पति-पत्नी में अहम्
पति और पत्नी एक-दूसरे के पूरक होते हैं, प्रतिद्वन्द्वी कदापि नहीं होते। इसलिए उन दोनों को एक गाड़ी के दो पहिए कहा जाता है। इनमें से किसी एक के न होने की स्थिति में गृहस्थी की गाड़ी डगमगाने लगती है। वह गति नहीं पकड़ पाती। इन दोनों में जब सामञ्जस्य होता है, तब घर बहुत अच्छी तरह चलता है। यदि किसी कारण से दोनों में वैमनस्य की स्थिति उतपन्न हो जाए, तब सब कुछ गड़बड़ा जाता है।
पति यदि अपने धन-वैभव पर अथवा उच्च पद पर या अच्छे वेतन पर या फिर अपने व्यवसाय पर घमण्ड करता है, तो यह उचित नहीं है। हमारी भारतीय संस्कृति में पुरुष को धन कमाने का दायित्व सौंपा गया है और पत्नी को उस कमाए गए धन की सुचारु व्यवस्था की जिम्मेदारी दी गई है। इसलिए पति का इस विषय में गर्व करना कोई मायने नहीं रखता। उसे अपनी कमाई पत्नी को सौंपनी चाहिए। दोनों को मिलकर अपनी गृहस्थी की पालना करनी होता है।
आजकल के मँहगाई के इस युग में स्त्रियाँ पढ़-लिखकर नौकरी या व्यवसाय करने लगी हैं। इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि उनका दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ जाए। वे किसी को अपने बराबर समझें ही नहीं। पति-पत्नी दोनों को मिलकर अपनी गृहस्थी का दायित्व वहन करना चाहिए। इसमें तेरे या मेरे की कोई गुँजाइश ही नहीं रह जाती। जो वे दोनों कमाते हैं, वह सब घर के लिए है। उसमें कुछ भी किसी की पर्सनल नहीं।
पैसा सारे फसाद की जड़ है। यदि यह आवश्यकता से कम हो तो घर में सदा कलह-क्लेश रहता है। यदि यह जरूरत से अधिक हो जाए तो भी लड़ाई-झगड़ा होता रहता है। दोनों ही स्थितियाँ सही नहीं हैं। होना तो यह चाहिए की जितना भी धन घर में आता है, उसी के अनुसार गृहणी को उसकी व्यवस्था करनी चाहिए। प्रतिदिन की उठा-पटक से घर की शान्ति भंग होती है और घर नरक के समान कष्ट-क्लेश से भर जाता है।
यदि पति या पत्नी अपने स्मार्ट होने का गर्व करते हैं, तो सर्वथा अनुचित है। इसका घर-गृहस्थी से कोई लेना देना नहीं होता। सुन्दरता या स्मार्टनेस कुछ समय बाद ढल जाती है। किसी बीमारी के कारण भी यह कमतर हो जाती है। घर चलाने के लिए केवल सुघड़ता की आवश्यकता होती है। अधिक खर्चीला होने से घर की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ता है। इसलिए पति और पत्नी दोनों को ही सदा सावधान रहना चाहिए।
पति अथवा पत्नी दोनों में किसी के भी विवाहेत्तर सम्बन्ध मान्य नहीं होते। यह नाजायज सम्बन्ध घर की चूलें हिलाकर रख देता है। ऐसे घरों में अलगाव की स्थिति बन जाती है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा मासूम बच्चों को भुगतना पड़ता है, जो इन सबसे अनजान होते हैं। इसका अर्थ यही है कि दोनों में परस्पर विश्वास का होना बहुत आवश्यक होता है। इन सम्बन्धों में सदा पारदर्शिता होनी चाहिए।
पति और पत्नी का अहं कभी आड़े नहीं आना चाहिए यानी परस्पर टकराना नहीं चाहिए। दोनों को ही मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। इस घमण्ड से किसी की भी जीत नहीं हो सकती। घर में जितना प्यार और मोहब्बत का वातावरण रहेगा, उतना ही वहाँ सुख-समृद्धि का साम्राज्य रहेगा। पति-पत्नी के मध्य 'मैं बड़ा या मैं बड़ी' वाली स्थिति कभी आनी ही नहीं चाहिए। दोनों की घर में बराबर की उपयोगिता होती है, किसी एक की नहीं।
पति-पत्नी में न कोई छोटा होता है और न ही कोई बड़ा कहलाता है। दोनों ही गृहस्थी में समान पद पर हैं। दोनों के कार्यों में विविधता होती है। इसलिए उनमें किसी प्रकार का कोई अहं नहीं होना चाहिए। यह ठीक है कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है। इससे पत्नी के सम्मान पर किसी तरह की कोई आँच नहीं आती। 'यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते' कहकर मनीषियों ने स्त्री के गौरव को सदा बढ़ाया ही है।
अन्त में मैं यही कहना चाहूँगी कि दोनों को अपने सम्बन्धों को बिना किसी पूर्वाग्रह के ईमानदारी और सच्चाई से निभाना चाहिए। तभी पति-पत्नी की वह जोड़ी समाज की दृष्टि में आदर्श कही जाती हैं। उनका घर सबके लिए एक उदाहरण बन जाता है। ऐसे घर में निवास करने के लिए देवता भी तरसते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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