मंगलवार, 8 सितंबर 2020

समाज का कल्याण

 समाज का कल्याण

समाज की भलाई के लिए मनुष्य को ऐसे कार्य करने चाहिए, जिससे समाज का कुछ भला हो सके। सामाजिक प्राणी मनुष्य इस समाज से बहुत कुछ लेता है। बदले में उसे समाज के लिए कार्य करने चाहिए। उसे कुछ पुण्य कार्य भी करने चाहिए। ये नेक कार्य उसे महान बनाते हैं। इन कार्यों को करने से मनुष्य को आत्मतुष्टि मिलती है। इस प्रकार उसके मन में एक प्रकार का उत्साह बना रहता है।
            निम्न श्लोक में कवि ने इसी विषय पर अपने विचार रखे हैं-
जलान्तश्चन्द्रचपलं जीवनं खलु देहिनाम्।
तथाविधिमिति त्वाशाश्वत्कल्याणमाचरेत्॥
अर्थात् जिस प्रकार चन्द्र का प्रतिबिम्ब अस्थिर होता है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी अनिश्चित और अस्थिर होता है। विधि के इस विधान को जानते हुए मनुष्य को ऐसे कार्य करते रहना चाहिए, जिस से समाज का शाश्वत कल्याण हो।
           मनुष्य सदा के लिए इस संसार मे डेरा डालकर नहीं रहने वाला। अपने प्रारब्ध के अनुसार निश्चित जीवन जीने के पश्चात उसे यहाँ से विदा लेनी पड़ती है। कवि के अनुसार चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब स्थिर नहीं होता, अस्थिर होता है। उसी प्रकार मनुष्य का यह जीवन भी होता है। इसलिए मनुष्य को भलाई के कार्य करते रहना चाहिए। नहीं तो अन्त समय में उसे प्रायश्चित करना पड़ता है कि जीवन व्यर्थ गँवा दिया।
         उस समय मनुष्य को पल भर की मोहलत भी नहीं मिलती। मनुष्य ईश्वर से चाहे कितनी भी मिन्नत क्यों न कर ले। सब व्यर्थ रहता है। समय रहते यदि विचार कर लिया जाए तो उपयुक्त रहता है। मनुष्य सारी आयु शुभ कार्य करता रहे, तो अन्त तक उसका स्वभाव बना रहता है। यदि मनुष्य यही सोचता रहे कि बाद में कर लेंगे नेक कार्य, अभी और कार्य कर लें। तब यह जीवन बीत जाता है, पर वह बाद कभी आ ही नहीं पाता।
          मनीषी कहते हैं कि प्रतिदिन एक नेक कार्य अवश्य करना चाहिए। इसका कारण है कि मनुष्य को नेक कार्य करने की आदत होनी चाहिए। जब वह नेक कार्य करने लगता है, तब कुछ अच्छा करने की आदत मनुष्य को हो जाती है। ऐसे कार्य करने से उसके मन में उत्साह बना रहता है। फिर वह जो भी कार्य करता है, उन्हें पूर्ण कर लेता है, अधूरा नहीं छोड़ता। साथ ही कल कर लूँगा वाली भावना उसमें नहीं आ सकती।
           मनुष्य को नेक कार्यों को मन से करना चाहिए, उनका प्रदर्शन उसे कभी नहीं करना चाहिए। इससे वह दूसरों को नहीं, स्वयं को धोखा देता है। ऐसे मनुष्य के मन में नेकी या परोपकार करने वाले भाव कभी नहीं आते। यह सत्य है कि बनावटी व्यवहार की पोल कभी न कभी खुल जाती है। उस समय दिखावटी मनुष्य को समाज में अपमानित होना पड़ता है। जहाँ तक हो सके मनुष्य को सच्चाई के मार्ग पर ही चलना चाहिए।
           मनुष्य जितना अपने व्यवहार में उदारता लाता है, उतना ही वह विनम्र बनता जाता है। यदि उसमें नेक कार्यों को करने का अहंकार आ जाए, तो वह सदा तनकर रहता है। तब उसका विनाश होने में बहुत अधिक समय नहीं लगता। मनुष्य यदि शुभ कार्य करता है, तो अपनी मानसिक शान्ति के लिए करता है। उसे दूसरे लोगों पर अपनी धाक जमाने का प्रयत्न कदापि नहीं करना चाहिए।
           नेक कार्य करते करते मनुष्य में नेकी अथवा सात्विकता की भावना पनपने लगती है। उसका हृदय दया, ममता, करुणा आदि मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत हो जाता है। धीरे-धीरे उसका जीवन दूसरों के लिए एक उदाहरण बन जाता है। ऐसे इन्सान का सर्वत्र सम्मान होता है। लोग उसकी तरह महान बनने का प्रयास करने लगते हैं। ऐसा व्यक्ति अपने सुकृत्यों के कारण स्वयं ही ईश्वर के करीब हो जाता है, उसका प्रिय बन जाता है।
चन्द्र प्रभा सूद

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