चुगलखोर आँसू
खुशी का समय हो अथवा दुख से परेशानी हो, ये आँसू बिना कहे मनुष्य की आँखों से अनायास ही बहने लगते हैं। हर मनुष्य के जीवन में कुछ उत्तेजित करने वाली चीजें या घटनाएँ होती है, जो उसे यदा कदा रुला देती हैं। मनुष्य को किस कारण से रोना आता है, इसके उत्तर बहुत अलग-अलग हो सकते हैं। रोने के उदगम के बारे में बातें बहुत-सी हैं और अनिश्चित भी हैं। यह एक अनुसन्धान का विषय है।
जब कभी मनुष्य को चोट लगती है, तो उसकी आँखों से आँसू आ जाते हैं। जब वह किसी भी कारण से दुखी होता है, तब भी ये आँसू आते हैं। जब मनुष्य शरीरिक रूप से या मानसिक रूप से परेशान होता है, तब भी आँसू उसके साथी बन जाते हैं।वृद्धावस्था में जब मनुष्य अशक्त हो जाता है, कोई कार्य करने की स्थिति में नहीं रहता, तब भी ये आँसू उसका दामन नहीं छोड़ते।
जब विवशता में किसी से अपनी सेवा करवानी पड़ जाए, तब भी ये आँसू नहीं थमते। जो मनुष्य बहुत अधिक भावुक होता है, जरा-सी बात हो जाने पर उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। उदास करने वाला संगीत बजाया जाए तो आँसू आ धमकते हैं। किसी फिल्म का कोई सीन दिल को छू जाए, तब भी आँसू आ जाते हैं। इसी प्रकार पुस्तक पढ़ते-पढ़ते भी आँसू मनुष्य के साथी बन जाते हैं।
मनुष्य कभी-कभी किसी भी कारण से बहुत दुखी होता है, उस समय उसका कोई प्रियजन उसके सिर पर या कन्धे पर सान्त्वना प्रदर्शित करने के लिए हाथ रखता है, तो उसका गला रुँध जाता है और आँखों से आँसू ढलक जाते हैं। अपने किसी प्रिय के वियोग में ये आँसू थमने का नाम नहीं लेते। अपने से दूर गए यानी परदेस गए या परलोक गए बन्धु-बान्धवों को याद करते समय आँसू साथ निभाते हैं।
जब मनुष्य जीवन में हताश या निराश होता है और उसे उस परेशानी से उबरने के कोई रास्ता नहीं दिखाई देता, तब दुखी होकर रोता है, परमपिता परमात्मा से वह गिला-शिकवा करता है। व्यवसाय में या नौकरी पर काले बादल मण्डराने लगते हैं, तब कोई उपाय न सूझने पर वह रोता और बिलखता है। असफलता या पराजय का सामना होने पर भी मनुष्य की आँसू आँखों से निकले बिना नहीं रहते।
बहुत समय से माँगी गई किसी मन्नत के पूर्ण होने पर आँसू छलक जाते हैं। खेल या किसी अन्य प्रतियोगिता में सफल होने पर भी आँखें नम हुए बिना नहीं रह पातीं। जब मनुष्य को उसके परिश्रम का मनचाहा फल मिल जाता है, तब भी आँखों से निकलने वाले ये आँसू चुप नहीं रहते। अपने किसी प्रियजन से बहुत समय के पश्चात मिलने पर भी खुशी के मारे आँसू निकल जाते हैं।
वास्तविक जीवन में रोना बहुत अलग तरह का होता है। मगरमच्छ वाले आँसुओं से किसी भी सज्जन व्यक्ति को सहजता से धोखा दिया जा सकता है और मनुष्य अपना न बनता हुआ काम उससे सरलता से निकलवा सकता है। वैसे तो यह बात मानवीय मूल्यों के अनुसार गलत सोच है, परन्तु स्वार्थवश कुछ लोग ऐसे काम करते हैं। किसी की गई गलती का अहसास होने पर पश्चाताप स्वरूप मनुष्य की आँखों से आँसू निकल जाते हैं।
कभी-कभी शारिरिक रोग मायूसी का कारण बन जाते हैं। विटामिन की कमी, स्ट्रोक, थायरॉयड समस्या, लो बल्ड शुगर लेवल के कारण भी रोना आता है। रोने के पीछे एक अहं कारण डिप्रेशन भी होता है। उसमें मनुष्य ऋण लगता है, तो रोता ही चला जाता है। उसे अपने ऊपर नियन्त्रण ही नहीं रहता। कभी-कभी लोग थोड़े समय में ही डिप्रेशन से बाहर आ जाते हैं तो कभी तनाव कम ही नहीं होता है।
आँसुओं के चुगलखोरी करने के बहुत से कारणों को यहाँ सार रूप से लिखा है। इनके अतिरिक्त भी और कई कारण हो सकते हैं, जब ये आँसू मनुष्य की आँखों से बाहर निकलकर गंगा-यमुना बहाने लगते हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि चाहे मनुष्य का सुख-समृद्धि का समय हो या फिर दुख-परेशानी का काल, दोनों ही अवस्थाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने से ये आँसू नहीं चूकते। आँसू रूपी ये मोती अवसर मिलते ही मनुष्य की आँखों से बाहर निकलने की फिराक में रहते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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