पल की खबर नहीं
जीवन में अगले पल क्या होने वाला है, इस विषय में मनुष्य को कुछ पता नहीं होता। जीवन उसका है, पर वही अपने भविष्य से अनभिज्ञ रहता है। इसका कारण है कि जो भी भविष्य के गर्भ में छुपा रहता है, उसके विषय में कोई नहीं बता सकता। भविष्य वक्ता केवल कयास लगा सकते हैं। उनकी बताई बात यथार्थ की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। केवल एक ईश्वर है, जो सब कुछ जानता है।
मनुष्य अभी है, पर अगले पल रहेगा या नहीं, इसका कोई भरोसा नहीं है। इसका अर्थ यह है कि अगला पल किसने देखा? मनुष्य के जीवन का पलभर का भी भरोसा नहीं है, पर वह इस तरह दुनिया भर का सामान इकट्ठा करता है, जैसे उसे सौ साल तक जीना है। इसी बात को किसी कवि ने कहा है-
सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं।
इस संसार मे आकर मनुष्य अपने डेरा सदा के लिए डाल लेता है।
यद्यपि हमारे ऋषि-मुनि ईश्वर से सौ वर्ष जीने की प्रार्थना करते थे। वे कहते थे कि सौ वर्षों तक वे स्वस्थ होकर इस संसार में जीवित रहें। पर फिर भी इस क्षणभंगुर जीवन के विषय में कोई कुछ भी नहीं कह सकता। मनुष्य कब तक जीवन का भोग करेगा, यह उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों पर निर्भर करता है। इन कर्मों के अनुसार उसे यह जीवन मिलता है। उसकी आयु समाप्त होते ही उसे इस दुनिया से विदा हो जाना पड़ता है।
क्षणभंगुर मनुष्य के इस जीवन के विषय में कबीरदास जी कहते हैं-
पानी केर बुदबुदा अस मानस की जात।
देखत ही छुप जाएगा ज्यों तारा परभात।।
अर्थात् मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले के समान है, जो बनता है और पलभर में टूटकर बिखर जाता है। जिस प्रकार प्रातः होते ही तारे छुप जाते हैं, उसी प्रकार मनुष्य भी इस दुनिया से विदा ले लेता है।
कहने का तात्पर्य यही है कि इस संसार में सभी लोग काल के बन्धन में बँधे हुए हैं। मनुष्य को मात्र थोड़ा-सा जीवन जीने के लिए मिला है और वह उसी में बहुत-से ठाठ-बाठ रचाता है। आराम और सुविधा से जीवन व्यतीत करना चाहता है। यदि मनुष्य अपने मन की आँखें खोलकर देखे, तो अमीर, गरीब, राजा, रंक, आदि सभी के ऊपर जन्म-मरण तथा आवागमन का चक्र मंडराता रहता है।
मनुष्य की हवस है, जो उसे चैन नहीं लेने देती। एक घर खरीद लिया, वह कम है। नामी-बेनामी सम्पत्तियाँ मनुष्य खरीदता रहता है। एक गाड़ी से काम चल सकता है, पर मँहगी गाड़ियों का जखीरा उसके पास होना चाहिए। कोई कहता है कि उसके पास इतना धन है कि उसकी सात पीढ़ियाँ बैठकर खा सकती हैं। अरे भाई, कभी सोचा है कि तुमने तो परिश्रम कर लिया, बाकी आने वाली पीढ़ियाँ हाथ पर हाथ धरे निठल्ली बैठेंगी क्या?
घर में अलमारियाँ कपड़ों से भरी हुई हैं, पर पहनने के लिए वस्त्र नहीं है। कितना विचित्र है न यह सब। अगले ही पल यदि भूकम्प आ गया या बाढ़ आ गयी, तो जोड़ा हुआ सब धन-वैभव कहाँ जाएगा? किसी को कुछ भी पता नहीं है। सब समय की रेत पर लिख दिया जाएगा। तब कोई भी मनुष्य दाने-दाने के लिए मोहताज हो सकता है। तब उसे समझ में नहीं आएगा कि वह अब क्या करे? उस समय कल का राजा आज का रंक बनकर रह जाता है।
यह भी मनुष्य को खबर नहीं कि वह जो निवाला हाथ में पकड़कर बैठा है, उसे मुँह तक ले जा सकेगा या नहीं। चाय का जो कप लेकर बैठा है, उसे पी सकेगा अथवा वह लहराकर उसके हाथ से ही गिर जाएगा। मनुष्य चलते-फिरते, गाड़ी में बैठे या ऑफिस से ही सबको बिलखता हुआ छोड़कर, परलोक की यात्रा के लिए तो नहीं निकल जएगा। इसे ही कहते हैं कि मनुष्य को अगले पल के बारे में पता नहीं है।
मृत्यु मनुष्य के जन्म के साथ से ही उसकी सखी बनकर उसके पास ही रहती है और इस संसार से अपने साथ ही लेकर जाती है। मनुष्य उसे अनदेखा करके दुनिया के भोग-विलास में मस्त रहता है। वह अपने किसी बन्धु-बान्धव की अन्तिम यात्रा के लिए श्मशान घाट पर भी जाता है। फिर भी वह सोचता है कि मृत्यु उसके पास नहीं आएगी। इसलिए वह फिर इस दुनिया के कारोबार में व्यस्त हो जाता है।
मनुष्य को पल-पल अपनी ओर बढ़ रही मृत्यु को सदैव स्मरण रखना चाहिए। उसे जीवन के साथ-साथ मृत्यु का भी मूल्य समझना आना चाहिए। यदि वह उसे कभी न भूले, तो जीवन में गलत रास्ते पर नहीं जा सकेगा। वह अपने कर्मों की शुचिता पर ध्यान देगा। अपना इहलोक और परलोक दोनों को सुधारने का भरसक प्रयत्न करेगा। ईश्वर की सच्चे मन से आराधना करता हुआ मनुष्य अपने जीवन को सफल बनाएगा।
चन्द्र प्रभा सूद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें