सोमवार, 22 दिसंबर 2014

धृति(धैर्य)

धृति(धैर्य) का हमारे जीवन में होना बहुत आवश्यक है। इसके बिना मनुष्य के जीवन में उथल-पुथल मच जाएगी। कहने को तो सभी यह कहते हैं कि मुझमें बड़ा धैर्य है पर वास्तविकता इससे परे है। प्रश्न यह उठता है कि उसकी परीक्षा कब होती है? इस विषय में तुलसीदास जी कहते हैं कि आपात काल में धीरज की परीक्षा की जा सकती है।
         यह कथन अक्षरशः सत्य है। जब मनुष्य के जीवन में कष्ट का समय आता है तब ज्ञात होता है कि वह धैर्यवान है या नहीं। यदि वह धीरतापूर्वक उस कष्ट का समय व्यतीत कर लेता है तो वह सचमुच धैर्यशील है। इसके विपरीत यदि वह हाय तौबा मचाकर अपना तथा सभी अपनों का जीवन मुहाल कर देता है तो यह अधीरता कहलायेगी।
       धीर व्यक्ति अपने रास्ते स्वयं ही चुनते हैं। अपने लिए जिस लक्ष्य का वे निर्धारण करते हैं उसे जी-जान लगाकर निष्ठा पूर्वक प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। जब तक अपने लक्ष्य को पा नहीं लेते आराम नहीं करते  और लक्ष्य को भार मान उसे बीच मझधार में छोड़कर नहीं भागते।
       धैर्यवान अपने कार्य को पूरा करके ही दम लेते हैं चाहे उन्हें कितनी ही कठिनाइयों का सामना करना पड़े। चाहे वह कार्य आकाश की ऊँचाई को नापना हो, ग्रह-नक्षत्रों की सैर करनी हो, समुद्र की गहराई की थाह लेनी हो, पर्वतों का सीना चीर कर मार्ग बनाना हो या हम सबकी सुख-सुविधाओं के लिए अविष्कार करने हों। वे सभी चुनौतियों का सामना बड़े धैर्य से करते हैं।
       धीर-गंभीर व्यक्ति का सभी लोग सम्मान करते हैं।और उन्हें सिर आँखों पर बिठाते हैं। हम अपने जीवन में अनुभव करते हैं कि धैर्य का फल बहुत मीठा होता है।
          हर कार्य का फल समय से ही मिलता है। उसके लिए यदि हाय-तौबा करेंगे तो भी कुछ नहीं होगा।
      इस संसार में आने के लिए भी मनुष्य को नौ मास तक के समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। स्वयं जीव या माता-पिता भी कितने अधीर क्यों न हो जाएँ समय की प्रतीक्षा के अतिरिक्त उनके पास और कोई चारा नहीं होता।
       माली भी पेड़ लगाने के लिए बीज बोता है तो अगले ही दिन फल तोड़ कर बाजार बेचने नहीं जाता। हर प्रकार के फल व अनाज की फसल निश्चित समय पर होती है। माली या किसान कितने भी जल से सिंचाई कर ले समय से पहले इच्छित फल नहीं प्राप्त कर सकता धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करता है और उसकी सुरक्षा के नित-नये उपाय करता है।
       इसी प्रकार बच्चे को माता-पिता विद्यालय में पढ़ने के लिए भेजते हैं। ऐसा तो नहीं होता कि वह अगले ही दिन बारहवीं कक्षा पास करके विद्यालय से बाहर आ जाए। ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता क्योंकि वहाँ नर्सरी से बारहवीं यानी चौदह वर्ष तक का समय एक विद्यार्थी को पढ़ने के लिए आवश्यक होता है। उतने समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है और धैर्य रखना पड़ता है।
      यदि कोई इसके विपरीत सोचे तो उसे हम मूर्ख ही कहेंगे। हम धैर्यपूर्वक बच्चे के विद्यालय की शिक्षा समाप्त कर आगे पढ़ाई करने की प्रतीक्षा करते हैं।
        जीवन यापन बड़ी शान्ति व धीरज से करना पड़ता है अन्यथा अधैर्य को अपनाने से बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अधीरता करने से हमारे कार्य तो बिगड़ते ही हैं साथ ही जग हँसाई भी होती है। इसलिए धैर्य का साथ कदापि नहीं त्यागना चाहिए उसे एक आभूषण की भाँति अपनाना चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें