सोमवार, 1 दिसंबर 2014

वैराग्य

वैराग्य क्या है? यह क्यों होता है? ऐसे प्रश्न मन में उठना स्वाभाविक हैं। वैराग्य की स्थिति बहुत उच्च होती है। यह वैराग्य मनुष्य को दो प्रकार से होता है- 1. वैराग्य और 2. श्मशान वैराग्य।
       संसार की असारता का जब मनुष्य को भान होने लगता है तो इसे वास्तव में वैराग्य कहते हैं। इस धरा पर जो भी जीव आता है उसे इस संसार से विदा लेनी पड़ती है। अगर यह कहें कि यह संसार नश्वर है, यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है। मात्र केवल ईश्वर का नाम स्थायी है। हमारी अनश्वर आत्मा नश्वर शरीर में निवास करती है।
      माता-पिता, भाई-बहन, मित्र आदि सभी भौतिक रिश्ते-नाते इस शरीर के नष्ट होने पर समाप्त हो जाते हैं, यहीं रह जाते हैं। सारी धन-संपत्ति जिसे मनुष्य कमाने में सारी आयु बिता देता है वह भी साथ नहीं जाती। जीते जी की सब माया है पर मरे पीछे सब व्यर्थ है।
       यह सब ज्ञान जब मनुष्य को होने लगता है तब उसके हृदय में वैराग्य जागृत हो जाता है। उस समय मनुष्य स्वामी दयानंद सरस्वती व भगवान बुद्ध आदि महापुरुषों की भाँति की घर-बार छोड़कर मनुष्य चिरन्तन सत्य की खोज में निकल पड़ता है। फिर वह जनकल्याण हेतु समाज को दिशा देता है।
        कभी-कभी विपरीत परिस्थितियों के चलते भी मानसिक आघात लगने से मनुष्य इतना अधिक किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है कि वह वैरागी बन जाता है।
      दूसरा वैराग्य हमें श्मशान में जाकर होता है जो क्षणिक होता है। वहाँ से बाहर निकल कर दुनिया के कारोबार करते हुए मन से दूर हो जाता है। मनुष्य जब वहाँ जब मृत व्यक्ति का संस्कार होते देखता है तब उसे संसार की असारता का ज्ञान होने लगता है। पर यह वैराग्य श्मशान से बाहर निकलते ही समाप्त हो जाता है। सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो जाता है।
         आजकल स्थितियों में कुछ परिवर्तन होता जा रहा है। लोग असहज होने के स्थान पर व्यावहारिक होने का यत्न करने लगे हैं। वहाँ जाकर राजनीति, शेयर, धन, संपत्ति की चर्चा में मस्त होने लगते हैं।
       ज्यों-ज्यों हम ईश्वर की प्रकृति, संसार, रिश्ते-नाते, जीवन-मरण, सुख-दुख आदि के विषय में विचार करते हुए गहरे डूबते जाते हैं उतनी ही वितृष्णा होती है। कुछ लोगों को यह वितृष्णा वैराग्य की ओर ले जाती हैं अर्थात् वे सांसारिक बंधनों से मुक्त हो सन्यास की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं और अन्य हमारी तरह वाद-विवाद करके स्वयं को संतुष्ट कर लेते हैं।
        परंतु वास्तव में 'संसार सब असार है नहीं सार है यहाँ' कहना उचित होगा।

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