छोटी-छोटी बचत
भारतीय संस्कृति केवल इस जन्म को नहीं अपितु जन्म-जन्मान्तरों के सम्बन्ध को मानती है। इसलिए लेन-देन के व्यवहार में यहाँ सदा पारदर्शिता वरती जाती है। मनीषी ऐसा मानते हैं कि इस जन्म का लिया हुआ यदि चुकता न किया जाए अथवा आपसी के लिए व्यवहार में बेईमानी की जाए तो अगले जन्म में उसका कई गुणा अधिक भुगतान करना पड़ता है। इसलिए जन साधारण के मन में यह बात रची बसी हुई है।
विदेशों में इस विषय पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। वहाँ हर वस्तु ऋण लेकर यानी किश्तों पर खरीदी जाती है। उन्हीं की तरह आज का युवावर्ग भारत में भी इसी का अनुसरण कर रहा है। घर, गाड़ी, टी वी, फ्रिज, ए सी, वाशिंग मशीन आदि कोई भी वस्तु लेनी हो, किश्तों पर ले लो। बाद में धीरे-धीरे करके चुकाते रहेंगे। आजकल तो देश-विदेश की यात्राएँ भी लोग किश्तों पर पैसा लेकर करने लगे हैं।
ईश्वर न करे यदि दुर्भाग्य से किसी ली गई वस्तु की एक किश्त का भुगतान समय पर न किया जाए, तो उन कम्पनी वालों के गुण्डे बहुत बुरा व्यवहार करते हैं, धमकियाँ देते हैं। तब वे खरीदी हुए वस्तुओं को भी उठाकर ले जाते हैं। आस-पड़ोस में और फिर उनके कार्यालय में जाकर उन्हें अपमानित करने का प्रयास करते हैं। उनके विरुद्ध कोर्ट में क्रिमिनल केस तक दायर कर देते हैं।
इन विदेशियों की तरह बहुत वर्षों पूर्व भारत में भी एक सम्प्रदाय पनपा था, जिसे चार्वाक कहते हैं। उनका सिद्धान्त यही था-
यावज्जीवेत् सुखं जीवेत्
ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्।
भस्मिभूतस्य देहस्य
पुनरागमनं कुतः?
अर्थात् जब तक जीवित रहो, सुखपूर्वक रहो। अपने पास धन नहीं है, तो ऋण लेकर घी पीओ।यह शरीर भस्म होने वाला है, इसका पुनर्जन्म नहीं होने वाला।
इसीलिए इस सम्प्रदाय को समाज में कोई महत्त्व नहीं मिला। इसे नकारात्मक सम्प्रदाय का नाम देकर इसे सिरे से नकार दिया गया। मनीषियों ने उन्हें धर्मविरोधी घोषित करके उन लोगों को ही समाज से तिरस्कृत कर दिया। इसलिए आज भी भारतीय मानस कर्ज या ऋण लेने के नाम से बहुत घबराता है। लोग सोचते हैं पल्ले पैसा है, तो वस्तु खरीद लो अन्यथा कुछ दिन और रुक जाओ।
भारतीय जन मानस को घुट्टी में यह सीख मिली हुई है कि अपनी कमाई में से प्रति मास कुछ धन अपने अच्छे-बुरे समय या धूप-छाँव के लिए अवश्य ही बचा लेना चाहिए। जब कभी कोई कठिनाई आए तो उस बचाए हुए धन का उपयोग मनुष्य को कर लेना चाहिए। किसी से भी माँगने की आवश्यकता मनुष्य को नहीं पड़नी चाहिए। बड़े-बुजुर्गों की इस सीख ने भारतीयों को बचाकर रखा हुआ है।
कुछ वर्ष पूर्व विश्व आर्थिक मन्दी के भयंकर दौर से गुजर रहा था। तब उस समय विश्व की महाशक्ति कहे जाने वाले देश अमेरिका के कई बैंक डूब गए थे। हमारे भारतीयों की इस छोटी-छोटी बचत वाली आदत के कारण हमारा देश भारत सरलता से उस परेशानी से उबर सका था। अन्यथा पता नहीं यहाँ भी हमें कितना कुछ भुगतान करना पड़ जाता। इसका श्रेय हमारे पूर्वजों को जाता है।
प्रत्येक मनुष्य को अपनी वृद्धावस्था के लिए भी समय रहते ही बचत कर लेनी चाहिए। ताकि उस समय बच्चों के सामने हाथ फैलाने की आवश्यकता न पड़े। बच्चे समझदार और आज्ञाकारी होंगे, तो उन्हें कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। वे बिना कुछ कहे ही स्वयं सब सम्हाल लेंगे। और यदि नालायक होंगे, तो परवाह ही नहीं करेंगे। उस समय अशक्त होता मनुष्य कोई कार्य नहीं कर सकता।
उस समय मनुष्य के अपने पास यदि कुछ बचत होगी, तो वह सरलता से अपना जीवन व्यतीत कर लेगा। तब उसे छोटे-छोटे खर्चों के लिए किसी का मुँह नहीं देखता पड़ेगा। हर मनुष्य को इस बारे में सावधान रहना चाहिए। जैसे बूँद बूँद जल से घट भर जाता है। उसी प्रकार की गई छोटी-सी बचत मनुष्य को बचा लेती है। हमें अपने मनीषियों का धन्यवाद करना चाहिए, जिन्होंने जीवन जीने का इतना अच्छा गुर सिखाया।
चन्द्र प्रभा सूद
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