गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

चोरी एक अपराध

अस्तेय(चोरी न करना) सुनने में कुछ अटपटा सा लगता है। किसी भी व्यक्ति से यदि कहा जाए कि वह चोरी का व्यवहार न करे तो शायद वह लाठी लेकर हमारे पीछे आएगा या अनाप-शनाप शब्दों से हमारा स्वागत करेगा।
       यह सत्य है कि चोरी शब्द किसी की धन-सामग्री आदि को बिना पूछे उठा ले जाना या दूसरे की वस्तु को नजर बचाकर ले जाना कहलाती है।
      यदि हमें कुछ पसंद आ जाए और हम सोचें कि इसे हम उठा लें पर उठाएँ नहीं तो भी यह चोरी कहलाती है। यह भी एक प्रकार से चोरी ही कहलाती है। जसे हम मानसिक चोरी की संज्ञा देते हैं। इससे भी बचना चाहिए।
      जिस व्यक्ति में यह अवगुण होता है उसके जैसे लोग ही उससे दोस्ती करते हैं अन्य समझदार नहीं। न कोई उसे अपने पास बिठाता है और न ही अपने घर का मेहमान बनाता है। सबको इस बात का भय होता है कि कहीं उनकी वस्तु चुराकर न ले जाए।
       चोरी पकड़े जाने पर भारतीय दण्ड संहिता में सजा का प्रावधान है। विभिन्न धाराओं में इन अपराधों की सजा के विधान हैं।
      प्राचीन काल में हमारे देश में इस अपराध के लिए दंड का विधान था। उस समय चोरी की सजा के रूप में हाथ काट दिए जाते थे।
       कुछ लोगों को एक प्रकार की बिमारी होती है जिसमें मनुष्य कोई भी वस्तु कहीं से भी बिना पूछे उठाकर ले जाता है। यह भी चोरी ही कहलाती है। कई लोगों के घर के लोग जो उनकी इस आदत को जानते हैं उनसे बातों-बातों में जानकारी लेकर उस उठायी गई वस्तु को क्षमायाचना सहित वापिस कर आते हैं।
        कभीकभार बच्चे कुसंगति में पड़ जाते हैं और वे अपने अनाप-शनाप खर्चों के लिए घर-बाहर कहीं से भी चोरी करते हैं। ऐसे बच्चे समाज में हमेशा तिरस्कृत किए जाते हैं व पकड़े जाने पर सजा भी पाते हैं। उनके माता-पिता को बिना किसी अपराध के भी अपमानित होना पड़ता है।
       गरीबी में ही लोग चोरी करते हैं ऐसा कहना अक्षरशः सत्य नहीं है। अमीर घरों, अफ्सरों व बड़े पदों पर कार्य करने वालों के बच्चे भी बहुत बार चोरी करते हुए पकड़े जाते हैं। टीवी पर इस विषय पर चर्चा होती रहती है व समाचार पत्रों में भी न्यूज छपती रहती हैं।
         अब हम चर्चा करते हैं उस चोरी की जो प्रायः सभी लोग करते हैं। जब टैक्स देने का समय आता है तब इन्कम टैक्स, सेल्स टैक्स और एक्साइज ड्यूटी बचाने के तरह-तरह के प्रपंच करते हैं। झूठे- सच्चे खर्च दिखाते हैं। मकान,  दुकान या अन्य कोई प्रापर्टी खरीदनी हो तब भी  हम पूरे दिए गए पैसों पर टैक्स नहीं देते। जिससे खरीदते हैं उसे पूरा पैसा देते हैं परंतु टैक्स देने के समय हम बहुत कम पैसों पर। यह सभी चोरी के प्रकार हैं जिसके विषय में सोशल मीडिया आए दिन जानकारी देता रहता है।
        इसी प्रकार नौकरी के साथ अतिरिक्त कार्य से कमाए धन पर भी टैक्स का भुगतान नहीं करना भी चोरी ही कहलाती है। भ्रष्टाचार व बेईमानी से कमाया गया धन भी चोरी की ही श्रेणी में आता है।
       किसी भी प्रकार से की गई चोरी मनुष्य का चैन छीन लेती है। अपना सुख व चैन बनाए रखने के लिए हमेशा अपने सारे हिसाब-किताब साफ रखें।
      आत्मोत्थान के लिए अपने कर्मों को स्वच्छ रखना बहुत आवश्यक है। जहाँ तक हो सके समाज व दुनिया से छुपकर अपराध करने के स्थान पर स्वयं को पाक-साफ रखने का यत्न करें। अपनी अंतस के द्वारा दिखाए सन्मार्ग पर चलने का यत्न करके अपने बच्चों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें