रविवार, 11 अक्तूबर 2020

समय को पहचानिए

 समय को पहचानिए

मनुष्य वही समझदार कहलाता है, जो अपने कार्यों को समय पर पूर्ण करने का अभ्यास करता है। अपने कामों को कल पर टालकर निश्चिन्त होकर नहीं बैठ जाता। जिस भी कार्य या योजना को कल पर टाल दिया जाता है, उसके पूर्ण होने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है क्योंकि कल तो कभी आता ही नहीं है। समय है कि किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करता। कार्य पूर्ण हो गया है या अधूरा रह गया है, उसे कोई लेना देना नहीं होता।
            मनुष्य को ही सावधानी बरतनी चाहिए। उसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके विचारे हुए कार्य अपने समय पर पूरे हो जाएँ। अन्यथा उनके  पूरे होने की आशंका रह जाती है। मनुष्य के कार्य यदि किसी कारण से पूरे न हो सकें, तो उसकी असफलता निश्चित होती है। इस जीवन का कोई भरोसा नहीं है। मनुष्य पता नहीं कितने समय तक इस संसार में जीवित रह पाता है।
           इसी भाव को महाभारत के शान्तिपर्व में महर्षि वेदव्यास जी समझते हुए कहते हैं-
श्व:कार्यमद्य कुर्वीत  पूर्वांण्हे चापराण्हिकम्।
न हि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा कृतम् ॥
अर्थात् कल के सारे काम आज कर लो, और आज के अभी क्योंकि समय का कोई भरोसा नहीं, पता नहीं कब प्रलय हो जाये। इसलिए शुभ काम को कल पर मत टालो, फौरन कर डालो।
          इसी भाव को कबीरदास जी ने सरल शब्दों में निम्न दोहे में कहा है-
कल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होयगी, बहुरी करेगा कब।।
          महर्षि वेद व्यास और कबीरदास जी ने अपने-अपने शब्दों में एक ही बात कही है। इसका अर्थ यही है कि यह चिरन्तन सत्य है कि समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। अपना कार्य कल पर टालने वाले लोग जीवन की रेस में कभी बाजी जीत नहीं सकते। दूसरे शब्दों में कहें, तो वे हार जाते हैं। कोई नहीं जानता कि प्रलय कब आने वाली है? यदि प्रलय आ जाएगी तो मनुष्य अपना सोचा हुआ कार्य नहीं कर सकता।
           समय को पकड़कर रखने वाले यानी समयानुसार कार्य करने वाले मनुष्य निश्चित ही आगे बढ़ जाते हैं। सफलता उनके कदम चूमती है। ऐसे ही लोग जीवन में चमत्कार करते हैं। अपनी इस आदत के कारण यही लोग विश्व वन्दनीय बन जाते हैं। लोग उनके उदाहरण देते हैं। ये संसार के दिग्दर्शक बन जाते हैं। समय के पाबन्द इन्हीं लोगों का नाम इतिहास के पन्नों में अमर हो जाता है।
           इस समय को व्यर्थ गँवाने वाले पिछड़ जाते हैं। दुनिया कहाँ की कहाँ पहुँच जाती है और वे वहीं बैठे रहकर ढोल पीटते रह जाते हैं। अपनी गलती की सजा वे स्वयं भुगतते है। उनके साथ किसी भी व्यक्ति को सहानुभूति नहीं होती। सभी लोग उनका उपहास करते हैं। वे सिर झुकाकर उनके तानों को सहन करते हैं। इसके अतिरिक्त उनके पास और कोई चारा भी तो नहीं होता।
           समय एक बहुत बड़ा बाजीगर है। यह सरलता से किसी के वश में नहीं आता।  इसे साधना हर किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं है। समय के नाम की माला जपते रहने से किसी को भी कोई लाभ नहीं होता। जिस व्यक्ति ने समय की रग को पहचान लिया या समझ लिया, उसका बेड़ा पार हो जाता है। वह महान बन जाता है। वही इस दुनिया को झुकाने का साहस कर सकने में समर्थ होता है।
          समय की रेत पर वही लोग अपने पैरों के निशान छोड़ते हुए चल सकते हैं, जो मनचाहे ढंग से इस समय को चलाते हैं। यानी जो समय का महत्त्व पहचानते हैं और उसका सम्मान करते हैं। सम्मान करने का यह अर्थ कदापि नहीं कि वे फुलमालाएँ लेकर समय का स्वागत करते हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि वे समय का सदुपयोग करते हैं। अपने समय को व्यसनों अथवा हँसी-ठठ्ठे में व्यतीत नहीं करते।
           समय उन्हीं लोगों की कद्र करता है, जो उसके साथ कदमताल करते हुए चलते हैं। वे लोग उसे फूटी आँख भी नहीं सुहाते जो उसका महत्त्व नहीं समझ पाते।
यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह समय को पहचानकर अपना जीवन सफल बनाता है अथवा उससे पिछड़कर दुख-परेशानियों को मोल लेता है। समय कोई बाजार में बिकने वाली वस्तु नहीं है कि जाकर खरीद लाओ और उसे गुलाम बनाकर अपनी इच्छा से नचा लो।
चन्द्र प्रभा सूद

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