पढ़ने से जी चुराते बच्चे
प्रायः माता-पिता परेशान रहते हैं कि बच्चे पढ़ने में मन नहीं लगाते। वे अपनी पुस्तकों को देखना भी नहीं चाहते। विद्यालय से मिले हुए गृहकार्य को जल्दबाजी में करके वे अपना पिंड छुड़ाते हैं। उन्हें किसी वस्तु की कमी माता-पिता नहीं रहने देते, फिर भी वे उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। घूमने-फिरने, खेलने-कूदने, टी वी देखने और सारा दिन मोबाईल पर अपना समय व्यतीत करना चाहते हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चे हर समय अपनी मनमानी करना चाहते हैं। क्या कभी इस बात का पता करने का यत्न किया है कि आखिर बच्चे मनमानी क्यों करते हैं? बच्चों का पढ़ने से जी चुराने का कारण क्या है? उनका ध्यान दूसरी ओर क्यों रहता है? वे आखिर खेल-कूद में क्यों लगे रहते हैं? टी वी और मोबाईल उन्हें क्यों अधिक अच्छे लगते हैं? बच्चे आखिर पढ़ने के लिए कहने पर अपने माता-पिता की अवहेलना क्यों करते हैं?
ये कुछ प्रश्न हैं, जिनके हल खोजे जाने चाहिए। आजकल बच्चों को खिलौनों से भी अधिक टीवी और मोबाईल पसन्द आते हैं। इसका बहुत बड़ा कारण है। बच्चा जब छोटा होता है, उस समय माँ उसे उसका मनपसन्द गाना या टीवी कार्यक्रम लगाकर बिठा देती है या मोबाईल दे देती है, ताकि उन्हें देखता हुआ बच्चा आराम से नाश्ता या खाना खा ले। उस समय बच्चे ने क्या खाया, कितना खाया, उसे पता ही नहीं चलता।
इसके अतिरिक्त यदि माता-पिता कोई कार्य करना चाहते हैं और बच्चों की डिस्टरबेंस नहीं चाहते, तो उस समय वे बच्चों को टीवी चलाकर बैठने के लिए कह देते हैं या उन्हें व्यस्त रखने के लिए मोबाईल पकड़ा देते हैं। यही कारण हैं कि धीरे-धीरे बच्चे टीवी और मोबाईल के अभ्यस्त हो जाते हैं। उन्हें इनमें आनन्द आने लगता है। माता-पिता आवाज लगाते रहें, वे उसे अनसुना कर देते हैं।
यदि बच्चों से जबर्दस्ती उनसे टीवी बन्द करवाया जाए या उनसे मोबाईल ले लिया जाए, तो वे चीख-पुकार मचाते हैं। यह कुछ प्रमुख कारण हैं, जो बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए बाधक बन रहे हैं। इनके अतिरिक्त बच्चा घर में खिलौनों से खेलना पसन्द करते हैं। घर के बाहर जाना बहुत से बच्चों को अच्छा नहीं लगता। आजकल घर में एक या दो बच्चे होते हैं, उन्हें माता-पिता अनावश्यक लाड़-प्यार करके बिगाड़ देते हैं।
बच्चों का पढ़ाई में मन न लगने का कारण भी टीवी, मोबाईल और खेलकूद है। बच्चे सारा दिन यदि टीवी और मोबाईल में व्यस्त रहेंगे, तो निश्चित है कि उन्हें पढ़ने का समय नहीं मिल पाएगा। वे जब पढ़ाई से जी चुराने लगते हैं, तब वे पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं। इन सबमें उन्हें आनन्द आता है, पर पढ़ाई बहुत बोरिंग होती है। उन्हें अपनी पुस्तकें लेकर बैठने में अच्छा नहीं लगता, वे उससे बचने का बहाना ढूंढते रहते हैं।
जब माता-पिता बच्चों को पढ़ने के लिए कहते हैं, उस समय उन्हें पानी की प्यास लग जाती है, भूख लगी है कुछ खाने को दो, टॉयलेट जाना या फिर कुछ और ऐसे बहाने याद आते हैं, जिन्हें रोक पाना सम्भव नहीं हो पाता। अपने पाठ्यक्रम के अतिरिक्त कॉमिक्स, कहानी की पुस्तक या उपन्यास पढ़ने में उन्हें अधिक रुचिकर लगता है। इन पुस्तकों को पढ़ने में उन्हें मजा आता है।
आजकल करोना काल में जब बच्चे विद्यालय नहीं जा सक रहे, तब उनकी ऑनलाइन क्लासेस चल रही हैं। उसी पर उनका गृहकार्य भी मिलता है। परीक्षाएँ भी ऑनलाइन हो रही हैं। इसलिए सारा दिन वे मोबाईल पर व्यस्त रहते हैं। यह स्थिति तो अपवाद काल की है, सदा रहने वाली नहीं है। यही आयु पढ़ने की होती है और यही आयु खेलने या मौज-मस्ती करने की भी होती है।
माता-पिता का यह परम दायित्व बनता है कि वे अपने बच्चों को टीवी और मोबाईल का एडिक्ट न बनने दें। टीवी और मोबाईल का समय निश्चित करें, जिससे बच्चे अनुशासित रहें। उन्हें पढ़ाई करने के लिए प्रोत्सहित करें। जीवन की ऊँच-नीच उन्हें इस प्रकार समझाएँ, जिससे उनके बच्चे समझदार बन जाएँ। एक जिम्मेदार नागरिक बनने का अपना दायित्व वे पूर्ण कर सकें।
चन्द्र प्रभा सूद
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