शनिवार, 6 दिसंबर 2014

अन्तरात्मा की आवाज

अन्तरात्मा (आत्मा) की आवाज़ के बारे में हम सब ने सुना है। सोचने की बात यह है कि आखिर आत्मा की आवाज़ है क्या? इस विषय में कहा जा सकता है कि इसे केवल हम ही सुन सकते हैं। हमारे पास बैठा हमारा कोई प्रिय या मित्र तक भी नहीं सुन सकता। यह आवाज़ कहीं बाहर से नहीं आती बल्कि हमारे अंत:करण से ही आती है। जैसे हम अपनों से बात करके उसे गुप्त रखते हैं ताकि उसकी सिक्रेसी बनी रहे उसी तरह हमारे अंतस् से आने आवाज़ भी गुप्त रहे इसीलिए यह अन्य किसी को सुनाई नहीं देती।
         यह आवाज़ हमें कब जगाती है- यह विचारणीय है। जब भी हम शुभ कार्य (घर-परिवार, समाज आदि के नियमानुसार कार्य) करते हैं तब हमारे मन में उत्साह होता है, खुशी होती है। इसका अर्थ है कि हमारा किया जाने वाला कार्य करणीय है अर्थात् करने योग्य है। ये वे कार्य हैं जो हमें मानसिक शान्ति व चैन की जिन्दगी प्रदान करते हैं।
       इसके विपरीत जिस कार्य को करते समय हमारे मन में उत्साह नहीं होता, हमारा मन बैचेन होता है तो वह निश्चित ही अकरणीय(न करने योग्य) कार्य है। घर-परिवार, समाज आदि के नियमों के विरूद्ध किए जाने वाले कार्य हैं।
           मन में होने वाली उथल-पुथल को गहराई से समझने पर स्वयं ही हम ज्ञात कर सकते हैं कि हमें कौन-से कार्य करने चाहिए और किन्हें छोड़ना चाहिए। यदि बार-बार हम इस आवाज़ को अनसुना करते हैं तो एक समय ऐसा आता है जब उसे सुन ही नहीं पाते। वह अपना चेतावनी देने का कोई मौका नहीं छोड़ती बस हम ही उससे अनजान बन जाते हैं।
       यदि हम अपनी आत्मा की आवाज़ सुनकर कार्य करेंगे  तब हम वास्तव में सफलता की सीढ़ियाँ चढेंगे और हमारा मन प्रफुल्लित रहेगा, उत्साहित रहेगा। यदि हम आत्मा की आवाज़ के विपरीत कार्य करेंगे तो हमारा मन हमें कचोटेगा, हम निरूत्साहित रहेंगे। हम कैसा जीवन जीना चाहते हैं इसका निर्णय हमें स्वयं करना है।   इसलिए हमें अपने मन की, अपनी अन्तरात्मा की आवाज़ को सुनकर उसके अनुसार कार्य करना चाहिए।

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