मुखिया को निष्पक्ष होना चाहिए
घर हो, या देश हो या कोई संस्थान हो, वहॉं के मुखिया या Head को निष्पक्ष होना चाहिए। उसकी दृष्टि में सभी बराबर होने चाहिए। मुखिया कैसा होना चाहिए? इस विषय पर तुलसीदास जी ने कहा है-
मुखिया मुख सो चाहिए खानपान को एक।
पाले पैसे सकल अंग तुलसी सहित विवेक॥
अर्थात् इस दोहे में तुलसीदास जी का कहना है कि मुखिया को मुख के समान होना चाहिए। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि मुख में जब कोई खाद्य पदार्थ डाला जाता है तो वह खाने में कोई भेदभाव नहीं करता। अब चाहे वह खाना नमकीन, खट्टा, मीठा, तीखा, कसैला आदि किसी भी स्वाद का हो। वह सभी पदार्थों को एक ही प्रकार से बिना किसी झिकझिक के खाता है। उसी प्रकार एक ही प्रक्रिया से उन सबको पचने व शरीर के सम्पूर्ण अंगों को पुष्ट करने के लिए आगे भेज देता है।
इसी प्रकार मुखिया भी होना चाहिए। उसे किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। धर्म-जाति, रंग-रूप, अमीर-गरीब आदि के भेद को अनदेखा करते हुए सबको एक समान समझना चाहिए और सभी लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार करना चाहिए। अब प्रश्न यह उठता है कि मुखिया किसे कहते हैं? वह कौन होता है? उसके क्या कर्त्तव्य हैं? आदि।
इन प्रश्नों के उत्तर में हम कह सकते हैं कि मुखिया सबसे बड़े या प्रमुख को कहते हैं। अब वह किसी व्यापारिक संस्था, किसी आफिस का बास हो सकता है। किसी धार्मिक संस्था आदि का प्रधान हो सकता है। घर-परिवार में सबसे बड़ा सदस्य हो सकता है या फिर किसी देश का राष्ट्रपति अथवा प्रधानमन्त्री कोई भी हो सकता है।
व्यापारिक संस्था या किसी आफिस का मुखिया यानी मालिक या बास यदि अपने सभी कर्मचारियों के साथ मधुरता और सहृदयता का व्यवहार करता है, उनके घर-परिवार की जानकारी रखता है, उनके सुख-दुख में उनसे सहानुभूति रखता है तो वहाँ का माहौल बहुत ही सौहार्दपूर्ण होता है। सभी कर्मचारी अपनी क्षमता से भी बढ़कर अपने काम निपटाते हैं। वे किसी को शिकायत का मौका नहीं देते। फलस्वरूप ऐसी ही संस्थाएँ निरन्तर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ती हैं।
इसी प्रकार अन्य धार्मिक, समाजिक आदि संस्थाओं में प्रधान आदि के समतापूर्वक व्यवहार से कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न होते हैं। वहाँ पर सभी लोग मिलजुल कर संस्था को उन्नत करने का प्रयास करते हैं।
शिक्षण संस्थानों की सफलता भी वहाँ के मुखिया यानी प्रिंसिपल के व्यवहार पर निर्भर करता है। यह उसके हाथ में होता है कि संस्था को नम्बर वन बनाए ताकि उसकी धूम मच सके। अन्यथा संस्था के लोग उसके विरूद्ध हो जाते हैं और उस संस्थान की टी आर पी नित्य गिरने लगती है। ऐसे में लोग अपने बच्चों को वहॉं पर पढ़ने के लिए भेजने के लिए उत्साहित नहीं दिखाई देते।
घर-परिवार में यदि मुखिया छोटे-बड़े सभी सदस्यों के साथ समता का व्यवहार करेगा, सबको यथायोग्य सम्मान देगा तो उस घर में सौहार्द व सद्भावना का माहौल रहेगा। सबकी शक्ति मिलकर जब एक हो जाती है तो वहाँ सभी परेशानियाँ पलक झपकते दूर हो जाती हैं। ऐसे परिवारों में सुख, समृद्धि व शान्ति का साम्राज्य होता है जो सबको आह्लादित करता है। यदि मुखिया पक्षपात करेगा तो वहाँ नित झगड़े होने लगते। सम्बन्धों में दरारें आने लगती हैं और घर नरक के तुल्य हो जाता है। सभी सदस्य एक-दूसरे से कटने लगते हैं और फिर वहॉं छुपाव-दुराव की स्थितियॉं बनने लग जाती हैं। इससे मनों की दूरियॉं बढ़ती हैं।
किसी देश में राजा या राष्ट्रपति अथवा प्रधानमन्त्री जो भी कोई मुखिया है यदि वह अपने देशवासियों को एकसमान मानते हुए सबके लिए नीतियाँ और कानून बनाता है तो देश की भलाई होती है। वहाँ लूट- नहीं खसौट नहीं होती और न ही अराजकता का वातावरण होता है। शासक यदि सकारात्मक रुख अपनाएगा तो देश के लोग समृद्धि की ओर कदम बढ़ाते हैं। यही समृद्ध देश किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए सक्षम होता है। परन्तु यदि वह अपने प्रजाजनों के साथ भेदभाव करेगा तो लोगों में परस्पर में वैमनस्य बढ़ेगा, लोगों का आपस में एक-दूसरे पर विश्वास नहीं रहता और वहाँ अराजकता फैल जाती है। ऐसे देश पर कोई अन्य देश अपना आधिपत्य बहुत सरलता से कर लेता है।
कोई भी मुखिया जब निष्पक्ष होकर अपने अधीनस्थों के लिए सोचता है तो सबका दिल जीत लेता है। वह प्रिय बनकर सबके हृदयों पर राज करता है। तब सर्वत्र ही खुशियाँ खुश होकर दस्तक देती हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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