चार लोग क्या कहेंगे?
उन चार लोगों का बहुत शिद्दत से इन्तजार है, जो हम सबके जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। मनुष्य को हर समय उनसे डर-डरकर जीना पड़ता है। उनकी नाराजगी की परवाह करनी पड़ती है। यह बात आज तक समझ में नहीं आ पाई कि मनुष्य अपने सारे जीवन में उनकी ओर आस लगाकर क्यों देखता है? ये चार लोग हौव्वा बनकर उसके सिर पर सवार रहते हैं। उनसे बचने का कोई रास्ता उसके पास नहीं है।
ये चार लोग आखिर कौन से हैं? जो देखेंगे तो क्या कहेंगे? सुनेंगे तो क्या सोचेंगे? उन्हें सबके जीवन में ताक झाँक करने का अधिकार किसने दिया? ये चार लोग क्या इतने शक्तिशाली हैं, जो सबके जीवन को प्रभावित करते हैं? मनुष्य क्यों सोचे कि लोग क्या कहेंगे? ये लोग क्यों दूसरों की जिन्दगी में हस्तक्षेप करते रहते हैं? ये कुछ प्रश्न हैं, जिनके उत्तर खोजे जाने आवश्यक हैं।
मम्मी हमेशा कहती है, बेटी है हर जिद पूरी मत करो, चार लोग क्या कहेंगे? लड़की जात है, ऐसे शहर से बाहर अकेले भेजेंगे तो चार लोग क्या सोचेंगे? बेटी का जोर से हँसना उन्हें परेशान करता है, वे कहती हैं कि अच्छे घरों की बेटियाँ ऐसे नहीं हँसती। कोई सुन लेगा तो चार लोग बातें करेेंगे। घर के पास वाले कॉलेज से ही पढ़ाई करेगी, तो घर के काम-काज सीख लेगी। इतनी दूर दूसरे शहर पढ़ने भेजा तो चार लोग क्या कहेंगेंं?
घर-परिवार में यदा कदा झगड़े हो ही जाते हैं। पति-पत्नी का, पिता-पुत्र का, माता-बेटी का, सास-बहू का, भाई-भाई का यानी किसी का झगड़ा किसी भी बात पर हो सकता है। तब यही कहा जाता है, कि चार लोग घर में मनमुटाव की बात सुनेंगे तो क्या कहेंगे? इसी प्रकार यदि कोई सदस्य ऊँचा बोलता है, तब भी यही कहा जाता है कि धीरे बोलो कोई सुन लेगा, तो चार लोग बात बनाएँगे।
हम सभी बचपन से ही ये वाक्य सुनते आए हैं कि ऐसा मत करो चार लोग बातें करेंगे, ऐसे कपड़े मत पहनों, कोई देखेगा तो चार लोग क्या कहेंगे और हमें अभी तक पता नहीं लग पाया कि वो चार लोग कौन से हैं? यदि माँ से पूछा जाए कि ये चार लोग कौन हैं? जो हमारे हर काम में दखल देते हैं। तो उन्हें भी नहीं पता होगा। ब्रह्मवाक्य की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी यह वाक्य बोला जाता है।
मनुष्य को अपने जीवन के निर्णय स्वयं ही लेने आना चाहिए। उसे अपने ही सपनो को पहचानना आना चाहिए। उसे उन सपनों के सच होने की उम्मीद को अवश्य ही मजबूती देनी चाहिए। बिना यह सोचे कि लोग क्या सोचेंगे या क्या कहेंगे? मनुष्य को अपनी जिन्दगी, अपने तरीके से जीना आना चाहिए। उसे किसी भी कार्य के लिए दूसरों का मुँह देखने की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिए।
हमारे समाज के अधिकतर लोग इन चार लोगों के चक्कर में अपने जीवन के जरूरी निर्णय समाज और परिस्थितियों के भरोसे ले रहे हैं। उन्हें अपने बूते पर जीवन चलाने की क्षमता होनी चाहिए। उन्हें किसी का मुँह नहीं देखना चाहिए। यदि वे हर कदम पर दूसरों की परवाह करते रहेंगे, तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकेंगे। हर मनुष्य की प्राथमिकता उसके जीवन की सफलता होनी चाहिए।
ये चार लोग वास्तव में मनुष्य के बेहद करीबी तथा शुभचिन्तक होते हैं। ये ही मनुष्य को जीवन की अन्तिम यात्रा के समय अपने कन्धों पर उठाकर श्मशान ले जाते हैं। ये चार लोग कोई नहीं हैं, केवल हमारे मन कि उपज है, जो हमारे अन्दर गहरे पैठ गए हैं। लोग तो कहते ही रहेंगे। उनका तो काम ही कहना है। मनुष्य जब अच्छा करता है, तब वे परेशान होते हैं और जब वह गलत करता है, तब वे हैरान हो जाते हैं।
मेरे विचार में 'चार लोग क्या कहेंगे' यह मुहावरा पूरे समाज का ही प्रतिनिधित्व करता है। मनुष्य पूरे समाज का नाम लेकर कोई चेतावनी नहीं दे सकता, इसलिए चार लोगों के नाम पर यह उत्तरदायित्व सौंप दिया गया है। ताकि इनसे डरकर लोग गलत कार्यों की ओर प्रवृत्त न हों। यदि विद्वज्जन को इसके अतिरिक्त कोई और अर्थ उचित प्रतीत हो रहा हो, तो वे अपने विचार रख सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें