गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

शक

शक का बीज जब मन में रोप दिया जाता है तो समझिए गए काम से। शक का पौधा ज्यों-ज्यों बड़ा होता जाता है हमारा सुख-चैन सब छीन लेता है। हमारी नींद गायब हो जाती है और परेशानी हमारा दामन थाम लेती है।
          कहते हैं कि इस शक की बीमारी का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं था जो हर मर्ज की दवा करते थे।
        शक का कीड़ा जब मन-मस्तिष्क में कुलबुलाने लगता है तो मनुष्य हर किसी को संदेह की दृष्टि से देखने लगता है। वह किसी पर भी विश्वास नहीं करता। पति अपनी पत्नि व बच्चों पर अविश्वास करता है। पत्नी अपने पति व बच्चों पर विश्वास नहीं करती। सभी एक-दूसरे को शक की नज़र से देखते हैं। मित्रों, सहयोगियों, भाई-बहनों, अपने व्यापारिक साथियों, नौकरों- चाकरों, ड्राइवरों आदि पर संदेह करने का तात्पर्य है सभी पर अविश्वास। सभी पर अविश्वास तो फिर विश्वासपात्र किसे बनाएँगे?
        अपने भाई-बंधुओं पर विश्वास न कर पाना भी एक प्रकार की बिमारी है। यह दीमक की तरह इंसान को भीतर से खोखला कर देती है। यदि अधिक बढ़ जाए तो मनुष्य मानसिक रोगी हो जाता है। उस विकट स्थिति में उसका उपचार करवाना आवश्यक हो जाता है।
         टीवी में हम देखते हैं व समाचार पत्रों में पढ़ते हैं कि इस नामुराद बिमारी के कारण तलाक हो जाते हैं। पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, भाई-बहन, मित्र व बिज़नेस पार्टनर आदि एक दूसरे की हत्या कर देते हैं या किराये के लोगों से खून करवा देते हैं और फिर कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते, बचने के उपाय में पैसा बरबाद करके भी सारी आयु जेल की सलाखों के पीछे बिताते हैं। इससे दूसरे का परिवार तो बिखरता ही है और अपना परिवार भी कष्ट भोगता है। जग हसाई अलग होती है तथा घर-परिवार सभी के लिए मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है।
     आपसी अविश्वास के कारण एक-दूसरे की जासूसी तक करवाते हैं लोग। इसलिए प्राइवेट जासूसों का जाल फैलता जा रहा है। सोचने की बात यह है कि क्या यह समस्या का समाधान हो सकता है?
एक बार यदि शक का घुन रिश्तों में लग जाए तो वे दरकने लगते हैं उनमें स्वभाविक प्रेम बिखर जाता है जो चिन्ता का विषय है।
        कभी-कभी अधिक विश्वास भी संदेह का कारण बन जाता है। इसके कारण मन-मस्तिष्क में द्वन्द्व की स्थिति बनती है। मनुष्य नकारात्मक विचारों से घिर जाता है। मन में चिन्ता, भय व संशय फन फैलाने लगते हैं। मनुष्य कुतर्क करने लगता है व यदाकदा बुरी आदतों का शिकार भी हो जाता है।
        योग हर प्रकार के संदेह में मुक्ति दिलाता है। विश्वास व संदेह के मध्य वाली अवस्था संशय का विरोध करता है।
        संदेह के कारण हम वो सफलता नहीं प्राप्त कर सकते जो हम पा सकते हैं। क्योंकि इंसानी कमजोरी है कि शक हो जाने पर वह हाथ में आए काम को छोड़  देता है। मन में आए संशय को दूर करने के लिए सर्वत्र सफलता की कामना करनी चाहिए। संदेह को यदि गले लगाकर रखेंगे तो दुनिया आगे बढ़ जाएगी और हम दौड़ में पिछड़ जाएँगें।
       संदेह से पीछा छुड़ाना बहुत सबके लिए ही बहुत आवश्यक है। उसके लिए स्वयं में विश्वास जगाना चाहिए। संदेह के स्थान पर यदि विश्वास रखें तो हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें