गुरुवार, 4 दिसंबर 2014

अवसाद

अनावश्यक रूप से अपने मन को व्यथित करना उचित नहीं। मन में नकारात्मक विचारों की अधिकता मानसिक संतुलन तक बिगाड़ देती है जिसे डाक्टरी भाषा में depression कहते हैं। दूसरों के द्वारा किए गए अपमान, अवहेलना, किसी प्रकार का मानिसक आघात, अकेलेपन का दंश आदि कोई भी कारण इस अवस्था के लिए हो सकता है।
        कभी-कभी किसी वस्तु या विचार की अति भी इसका कारण बन जाता है। जरूरत से अधिक संदेह, किसी काम की अति करना जैसे-
अति सोच, अति उत्साह, अति पढ़ाई, अति जागना, अति सोना, अति कंजूसी, अति खर्च, अति गुण, अति अवणुण, अति धर्म पालन, अति विरोध, अति नकारात्मक सोच आदि।
        इसीलिए ज्ञानी जन हमें समझाते हैं- 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' अर्थात् हर प्रकार की अति से बचना चाहिए। अति वर्षा से नदी-नाले अपने बाँध तोड़कर तबाही मचाते हैं। अति बोलने से अपने-परायों के लिए हम समस्याओं को न्योता देते है अति धूप से पूरा ब्रह्माण्ड त्रहि-त्राहि करने लगता है। अति चुपी से वातावरण श्मशान की तरह हो जाता है जिससे अवसाद जैसी परेशानियाँ जन्म लेने लगती है।
      कभी-कभी यह अवसाद बढ़ते-बढ़ते पागलपन की हद तक हो जाता है उसका परिणाम तो हम सभी जानते हैं।
      इस अति के कारण होने वाला अवसाद मन की वृत्ति बदलने से दूर होता है दवाइयाँ खाने से नहीं। अपने-आप को नकारात्मक विचारों से मन को हटाकर सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रखें तो सब आलतू-फालतू विचार छूमंतर हो जाते हैं।
         हर चीज के दो पहलू हैं- अच्छाई और बुराई। यह तो व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि उसे क्या पसंद है? जैसे कोयले की खान में हीरा भी मिलता है। इसी तरह नकारात्मक और सकारात्मक दोनों विचारों में से किसी एक को हम अपनाते हैं।
      मानसिक शांति के लिए आत्म नियन्त्रण आवश्यक है। इसलिए यत्नपूर्वक सद् ग्रन्थों के अध्ययन, सत्संगति, सकारात्मक विचारों से हम अपने मन को साधकर अनावश्यक कष्टों से स्वयं की रक्षा करके सभी अपनों के साथ चैन से जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

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