संसर्ग का महत्त्व
मनुष्य के जीवन में संसर्ग या संगति का बहुत महत्त्व होता है। जैसी संगति में मनुष्य रहता है, वह वैसा ही बन जाता है। उत्तम जनों की संगति में रहने वाले मनुष्य जीवन में उत्तम गुणों वाले बनते हैं। मध्यम श्रेणी के लोगों में रहने वाले लोगों में उत्तम तथा अधम दोनों ही लोगों के विचार रहते हैं। अधम मनुष्य सदा ही निम्न गुण रखने वाले होते हैं। इसलिए उनके सम्पर्क में रहने वाले भी वैसे ही बन जाते हैं।
महाराज भर्तृहरि के निम्न श्लोक में संगति के महत्त्व को दर्शाया गया है-
सन्तप्तायसि संस्थितस्य पयसो नामापि न ज्ञायते
मुक्ताकारतया तदेव नलिनीपत्रस्थितं राजते।
स्वात्यां सागरशुक्तिमध्यपतितं तन्मौक्तिकं जायते।
प्रायेणाधममध्यमोत्तमजुषामेवं विधा वृत्तयः।
अर्थात् गर्म लोहे पर जब पानी की बूँद पड़ती है, तो उसका नाम-निशान भी नहीं रहता। वही बूँद कमल के पत्ते पर गिरकर मोती के समान चमकने लगती है। जब पानी की बूँद स्वाति नक्षत्र में समुद्र की सीप में पड़ती है, तो मोती बन जाती है। अतः यह सिद्ध हुआ कि अधम, मध्यम और उत्तम गुण मनुष्य में संन्सर्ग से ही उत्पन्न होते हैं।
इस श्लोक में कवि ने उदाहरण देकर समझाने का प्रयास किया है। सबसे पहले वे कहते हैं कि गर्म लोहे पर यदि पानी की एक बूँद डाली जाएगी, तो वह भाप बनकर उड़ जाएगी। यानी शीतल जल उस गर्म लोहे पर बेअसर हो जाता है। इसी प्रकार अधम लोगों की संगति मनुष्य को मानो जला देने का कार्य करती है। वहाँ पर सरलता, सहजता आदि का कोई कार्य नहीं होता।
मनुष्य उन लोगों की संगति में बस बिखर जाता है। बड़े कष्ट की बात है कि वह चाहकर भी सम्हल नहीं पता। उसका अपना अस्तित्व मानो तिरोहित हो जाता है। वह घर-परिवार, बन्धु-बान्धवों और समाज से कटकर रह जाता है। वह श्रेष्ठ लोगों में बैठने के लायक नहीं रह जाता। उस पर अधम होने का जो ठप्पा लग जाता है, वह मिटाया नहीं जा सकता। इसलिए वह सबसे दूर होने लगता है।
पानी की वही बूँद जब कमल के पत्ते पर पड़ी होती है, तब वह मोती की तरह चमकती है। पानी की बूँद मोती बनती नहीं, पर मोती होने का अहसास करवाती है। इसी प्रकार मध्यम श्रेणी के लोग अच्छी संगति में आकर चमकते हैं। परन्तु यदि निम्न लोगों के पास जाएँ तो बर्बाद हो जाते हैं। मध्यम कोटि के लोगों के संसर्ग में आकर अपनी पहचान बनाने का प्रयास करते हैं। अधम लोगों से ये कुछ विशेष ही होते हैं।
ये मध्यम कोटि के लोग अपनी। पहचान यानी सफेदपोशी को बनाए रखने का प्रयत्न करते हैं। ये नहीं चाहते कि कोई उन्हें भला-बुरा कहे, उनकी कमी निकाले। ये लोग अपने कार्यों को करते समय सदा ही सावधान रहते हैं। ऐसे लोग समाज के समक्ष अपनी साफ-सुधरी छवि ही प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं, जो बेदाग होती है। ऐसे लोगों के लिए सदा भय रहता है कि कहीं ये किसी स्वार्थवश अधम लोगों की संगति न कर बैठें।
स्वाति नक्षत्र में में जब पानी की बूँद समुद्र में सीप पर पड़ती है, तब वह मोती बन जाती है। यह उस बूँद का उत्कर्ष होता है। मोती बहुत मूल्यवान होता है। इसकी कीमत बहुत होती है। सीप के संसर्ग में आकर पानी की बूँद का मोती बनने का अर्थ है कि सज्जनों के सम्पर्क में आकर मनुष्य भी अमूल्य बन जाता है। उनका साथ ही मनुष्य की उन्नति और सफलता का कारक होता है।
मनुष्य में जो भी कमियाँ या खोट होते हैं, वे सज्जनों के साथ से धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं। तब मनुष्य निष्कलुष हो जाता है। उसके चेहरे पर एक अलग तरह का ओज आ जाता है। महापुरुषों के संसर्ग एक आम इन्सान का जीवन पलट देता है। जिस प्रकार आदीग्रन्थ रामायण के रचयिता महाकवि वाल्मीकि और अंगुलिमाल डाकू के जीवन बदल गए। कोई सोच भी नहीं सकता कि उनका पूर्वजीवन इतना दुखद रहा होगा।
इस प्रकार संगति का बहुत प्रभाव मनुष्य जीवन पर पड़ता है। इसीलिए रहीम जी कहते हैं-
'जैसी संगति बैठिए तैसो ही फल दीन।' मनुष्य को प्रयास यही करना चाहिए कि वह सज्जनों की संगति करे। अपने जीवन को मोती की तरह मूल्यवान बना दे।
चन्द्र प्रभा सूद
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