रविवार, 21 दिसंबर 2014

ज्ञान बच्चों से भी

बच्चों को छोटा या अनुभवहीन मानकर उनका तिरस्कार करना उचित नहीं है। उनसे भी यदि कुछ सीखने को मिले तो झिझकना नहीं चाहिए बल्कि प्रसन्नता पूवर्क सहर्ष उनके सद् परामर्श का मान रखना चाहिए। उनकी प्रशंसा खुले मन से करके उनका उत्साहवर्धन करना चाहिए हतोत्साहित नहीं।
      छोटे बच्चे छल-कपट से दूर पारदर्शी,  भावुक, सरल, सच्चे व सहज होते हैं। ज्यों-ज्यों वे बड़े होते हैं समाज में व्याप्त बुराइयों को हैरान होकर देखते हैं। उनको हम अपने व्यवहार से छल-कपट सिखाते हैं। हमारी छोटी-छोटी को वे बड़ी बारीकी से जाँचते व परखते हैं। हमारे अनुचित व्यवहार को देखकर वे अपने भोलेपन में बहुत कुछ सुझाव देते हैं या सिखा जाते हैं। हम अपने बड़ेपन के अहंकार में उनकी तर्कसंगत बातों को अनसुना कर देते हैं। उन्हें अपनी हद में रहने के लिए कहकर दुत्कार कर चुप करा देते हैं।
       इस उक्ति को हम अनुचित नहीं कह सकते जो हमें सिखाती हैं- child is the father of man. 
       कुछ वर्ष पहले मैं अंतिम पीरियड में शायद दसवीं कक्षा में पढ़ा रही थी। छुट्टी की घंटी बजी। अचानक ही मेरे मुँह से निकला- 'चलो एक दिन और खत्म हुआ।' यह सुनते ही कक्षा में से एक बच्चे(उसका नाम अब याद नहीं) ने यह वाक्य सुनते ही तुरंत कहा- 'मैम आप  तो कभी ऐसी बात नहीं करतीं। फिर आज आपने कैसे यह कह दिया।' उस समय मैंने बस यही कहा-' यूँ ही मुँह ने निकल गया।'
         उसके बाद मैंने सोचा कि मैं तो बहुत आशावादी हूँ निराशा को अपने पास भी नहीं फटकने देती फिर मेरे मुँह से ये शब्द क्यों निकले? किसी मित्र को परेशानी में निराश होते देखकर या मस्तिष्क में आये किसी क्षणिक विचारमंथन के कारण हो सकता है कि अप्रत्याशित से ये शब्द मुँह से निकल गए हों।
      इस घटना में मुझे यह बात अच्छी लगी कि बच्चे हमारे आचार, व्यवहार या विचारों को बहुत बारीकी से जाँचते हैं। मैंने उसी समय यह निश्चय किया कि पुनः ऐसी गलती नहीं करूँगी।
      आज के वैज्ञानिक युग की बात करें तो छोटे-छोटे बच्चे भी कमप्यूटर व मोबाइल आदि भलीभाँति चलाना जानते हैं। यदि उनके जमाने की तकनीक को उनसे सीख लिया जाए तो इसमें मुझे कोई बुराई नहीं दिखाई देती। मैंने प्रायः लोगों को यह कहते सुना है- 'कौन सीखे इन बच्चों से?' है न वही अहम की टकराहट है जो हमें इस नयी तकनीक के ज्ञान से वंचित रख रही है।
       बच्चों में नित्य नया खोजने की सहज जिज्ञासा होती है। मेरी तरह आपने भी ध्यान दिया होगा कि जो भी वस्तु वे बाज़ार से खरीदते हैं घर पहुँचनते ही फटाफट उसका पोस्टमार्टम कर डालते हैं। अपनी इस बालसुलभ जिज्ञासा के कारण बहुधा वे डाँट-फटकार खाते हैं परंतु फिर भी इस आदत को नहीं छोड़ते। इसीलिए वे शीघ्र ही नई-नई जानकारी जुटा लेते हैं। जहाँ हम परेशान होते हैं वे चुटकियों में समाधान कर हमें हैरत में डाल देते हैं।
        आजकल प्रायः सभी विद्यालयों में पढ़ाई के माध्यम के रूप में कम्प्यूटर का शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। उनको गृहकार्य, परीक्षा, प्रोजेक्ट आदि में इसकी आवश्यकता होती है। इसलिए प्रायः सभी बच्चों इस तकनीक को बहुत अच्छी तरह जानते व समझते हैं।
       हम छोटे बच्चों को भगवान का रूप मानते हैं। और साथ ही यह भी कहते हैं कि उनके मुँह से निकली हर बात सच होती है। ऐसी मान्यताओं वाले हम इन बच्चों की अवहेलना करके गलत करते हैं। उन्हें भी पूरा महत्त्व देना चाहिए।

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