घर में झगड़े का कारण
घर के सभी सदस्यों में कभी न कभी किसी बात को लेकर मनमुटाव हो जाता है। फिर यही झगड़े का कारण बन जाता है। वैसे तो प्रत्येक मनुष्य ऐसे घर की कल्पना करता है, जहाँ सभी परिवारी जन मिल-जुलकर परस्पर प्रेम से रहते हैं। बड़े छोटों के सिर पर अपना वरद हस्त रखते हैं और छोटे बड़ों की आज्ञा का पालन करते हैं। इस प्रकार ऐसे घर में देवताओं का वास माना जाता है, और घर स्वर्ग की भाँति सुख से पूर्ण कहा जाता है।
घर में चार सदस्य होते हैं, तो यह सम्भव है कि किसी भी मुद्दे पर सबकी राय अलग-अलग हो। मतभेद होना कोई बड़ी बात नहीं है। यह मतभेद जब मनभेद का रूप लेकर झगड़े का कारण बन जाता है, तो बात चिन्ताजनक हो जाती है। अक्सर देखने में आता है कि कई घरों में न चाहते हुए भी अक्सर लड़ाई-झगड़े होते हैं। झगड़े के कारण कई लोगों को मानसिक तनाव की समस्या से गुजरना पड़ता है।
आर्थिक पक्ष झगड़े का प्रमुख कारण होता है। अक्सर पैसे को लेकर घर पर तनातनी होती रहती हैं। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने पर मनुष्य अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं कर पाता। धन का अभाव में मनुष्य के सारे कार्य स्थगित हो जाते हैं। वह केवल दो जून रोटी का जुगाड़ किसी तरह करने का प्रयास करता है। अतः घर के सदस्य एक-दूसरे को बुरा-भला कहते रहते हैं।
पति-पत्नी में झगड़े के कई कारण होते हैं। दोनों में से एक का कम पढ़ा होना, रंग-रूप में कमतर होना, पत्नी की आय पति से अधिक होना। इसे हम मिस मैच विवाह भी कह सकते हैं। ऐसी स्थितियों में एक-दूसरे को नापसन्द करने के कारण परस्पर छींटाकशी होने से घर का माहौल प्रभावित होता है। कई बार पति अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए पत्नी पर घर से बाहर जाकर अय्याशी करने का आरोप लगाता है।
विवाहेत्तर सम्बन्ध चाहे पति का हो अथवा पत्नी का, झगड़े का कारण बनते हैं। कोई भी मनुष्य अपने साथी के इस प्रकार के सम्बन्ध को सहन नहीं कर पाता। इसलिए उनके झगड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते रहते हैं। इससे घर का वातावरण बोझिल हो जाता है। इस सम्बन्ध का अन्त अलगाव यानी तलाक होता है। धन की कमी या अन्य कोई कमी तो सहन की जा सकती है, पर चरित्र की इस कमी को कोई भी साथी बर्दाश्त नहीं कर पाता।
अनेक बार पिता और पुत्र में झगड़ा हो जाता है, माता और बेटी में झगड़ा हो जाता है। इसका कारण बच्चों की मनमानी कही जा सकती है। बच्चे सोचते हैं कि वे बड़े हो रहे हैं और उनके माता-पिता उन्हें समझते नहीं हैं। वे बस कूप मण्डूक ही हैं। और दूसरी ओर माता-पिता का मानना है कि पढ़-लिखकर बच्चों के दिमाग खराब हो गया है। वे सोचते हैं कि वे बहुत बड़े हो गए हैं। वे अपने बराबर किसी को समझदार समझते ही नहीं हैं।
बड़े दुर्भाग्य की बात है कि सास-बहू में झगड़ा प्रायः घरों में होता रहता है। यह लड़ाई सारी प्रभुत्व की होती है। सास घर पर बना अपना एकाधिकार छोड़ना नहीं चाहती। वह सोचती है कि कल की आई लड़की को वह घर की जिम्मेदारी कैसे सौंप दे। बहू सोचती हैं कि घर उसका भी उतना है, जितना सास का है। फिर एक-दूसरे की कमियाँ निकालने के कारण झगड़े होते हैं। इसके अतिरिक्त दहेज को लेकर भी बहू को प्रताड़ित किया जाता है।
कभी-कभी भाई-बहन या भाई-भाई में भी झगड़ा हो जाता है। धन-सम्पत्ति को लेकर प्रायः विवाद होते रहते हैं। इसलिए उत्तराधिकार का झगड़ा भाई-बहनों में परस्पर दूरियाँ बना दता है। बेटी या बेटा कोई भी माता-पिता की सम्पत्ति से अपना अधिकार छोड़ना नहीं चाहता। भाई सोचते हैं कि बहन को कुछ क्यों दें और बहन सोचती हैं कि वह अपने अधिकार का प्रयोग क्यों न करे। एक भाई दूसरे भाई से अधिक हड़पना चाहता है।
झगड़ा अक्सर किसी गलतफहमी के कारण हो जाता है। एक-दूसरे से खुलकर बातचीत न करने की वजह से भी झगड़ा हो जाता है। कई बार घर के सदस्यों के बीच लड़ाई इसलिए भी हो जाती है, क्योंकि वे अनजाने में ही किसी बात का बतंगड़ बना देते हैं। कभी कभार घर के किसी सदस्य का चिल्लाकर बोलना भी झगड़े का कारण बन जाता है। इनके अतिरिक्त भी कई और कारण हो जाते हैं, जिनसे घर का माहौल बोझिल हो जाता है।
सांसारिक भौतिक वस्तुओं के पीछे इन्सान पागल हुए रहते हैं। जबकि सब जानते हैं कि दुनिया को छोड़ते समय सब यहीं रह जाना है, चाहे वह धन-सम्पत्ति हो या रिश्ते हों। सबको इनके लिए झगड़ना नहीं चाहिए। मिल-जुलकर, प्यार से अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। पता नहीं कौन पहले दुनिया को छोड़ेगा और कौन बाद में। उस समय पश्चाताप करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं बचता। इसलिए अपने लालच और अहं का त्याग करके हर मनुष्य को सद्भावना से जीवन व्यतीत करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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