गुरुवार, 15 मई 2025

सृष्टि नियम से चलती

सृष्टि नियम से चलती

ईश्वर निर्मित यह सृष्टि आदिकाल से ही अपने नियमानुसार चलती है। उसके इस क्रम में कहीं कोई चूक की कोई सम्भावना नहीं है। न वहॉं किसी प्रकार का कोई आलस्य दिखाई देता है और न ही हम इन्सानों की तरह इन नियमों की अवहेलना की जाती है। सम्पूर्ण प्रकृति अपने नियम से चलती है। कोई उसे न जगाता है और न ही उसे कोई चेतावनी देता है। सूर्य, चन्द्र आदि समस्त ग्रह-नक्षत्र, वायु,  नदियाँ-सागर, पेड़-पौधे आदि सभी अपने नियत नियमों का पालन अबाध गति से करते हैं।    
            एक मनुष्य ही ऐसी रचना है जो सभी नियमों को ताक पर रखने की आदी है। उसे कोई चिन्ता नहीं। उसकी बला से दुनिया भाड़ में जाए। वह तो लापरवाह है, मस्त है। जो होगा देखा जाएगा वाला उसका रवैया सचमुच कष्टदायक है। वह देश, धर्म, समाज और घर-परिवार के नियमों को अपनी सुविधानुसार मानता है। उसे यह चिन्ता नहीं कि उसके ऐसे आचरण का परिणाम क्या होगा? वह तो बहुत प्रसन्न होकर कहता है कि मैं किसी नियम को मानने को लिए बाध्य नहीं हूॅं।
        इसे हम इस प्रकार समझते हैं कि यदि सूर्य हम मनुष्यों की भॉंति यह सोचने लग जाए कि अरबों-खरबों वर्षों से मेरा वही एक बोरिंग नियम है। प्रात:काल पूर्व दिशा से उदय होना और सायंकाल को पश्चिम दिशा में अस्त हो जाना। सम्पूर्ण संसार को सारा दिन गरमी और प्रकाश देते रहो। अब मैं बहुत थक गया हूँ। चलो थोड़े दिन का अवकाश लेकर छुट्टियॉं मनाने किसी हिल स्टेशन पर अथवा विदेश चला जाता हूॅं। कल्पना कीजिए यदि ऐसा हो जाए तो क्या होगा? ब्रह्माण्ड में सब अंधकारमय हो जाएगा और सारी व्यवस्था चरमरा जाएगी। 
           इसी प्रकार यदि जल अपने को समेट ले, इसकी कल्पना करना ही कठिन है। जल के बिना चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाएगी। एक मिनट के लिए भी जल बिना जीवन नहीं चल सकेगा। संसार में जल के न रहने की स्थिति में सभी जीव-जन्तु तड़प-तड़प मर जाऍंगे। इसका कारण यही है कि न तो खाने के लिए अन्न, सब्जियॉं, फल मिलेंगे और न पीने के लिए जल उपलब्ध हो सकेगा। इस तरह दुनिया का अस्तित्व ही समाप्त होने के कगार पर आ जाएगा। 
            एवंविध वायु भी हड़ताल पर चली जाए कि कितने ही समय से प्रतिदिन चौबिसों घण्टे बिना आराम किए बहते-बहते बस मैं थक गई हूॅं। मुझे भी कभी तो विश्राम चाहिए। क्या वायु को बिना जीवन की कल्पना हम कर सकते हैं? नहीं न, अगर कुछ पल के लिए ही वायु अवकाश पर चली जाए तो सम्पूर्ण संसार का वायु के बिना अस्तित्व निस्सन्देह समाप्त हो जाएगा। इसी तरह अन्य प्राकृतिक पदार्थों का भी हम विशलेषण कर सकते हैं।
         हम देखते हैं कि प्रकृति का हर कण, हर जर्रा हमारे लिए सुख-सुविधा जुटाता रहता है। परन्तु बड़े दुख की बात है कि मनुष्य हरपल अपनी मित्र प्रकृति से छेड़छाड़ करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की योजनाऍं बनाता रहता है। इसीलिए थोड़े-थोड़े समय के पश्चात हमें प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। कभी अकाल के रूप में, कभी भूकम्प के रूप में, कभी बाढ़ के रूप में, कभी अतिवृष्टि के रूप में और कभी अनावृष्टि के रूप में हम अपनी मूर्खतापूर्ण व्यवहार के कारण कष्ट भोगते रहते हैं। 
          इसी कड़ी में मैं यह जोड़ना चाहती हूँ कि तभी हमें पर्यावरण जैसी समस्याओं पर विवाद करना पड़ता है। हम बड़ी-बड़ी डींगे हॉंकते है और विस्तृत योजनाऍं बनाते रहते हैं। परन्तु वास्तविकता के धरातल पर उन पर अमल करने का प्रयास ही नहीं करते। यही कारण है कि हम लोग प्रकृति से छेड़छाड़ करने में बहुत गर्व का अनुभव करते हैं। तभी हम विभिन्न प्रकार के रोगों को निमन्त्रण देकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का कार्य करते हैं। फिर पश्चाताप करते हैं।
          इस चर्चा का उद्देश्य यही है कि शायद हम मानवों को समय रहते सद् बुद्धि आ जाए। हम प्रकृति के समान अपने लिए बनाए गए नियमों का पालन बिना हठधर्मिता के प्रसन्नतापूर्वक कर सकें। अब हम सबको मिलकर यह तय करना है कि हम प्रकृति से मित्रता करेंगे या शत्रुता निभाऍंगे। इसी प्रकार यह भी विचारणीय है कि हम भी अपने जीवन को नियमानुसार चलाऍंगे और भविष्य में आने वाली दुखों-परेशानियों से दूर रहने का यथासम्भव प्रयत्न करेंगे।
चन्द्र प्रभा सूद 

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