सौतेली माँ
मेरे विचार में माँ तो माँ होती है, चाहे वह अपनी सगी हो या सौतेली। मुझे दोनों में कोई अन्तर नहीं दिखाई देता। सौतेली माँ वह होती है, जो बच्चे की अपनी जन्मदात्री सगी माँ की मृत्यु के उपरान्त पिता की पुनः शादी करने पर घर में आती है। वह भी वही सब कार्य करती है, जो बच्चे की अपनी सगी माँ किया करती थी। उन दोनों के कार्य व्यवहार में किसी तरह का कोई अन्तर नहीं होता है।
सौतेली माँ का हौवा बच्चे के कोमल मन में इस तरह बिठा दिया जाता है कि वह उससे अनजाने में घृणा करने लगता है। उसे अपना शत्रु समझने लगता है। उसके हर काम में मीनमेख निकालने लगता है। जब भी उसे अवसर मिलता है, वह उसका अपमान कर देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि सौतेली माँ और बच्चे के बीच एक खाई-सी बन जाती है। इस खाई को पटना बहुत कठिन कार्य हो जाता है।
देखा जाए तो अपनी माँ भी बच्चे को गलती करने पर डाँट-डपट करती है। बहुत ज्यादा शरारत करने पर वह कभी-कभार उसकी पिटाई भी कर देती है। अनुशासन सिखाने के लिए या पढ़ने में कोताही करने पर उसे सजा भी दे देती है। बच्चे के इन्हीं दोषों के लिए यदि सौतेली माँ वैसा करती है, तो उसे कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। यदि वह बच्चे की कमियों को अनदेखा कर दे, तो बच्चा बड़ा होकर हाथ से निकल जाता है। उस समय सारा दोष सौतेली माँ का ही माना जाता है।
कुछ लोगों को दूसरों के घर में आग लगाकर तमाशा देखने में बहुत ही आनन्द आता है। ऐसे लोग उस मासूम से बच्चे को भड़काते हैं कि उसकी सौतेली माँ है, तो वह उसके साथ बुरा व्यवहार करेगी। उधर महिला को उल्टी पट्टी पढ़ाते हैं कि सौतेला बच्चा है, वह इस तरह बत्तमीजी करेगा ही। घर के लोगों ने उसे सिर पर चढ़ा रखा है। तुम्हारे खिलाफ उसे भड़काते रहते हैं। घर के अन्य सदस्य अनावश्यक लाड़ लड़ाकर उसे बेचारा बना देते हैं।
सौतेली माँ और बच्चे के बीच होने वाली कटुता के लिए घर-परिवार के लोग और आस-पड़ोस के लोग जिम्मेदार होते हैं। वे उन दोनों के बीच होने वाले सद् भाव को बनने से पहले ही बिगाड़ देते हैं। वे दूसरे के घर में सामञ्जस्य बना रहे, खुशहाली रहे यह उनको सहन नहीं होता। इसलिए वे उनके घर में दोनों को भड़काने का कार्य करते हैं। उनके आपसी वैमनस्य को हवा देते रहते हैं।
कई बच्चे इतने अधिक भावुक होते हैं कि वे अपनी माँ की किसी भी वस्तु को सौतेली माँ को छूने नहीं देते। कोई भी उसे बच्चा समझकर क्षमा नहीं करता। कुछ पुरुष ऐसे भी होते हैं, जो विवाह इसी शर्त पर करते हैं कि उन्हें नई पत्नी से बच्चा नहीं चाहिए। वे केवल अपने बच्चों की परवरिश के लिए शादी कर रहे हैं। ऐसे में अपने बच्चे न हों और सौतेले बच्चे अपने न बनें, तब समस्या वाकई गम्भीर हो जाती है।
सब जगह अच्छा-अच्छा ही नहीं होता। कभी कोई सौतेली माँ ऐसी भी होती है, जो सौतेले बच्चों से दुर्व्यवहार करती है। अपने बच्चों और सौतेले बच्चों में भेदभाव करती है। उनकी पढ़ाई और शादी आदि में भी एक समान व्यवहार नहीं रखती। धन और सम्पत्ति के विभाजन के समय वह अपने बच्चों को अधिक दिलवाती है। इन कारणों से भी यह सम्बन्ध हाशिए पर आ जाता है। उन दोनों के सम्बन्धों में मधुरता नहीं आ पाती।
इसी कड़ी में हम सौतेले पिता के व्यवहार पर भी चर्चा कर लेते हैं। कहीं पति और पत्नी दोनों के ही बच्चे होते हैं और कहीं केवल पत्नी के बच्चे होते हैं। सौतेले पिता का सौतेली बेटी के शोषण के समाचार हम बहुधा समाचार पत्रों में पढ़ते हैं और टी वी में देखते हैं। सौतेले बेटों के साथ भी उसका व्यवहार कुछ सामञ्जस्य पूर्ण नहीं हो पाता। बहुत बार बच्चे अपने सौतेले पिता को स्वीकार नहीं कर पाते। वहाँ उनमें फिर झगड़े की स्थिति बनी ही रहती है।
इस चर्चा का सार यही है कि सौतेली माता के साथ सभी बन्धु-बान्धवों का सौहार्दपूर्ण व्यवहार होना चाहिए। घर के अन्य सदस्यों को माता और बच्चों को मिलाने वाली कड़ी बनना चाहिए, न कि उनमें दुर्भावना आने देनी चाहिए। यदि उनमें मधुर सम्बन्ध बनेंगे, तभी तो घर में सुख और शान्ति बनी रह सकेगी। अन्यथा घर में कलह-क्लेश होता रहता है। इससे घर के सभी सदस्य परेशान रहते हैं। बच्चे तो बच्चे होते हैं, सौतेली माता को अपना दायित्व समझकर उन्हें उनकी गलतियों के साथ, खुले दिल से अपनाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें