मैंने ऐसा नहीं कहा था पर मेरी बात को गलत समझ लिया गया। मेरी कही गई बात को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। हम हर दूसरे दिन टीवी पर देखते हैं या फिर समाचार पत्र में पढ़ते हैं। यह सब इसी दोषपूर्ण बोलचाल का ही परिणाम है। बाद में हम अपने पक्ष में सफाई देते फिरते हैं या क्षमा याचना करते रहते हैं। इस सारी फजीहत से बचने के लिए पहले ही सोचना चाहिए। सन्तुलित भाषा में अपनी बात को रखना चाहिए।
             वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि शब्द सौरमण्डल में विचरण करते रहते हैं। हमें अपने शब्दों का प्रयोग नापतोल कर करना चाहिए। यथासम्भव शब्द का शुद्ध उच्चारण करके वातावरण को दूषित होने से बचाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद 

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