स्वार्थ से ऊपर उठो
अपना पेट तो सभी जीव-जन्तु भर लेते हैं। तारीफ उसी में है कि मनुष्य अपने पेट को भरने के साथ-साथ दूसरों के विषय में भी सोचे। यदि मनुष्य केवल अपने ही विषय में सोचेगा तो उसमें और अन्य पशुओं में कोई अन्तर नहीं रह जाएगा। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके पड़ौस में कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए। यदि दो रोटी किसी को प्रेम से खिला दी जाएँ, जिससे उसका पेट भर जाए, तो पता नहीं वह कितने आशीष देगा।
'पञ्चतन्त्रम्' ग्रन्थ में पण्डित विष्णु शर्मा ने बताया है-
यस्मिन् जीवति जीवन्ति
बहव: स तु जीवति।
काकोऽपि किं न कुरूते
चञ्च्वा स्वोदरपूरणम्॥
अर्थात् जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीवित हुआ कहलाता है, क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता?
मनुष्य का जीवन तभी सार्थक माना जाता है, जब उसके जीवन से अन्य लोगों को अपने जीवन का आधार मिल सके। यानी जिस तरह से अन्य जीव जीवन जीते हैं, यदि हम मानव योनि पाकर भी उन्हीं की तरह से स्वयं का ही पेट भरने में ही सारा जीवन लगा दें, तो उसमें कोई विशेषता नहीं होती। कौआ अपनी चोंच द्वारा अपना ही पेट भरने में लगा रहता है । फिर उन जीवों और हम मनुष्यों में क्या अन्तर रह जाता है?
कहने का तात्पर्य है कि यह मानव योनि मनुष्य को परमार्थ के कार्य करने के लिए मिली है। इसका सदुपयोग हर मनुष्य को करना चाहिए। यदि मनुष्य अपने जीवन में स्वार्थी बन जाएगा, तो उसका यह जन्म व्यर्थ हो जाएगा। मनुष्य का स्वार्थ उसके परमार्थ के मार्ग की बाधा बन जाएगा, इसमें कोई सन्देह नहीं। ऐसे स्वार्थी मनुष्य को समाज में यथोचित स्थान भी तो नहीं मिल पाता।
'महाभारतम्' में वेद व्यास जी ने इस विषय में कहा है-
द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ
गले बद्ध्वा दृढां शिलाम्।
धनवन्तम् अदातारम्
दरिद्रं च अतपस्विनम्॥
अर्थात् इस संसार में दो तरह के व्यक्तियों का जीवन व्यर्थ है। पहले वे हैं जो धनी होकर भी दान नहीं करते हैं, दूसरे वे हैं जो गरीब होते हुए भी परिश्रम नहीं करते हैं। व्यास जी का कथन है इन दोनों प्रकार के लोगों के गले में पत्थर बाँधकर जल में डूबा देना चाहिए।
यानी धनवान व्यक्ति को दान या परोपकार के कार्य करते रहना चाहिए और गरीब की मेहनत करने में ही सार्थकता है। अन्यथा इनका जीवन व्यर्थ है। धन की उपयोगिता तभी है, जब वह किसी असहाय के काम आ सके। किसी जरूरतमन्द की सहायता कर सके। अपने द्वार पर आए किसी भूखे को रोटी खिला सके। ऐसे लोगों से घृणा करने के स्थान पर उनके लिए सहानुभूति रखे।
आज कॅरोना महामारी के चलते कितने ही लोग तन, मन और धन से मजबूर लोगों की सहायता कर रहे हैं। लॉकडाउन के चलते बहुत से लोगों का काम छूट गया है, वे बेरोजगार हो गए हैं। उन्हें रोटी के लाले पड़ गए हैं। उन्हें भोजन खिलाने का पुण्य कार्य कर रहे हैं, अनाज खरीदकर दे रहे हैं, ताकि वे भोजन बनाकर कहा सकें। कुछ लोग अपनी जेब से पैसा खर्च करके उन्हें अपने घरों में पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं।
वास्तव में महानता यही है कि एक मनुष्य, दूसरे मनुष्य की सहायता के लिए सदा तत्पर रहे। अपने मन की स्वार्थ भावना को त्यागकर उसे थोड़ा उदार बना ले। यदि सब लोग दूसरों को मदद करने के लिए आगे हाथ बढ़ाएँ, तो मानवता का कल्याण हो जाए। किसी को रोटी के फाके नहीं करने पड़ेंगे। किसी को कूड़े में फैंके हुए भोजन को बीनकर नहीं खाना पड़ेगा। तब मनुष्य सच्चे अर्थों में दीनबन्धु बनकर मानव जाति का कल्याण करेगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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