मन का खालीपन
बहुधा ऐसा होता है कि मनुष्य का मन बिना किसी कारण के परेशान हो जाता है। उस समय मनुष्य को लगता है कि वह संसार का सबसे अधिक दुखी प्राणी है। इसे दूसरे शब्दों में कहें, तो मनुष्य के मन में एक तरह का खालीपन समा जाता है। एक ही जैसा बोरियत वाला काम करते हुए मनुष्य उकता जाता है या ऊब जाता है। उस समय वह उससे भागकर कहीं चले जाना चाहता है, जो उसके लिए सम्भव नहीं होता।
खालीपन का अर्थ है कोई काम न होना। वैसे यह खालीपन जीवन के लिए अच्छा नहीं होता। यदि मनुष्य के जीवन में कहीं कुछ खालीपन आ जाता है, तो उसे उसको अपनी इच्छानुसार भरने का प्रयास करना चाहिए। वैसे तो कोई भी मनुष्य नहीं चाहता कि उसके जीवन में किसी चीज की कोई कमी रह जाए। चाहे वह कमी घर की हो, गाड़ी की हो या अन्य सुख-सुविधा की हो, जिनसे लोग अक्सर अपने जीवन में वंचित रह जाते है।
खालीपन महसूस करने वाले सब लोग एक ही तरह से सोचते हैं। उन्हें सदा यही लगता है कि उनका जीवन अर्थहीन हो गया है। उनके पास कुछ भी करने के लिए नहीं है। मनुष्य से मानो उसके होने के अस्तित्व का अहसास छिन जाता है। वह स्वयं को अन्दर से खोखला महसूस करने लगता है। वह किसी से बात ही नहीं करना चाहता, पर अपने अकेलेपन से वह घबरा जाता है।
सयाने कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। एक खाली घर में यदि कोई व्यक्ति अकेला रहता है, उसका वहाँ पर मन नहीं लगता। वह परेशान हो जाता है। उसमें उल्टे-पुल्टे विचार घर करने लगते हैं। इसी प्रकार जब मनुष्य का मन खाली हो जाता है, तो उसमें नकारात्मक विचार भरने लगते हैं। वे उसका सुख-चैन सब हर लेते हैं, उसे निराशा घेरने लगती है और वह छटपटाने लगता है।
यदि जीवन में सब कुछ पहले से विद्यमान होता है, तो मनुष्य उन सब चीजों से ऊब जाता है। अभी तक जो चीजे उसे सुख देती थीं, वही उसके दुःख का कारण बनने लगती हैं। मनोचिकित्सकों का मानना है कि ऐसी स्थिति में मनुष्य के खालीपन से मानसिक डिसऑर्डर या पर्सनैलिटी डिसऑर्डर हो सकता है, शराब या ड्रग्स की लत लग सकती है, अवसाद या डिप्रेशन में जा सकता है, उसे अस्तित्व सम्बन्धी संकट हो सकता है।
मनुष्य को चाहिए कि किसी भी छोटी या बड़ी उपलब्धि पर उसे स्वयं को बधाई देनी चाहिए। अपनी पीठ थपथपानी चाहिए। इससे प्रसन्नता होती है। अपने विचारों को सकारात्मक बनाने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य जब अपने जीवित होने या अस्तित्व को स्वीकार करने लगता है, तो उसमें उत्सह आने लगता है। दूसरों की राय को अनावश्यक महत्त्व नहीं देना चाहिए।
मनुष्य के मन में जब किसी भी कारण से खालीपन समाने लगता है, उस स्थिति में वह आत्महत्या तक कर लेता है। यह स्थिति मनुष्य के लिए स्वास्थ्यवर्धक नहीं होती। इस अवसादपूर्ण अवस्था से मनुष्य का बाहर निकलना बहुत आवश्यक होता है। इसके लिए उसे अपनों के साथ की आवश्यकता होती है। परिवारी जनों को चाहिए कि ऐसे मनुष्य को अकेले न छोड़ें। सदा ही कोई न कोई उसके साथ रहना चाहिए।
मन के खालीपन के कारणों के विषय में मनुष्य को विचार करना चाहिए। खालीपन को स्वीकार कर लेना चाहिए। इससे बचने के लिए टीवी देख सकते हैं या वीडियो गेम्स खेल सकते हैं। अपने विचारों और सपनों पर ध्यान देना चाहिए। इस समय योग करना चाहिए, किसी मनपसन्द साज को बजाना चाहिए। लेखन कार्य भी किया जा सकता है, बागवानी में समय बिताया जा सकता है।
मनुष्य को जिस काम में मजा आता हो या जो उसकी हॉबी हो, वह उस कार्य को कर सकता है। अपने बन्धु-बान्धवों से मिलकर मन को प्रसन्न कर सकता है। मन को बहलाने के लिए किसी मनोरम स्थान पर घूमने जा सकता है। इन सबसे बढ़कर वह अपनी रुचि की पुस्तकें पढ़ सकता है। ईश्वर की आराधना में अपना ध्यान लगा सकता है। इस तरह करने से कुछ समय बाद इस खालीपन के स्थान पर आनन्द का अनुभव होने लगेगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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