सन्तुलन का अभाव
मनुष्य के जीवन में सन्तुलन का होना बहुत आवश्यक होता है। यदि उसमें सन्तुलन का अभाव होगा, तब उसका जीवन बिखरने लगता है। कदम-कदम पर उसे सामञ्जस्य बिठाने की आवश्यकता होती है। चाहे घर या परिवार हो, चाहे कार्यक्षेत्र हो अथवा कोई सभा-सोसाइटी हो, हर स्थान पर उसे सन्तुलन रखना पड़ता है। जो व्यक्ति इस रहस्य को समझ लेता है, वह सर्वत्र सफल होता है।
घर-परिवार, बन्धु-बान्धवों में यदि सामञ्जस्य रखा जाए, तो ये सभी रिश्ते फलते-फूलते हैं। अन्यथा वे मुरझा जाते हैं। पति-पत्नी, माता-पिता और बच्चों के साथ व्यवहार करते समय सन्तुलन बनाए रखना अति आवश्यक होता है। यदि पति-पत्नी में परस्पर सामञ्जस्य न हो तो, उनका रिश्ता बिखरने में समय नहीं लगता। इस प्रकार घर टूटने की कगार पर पहुँच जाता है। तब मासूम बच्चे इस बिखराव का शिकार बनते हैं। यद्यपि उन बेचारों का इसमें कोई दोष नहीं होता।
बन्धु-बान्धवों के साथ सन्तुलित व्यवहार न होने पर उनमें वैमनस्य बढ़ता है। शीघ्र ही वे रिश्ते आपस में कटने लगते हैं। जिस रिश्ते से ठीक से व्यवहार नहीं किया जाएगा, वही दूरी बना लेता है। तब एक समय ऐसा आ जाता है, जब इन्सान के बन्धु-बान्धव उससे किनारा करने लगते हैं। धीरे-धीरे मनुष्य अकेला होने लगता है। दूर-दूर तक उसे अपना कोई बन्धु दिखाई नहीं देता।
अपने कार्यक्षेत्र में सन्तुलन न बनाकर रखने की स्थिति में मनुष्य के मित्र कम और शत्रु अधिक बनने लगते हैं। फिर वे उसके हर अच्छे-बुरे कार्य में अड़ंगा लगाने लगते हैं। इस प्रकार वह हर समय परेशान रहने लगता है। इस अवस्था में उसका मन काम करने से उचटने लगता है। तब ऐसी स्थिति बन जाती है कि वह अच्छा करने लगता है, तो निश्चित ही उससे गलती हो जाती है। फिर उसे अपने बॉस से डाँट खानी पड़ी जाती है।
पड़ोसियों से भी सन्तुलन बनाकर रखना पड़ता है। अपने अहं के कारण उनसे सम्बन्ध बिगाड़े नहीं जा सकते। सुख-दुख के समय अपने बन्धु-बान्धव तो समय से पहुँचते हैं, पड़ोसी पहले आकर साथ खड़े होते हैं। ऐसे लोगों से मनमुटाव कर लेना किसी भी तरह उचित नहीं होता। उनके साथ अपने सम्बन्ध हमेशा ही मधुर होने चाहिए। छोटी-मोटी बात यदि हो भी जाए तो उसे अनदेखा करना चाहिए।
अब अपने जीवन की बात करते हैं। वहाँ आहार-विहार का सन्तुलन करना परम् आवश्यक होता है। हमारा भोजन सुपाच्य होना चाहिए। जंक फूड के स्थान पर घर का बना सादा भोजन खाना कहीं अधिक श्रेयस्कर होता है। इससे मनुष्य के पास बीमारियाँ कम आती हैं। अधिक तल हुआ या जंक फूड अपेक्षाकृत अधिक स्वादिष्ट हो सकता है, पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
विहार यानी सैर करना शरीर के लिए अच्छा होता है। मनुष्य यदि भ्रमण करने का स्वभाव बना ले, तो शरीर स्वस्थ रहता है। समय पर सोने और समय पर जागने से शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। मनुष्य को आलस्य नहीं सताता। उसके कार्यों की गुणवत्ता बनी रहती है। जिससे उसकी सर्वत्र प्रशंसा होती रहती है। आहार तथा विहार के सन्तुलन से मनुष्य रोगों से दूरी बनाकर रखता है।
मनुष्य को हर कदम पर सन्तुलन बनाने की आवश्यकता होती है। समाज में ऐसे व्यक्ति को लोग पूछते हैं, जो सबके साथ अच्छा व्यवहार करता है। उनकी दृष्टि में ऐसा व्यक्ति सम्मननीय होता है। मन, वचन और कर्म से सन्तुलन बनाने वाला वाकई महान होता है। इसका प्रदर्शन करने वाले का मुखौटा शीघ्र ही उतर जाता है और उसकी पोल खुल जाती है। तब वह कहीं का नहीं रह जाता।
इस सम्पूर्ण चर्चा का सार यही है कि मनुष्य को दूसरों के लिए नहीं बल्कि अपनी मानसिक शान्ति बनाए रखने के लिए सन्तुलन बनाकर रखना चाहिए। इससे उसके मित्रों और बन्धु-बान्धवों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती रहती है। तथा उसके शत्रु अपेक्षाकृत कम होते हैं। ऐसे ही व्यक्ति जीवन की रेस में जीत जाते हैं। यही वे लोग हैं जो हर ओर से अपने नाम पर वाहवाही लिखवा लेते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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