नींद की समस्या
नींद की समस्या आधुनिक युग की देन है। आजकल यह समस्या एक बहुत विकराल रूप धारण करती जा रही है। कभी यह कहा जाता था कि वृद्धावस्था में नींद न आने की समस्या हो जाती है। परन्तु आज के इस भौतिक युग की आपाधापी में सब लोग टेंशन में रहने लगे है। बड़े दुख की बात है कि बच्चों और युवाओं को भी यह बीमारी अपने जाल में जकड़ती जा रही है। हर व्यक्ति किसी न किसी कारण से परेशान रहता है। बहुत से लोग नींद की दवाई के अभ्यस्त होने लगे हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
प्रतिस्पर्धा के इस युग में बच्चों के ऊपर पढ़ाई का इतना अधिक प्रेशर होता जा रहा है कि बेचारे दिन-रात एक कर देते हैं। सौ प्रतिशत अंक लाने वाले बच्चों को भी अपने इच्छित कॉलेज में दाखिला मिल जाएगा अथवा मन पसन्द विषय मिल जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। बच्चों में होड़ लगी रहती है यह जानने के लिए कि कौन-सा बच्चा लगातार कितनी रातें पढ़ने के लिए जाग सकता है? यदि कम अंक आ जाएँ तो अपनी रुचि के विषय नहीं मिलते और न ही अपने मनपसंद कॉलेज में दाखिला भी मिलता है। कैरियर बिगड़ न जाए इस डर के कारण बच्चे रात-रात भर जागकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे रहते हैं।
युवा वर्ग की अपनी ही समस्याएँ हैं। जितने युवा एम. एन. सीज में नौकरी करते हैं, उनके काम-काज के घण्टों का कुछ पता नहीं रहता। वे दफ्तर तो समय पर जाते हैं और रात को उनके घर आने का कोई ठिकाना नहीं होता। वे आराम भी नहीं कर पाते और पूरी नींद लेने का समय भी उन बेचारों को नहीं मिलता। इन युवाओं के अतिरिक्त कुछ युवा ऐसे भी हैं जो नाइट ड्यूटी करते हैं और रात की नींद दिन में पूरी करने का यत्न करते हैं। डॉक्टर, टेलीफोन ऑपरेटर, शिफ्ट में काम करने वाले सब लोगों को अपनी नींद का बलिदान देना पड़ता है।
आजकल एक और नया प्रचलन हो गया है। शादी-ब्याह या पार्टियॉं देर रात तक चलती हैं। लेट नाइट पार्टियाँ, पब व क्लब से आधी रात लौटना, शादी-ब्याह के लिए दूर-दूर जाने के कारण लेट होना भी नींद के न आने के कुछ प्रमुख कारण हैं। व्यवसायी सेल्स टैक्स, इन्कम टैक्स, सर्विस टैक्स, वैट, फेरा आदि कानूनी पेचों में घिरे हुए परेशान होते हैं। इस कारण ही उनकी रातों की नींद हराम हो जाती है। अस्वस्थ होने की स्थिति में भी नींद की समस्या हो जाना स्वाभाविक होता है। उस समय नींद समय-असमय आती है। अतः वे रोगी होकर परेशान रहते हैं।
डॉक्टरों के अनुसार बच्चों को प्रतिदिन आठ घण्टे गहरी नींद (sound sleep) में सोना चाहिए और प्रौढ़ों एवं वृद्धों के लिए छह घण्टे की नींद आवश्यक है। यदि नींद बिना बाधा के आए तो मनुष्य प्रातः तरोताजा व प्रसन्न दिखाई देते हैं। वैसे तो दिन में सोना और रात में जागना एक प्रकार से रोग ही होता है। इसी तरह रात को देर से सोना और सवेरे देर से उठना भी रोग का ही प्रकार है। इसी प्रकार अधिक सपने आने से नींद बाधित होती है और नींद न आने की समस्या बढ़ाती है।
कभी-कभी शरीर के अस्वस्थ होने पर भी नींद ऑंखों से दूर हो जाती है। बहुधा बहुत छोटे बच्चे के रात को जागने और रोने के कारण उसकी माता रात को सो नहीं पाती। कभी-कभी जीवन में दुख-तकलीफ आ जाने पर भी नींद कोसों दूर भाग जाती है। यदि नींद पूरी न हो तो मनुष्य अलसाया हुआ रहता है। इससे उसकी कार्य क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। उसकी काम करने की क्षमता दिनों-दिन घटने लगती है। यह स्थिति उसके कैरियर को हानि पहुॅंचा सकती है। उसकी पदोन्नति में भी बाधक बन सकती है।
नींद की समस्या अनेक बिमारियों को न्योता देती है। नींद की गोली खाकर सोना इसका हल नहीं है। एक समय ऐसा भी आता है जब मनुष्य इसका अभ्यस्त हो जाता है। उस समय इस गोली का असर भी उस पर नहीं होता। यथासम्भव अपनी नींद से समझौता नहीं करना चाहिए। यत्न करना चाहिए कि अपने कार्यालय की किन्हीं परेशानियों का प्रभाव कभी आपके परिवार पर न पड़े। खाना खाते समय अपने मन को व्यवस्थित करने का प्रयास कीजिए।
रात को बिस्तर पर जाने से पहले अपनी सारी चिन्ताओं एवं परेशानियों की गठरी बनाकर अपने से दूर किसी कोने में रख देनी चाहिए। जिस भी इष्ट की आप आराधना करते हैं, सोते समय उसका नाम जपते हुए सोने का प्रयास कीजिए। उस नाम जप में डूबे हुए सोने से गहरी निद्रा आएगी। प्रातःकाल जब आप उठेंगे तो स्वयं को तरोताजा महसूस करेंगे। अगले दिन उत्साह पूर्वक कार्य कर सकेंगे। फिर एक नए दिन की शुरूआत करने में स्वयं को तैयार पाएँगे।
चन्द्र प्रभा सूद
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