प्रतिकूल समय होने पर
मनुष्य को समय के अनुसार व्यवहार करना चाहिए। जब उसका समय प्रतिकूल चल रहा हो यानी वह दुखों-परेशानियों में घिरा हुआ हो, तो उस समय मनुष्य को झुक जाना चाहिए। मनुष्य को छोटे-छोटे पेड़ों की तरह झुककर अपना समय व्यतीत करना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि जब तूफान आता है अथवा तेज आँधी चलती है, तब झुक जाने वाले पेड़ बच जाते हैं।
इसके विपरीत आँधी-तूफान आने पर जो पेड़ तनकर सीधे खड़े होते हैं, वे टूटकर गिर जाते हैं। उनका विनाश हो जाता है। उस समय यदि वे भी थोड़ा झुक जाते, तो शायद उनका अन्त नहीं होता। इसी तरह जब समय अपना साथ न दे रहा हो, तब मनुष्य को अपने घमण्ड में नहीं रहना चाहिए। उस समय उसे आत्मचिन्तन करना चाहिए, अपने कष्टों को दूर करने का उपाय सोचना चाहिए और समय परिवर्तन होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।
किसी कवि ने बड़े ही सुन्दर शब्दों में विश्लेषण किया है-
वहेदमित्रं स्कन्धेन यावत्कालविपर्यय:।अथैवमागते काले भिन्द्याद् घटमिवाश्मनि॥
अर्थात् जब प्रतिकूल समय यानी विपरीत समय चल रहा हो, तो अपने दुश्मन को कन्धे पर बैठा कर रखना चाहिए। अनुकूल समय आने पर उसे वैसे ही नष्ट कर देना चाहिए, जैसे मटके को पत्थर पर फोडा जाता है।
इस श्लोक का अर्थ है कि अपना समय जब साथ नहीं देता, तब शत्रु के साथ समझौता करना या उससे मधुर सम्बन्ध बनाकर रखना हितकर होता है। परन्तु इस बात का मन में हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि शत्रु आखिर शत्रु ही होता है। वह कभी भी डंक मार सकता है यानी वह मनुष्य का अप्रिय करके उसे हानि पहुँचा सकता है। इसलिए जब उचित अवसर मिल जाए, तो उसे पटकनी दे देनी चाहिए।
यहाँ उदाहरण देते हुए कवि ने कहते हैं कि मनुष्य को पता है कि गन्दे पानी से भरा मटका छलककर उसके कपड़ों को दूषित कर सकता है। फिर भी उस गन्दे पानी के मटके को तब तक अपने कन्धे पर उठाकर चलना चाहिए जब तक कोई मजबूत शिला न मिल जाए। जैसे ही पत्थर मिल जाए, उस मटके को तोड़ देने में चूक नहीं करनी चाहिए। यानी स्वयं को उस भार से मुक्त कर लेना चाहिए।
इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि मनुष्य को अपने दुखों और परेशानियों के समय अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए, अपितु उनका डटकर सामना करना चाहिए। प्रतिकूल समय के बाद निश्चित ही अनुकूल समय भी आता है। दुख के दिन भी व्यतीत हो जाते हैं। इस कष्टदायी समय में मनुष्य को अपने ऊपर सदा विश्वास बनाए रखना चाहिए, उसे डिगने नहीं देना चाहिए। तभी वह जीत सकता है।
यदि मनुष्य का आत्मविश्वास किसी भी कारण से डगमगा जाएगा, तो निश्चित ही वह जिन्दगी की रेस में हर जाएगा। उसे जीवन में हारना नहीं है, अपितु विजयी होने हैं। काले घने बादल जब सूर्य को आक्रान्त कर लेते हैं, तो धरती पर घटाटोप अन्धकार का साम्राज्य हो जाता है। ऐसे कठिन समय में बादलों के बरस जाने पर सूर्य फिर पहले की भाँति मुस्कुराता हुआ आसमान में चमकने लगता है।
इसी प्रकार मनुष्य को भी अपना कठिन समय बीत जाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। उसे धैर्य का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। अच्छा समय फिर आएगा ऐसी आशा बनाए रखनी चाहिए। उस समय अपने जीवन मूल्यों का त्याग करके मनुष्य को कुमार्ग की ओर कभी उन्मुख नहीं होना चाहिए। अपनी इस अवस्था के लिए ईश्वर को दोष कदापि नहीं देना चाहिए, बल्कि उसकी शरण में जाना चाहिए। इससे मन को शान्ति मिलती है और दुख सहने की शक्ति आती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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