बुधवार, 3 दिसंबर 2014

जीवों की प्रकृति

संसार में आने वाले सभी जीव भिन्न-भिन्न प्रकृति के होते हैं। हम कुछ मुट्ठी भर लोगों को ही जानते हैं जो हमारे संपर्क में होते हैं शेष अन्यों को नहीं।
      मनुष्य अपने स्वभाव व आदतों से परखे जाते हैं। रहीम जी के इस दोहे के माध्यम से कौवे और कोयल का उदाहरण देते हुए लोनों को पहचानने का परामर्श देते हैं-
दोनों रहिमन एक से,  जब तक बोलत नाहीं।
जान परत हैं काक-पिक, ऋतु बसंत के माहीं॥
     इस दोहे के माध्यम से रहीम कौवे की मूर्खता और कोयल की मक्करी के बारे में बता रहे हैं। रंग व रूप में दोनों मिलते-जुलते हैं। दोनों का रंग काला है। कोयल मीठा गाकर सबका मन मोह लेती है पर कौवे की कर्कश ध्वनि के कारण लोग उसे कंकर मार कर उड़ा देते हैं। कोयल की मक्करी की हद तो देखिए अपने अंडे सेने के लिए कौवे के घोंसले में रख देती है। मूर्ख कौवा उसकी चाल नहीं समझ पाता। वसंत ऋतु जब आती है तब कोयल की आवाज़ के कारण उन दोनों का वास्तविक रूप सबके सामने आ जाता है।
       यह बहुत बड़ा सत्य है कि हम प्राय: लोगों को पहचानने में भूल करते हैं। दूसरों की चिकनी-चुपड़ी बातों में बिना आगा-पीछा सोचे आ जाते हैं जिससे हम धोखा जा जाते हैं।
     'दूरतः पर्वता: रम्या:'  अर्थात् दूर से देखने पर तो पर्वत भी सुन्दर लगते हैं पर पास जाने पर उनका सौंदर्य गायब हो जाता है और हमें परेशानियाँ दिखाई देने लगती हैं।
       उसी प्रकार सभी इंसान हमें देखने में भले प्रतीत होते हैं परंतु जब उनसे व्यवहार किया जाता है तब उनकी असलियत सामने आ जाती है कि वे कितने पानी में हैं।

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