सोमवार, 5 मई 2025

हर वस्तु की अपनी उपादेयता

हर वस्तु की अपनी उपादेयता 

मनुष्य के जीवन में हर वस्तु का अपना एक स्थान व उपादेयता होती है। उसे छोटी-छोटी वस्तुओं की भी आवश्यकता होती है और बड़ी-बड़ी वस्तुओं की भी जरूरत होती है। इसलिए किसी छोटी-से-छोटी वस्तु की भी कभी अवहेलना नहीं करनी चाहिए। पता नहीं कब किस वस्तु की उसे आवश्यकता पड़ जाए। हो सकता है कि उसके बिना हमारा कोई सामान अधूरा रह जाए और हम संकट में फॅंस जाऍं। फिर तो बड़ी समस्या हो सकती है।
          रहीम जी ने इसी बात को बड़े सुन्दर शब्दों में उकेरा है -
      रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजै डारि।
      जहॉं काम आवै सुई, कहा करै तरवारि।।
अर्थात् रहीम जी कहते हैं कि बड़ों को देखकर छोटों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। जहाँ सुई काम आती है, वहाँ तलवार काम नहीं करती। कहने का तात्पर्य यही है कि हर चीज का अपना-अपना उपयोग होता है।
        यह दोहा हमें सिखाता है कि हमें कभी भी किसी को छोटा या कम महत्वपूर्ण समझकर तिरस्कृत नहीं करना चाहिए, क्योंकि हर चीज और हर व्यक्ति का अपना महत्व होता है और हर स्थिति में हर चीज का उपयोग होता है। सुई और तलवार दोनों का अपना-अपना महत्व है। हम देखते हैं कि वस्त्रों की सिलाई के लिए हमेशा सुई का प्रयोग किया जाता हैं वहाँ तलवार का प्रयोग नहीं कर सकते। सी प्रकार युद्ध में तलवार का प्रयोग होगा, सुई का नहीं। अतः यह अन्तर समझना बहुत आवश्यक हो जाता है। अगर ऐसी मूर्खता करने की सोचेंगे तो जग में हँसी का पात्र बनेंगे।
           सामाजिक सद्भाव, एकता व धार्मिक सौहार्द का सन्देश देने वाले सुप्रसिद्ध कवि एवं महान समाज सुधारक सन्त कबीरदास जी ने इस विषय में बहुत सटीक कहा है -
      तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय।
       कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।।
अर्थात् कभी भी किसी को तुच्छ नहीं समझना चाहिए। जिस प्रकार पॉंवो में पड़ा एक छोटा-सा तिनका भी उड़कर जब आँख में चला जाता है तो वह भी आँख में गहरा घाव कर देता है।
            दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि तिनके जैसी तुच्छ चीज है, उसे हम फूँक मारकर हवा में उड़ा देते हैं। उसका कोई भी मूल्य हमारी नजर में नहीं होता। पर जब यही तिनका हमारी आँख में पड़ जाता है तो बड़ा कष्ट देता है। तब कितने समय तक आँख में लाली बनी रहती रहती है, उसमें असहनीय पीड़ा होने लगती है। हमें बहुत समय तक उपचार  स्वरूप ऑंखों में दवाई डालनी पड़ जाती है। तब जाकर कहीं वह नार्मल हो पाती है और हमें आराम मिलता है।
          हर वस्तु चाहे वह छोटी हो या बड़ी उसका अपना महत्त्व होता है। एक वस्तु के होते हुए हम दूसरी वस्तु को नजरअंदाज करने की मूर्खता नहीं कर सकते। हमें घर-परिवार में सभी वस्तुओं की आवश्यकता होती है। किसी एक के भी जरूरत के समय न होने पर हम परेशान हो जाते हैं। जो सामने पड़ता है उसी पर हम झल्लाने लगते हैं, चीखने और चिल्लाने लगते हैं। जब तक आवश्यक वस्तु को हम जुटा नहीं लेते हमें चैन से नहीं बैठ पाते हैं। हम बैचेन बने रहते हैं।
           मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसका हर प्रकार के लोगों से वास्ता पड़ता रहता है। मनुष्य अपने जीवन में यह घमण्ड करके कभी नहीं रह सकता कि वह सबसे श्रेष्ठ है, उसे किसी भी दूसरे व्यक्ति की आवश्यकता जीवन में नहीं पड़ेगी। अपने जीवन में मिलने वाले हर प्रकार के लोगों की भी हमें आवश्यकता होती है। अगर हम यही सोचते रहेंगे फलॉं व्यक्ति बड़ा है केवल वही हमारे काम का है और अमुक व्यक्ति छोटा है तो हमें उसकी जरूरत क्योंकर पड़ने लगी? तो हम गलत सोचते हैं। 
           घर में कामवाली या नौकर के बिना हम एक दिन बिताने में असहाय अनुभव करते हैं। इसी तरह ड्राइवर, धोबी, माली, प्लम्बर, इलेक्ट्रिशियन, मिस्त्री आदि के बिना भी जिन्दगी नरक बन जाती है। इन सबकी समय-समय पर आवश्यकता हमें पड़ती रहती है। चाहे कोई स्वयं को कितना ही बड़ा धन्ना सेठ क्यों न समझे, समय पड़ने पर वह इन सबके बिना असहाय महसूस करता है। उसके काम अटक जाते हैं।
           मात्र केवल बड़े लोगों से दोस्ती करेंगे और छोटों का तिरस्कार करेंगे तो जीवन दुष्वार हो जाएगा। यही मानकर चलिए कि जीवन में हमें सबकी आवश्यकता होती है। इसलिए छोटे लोगों को भी उतना ही सम्मान दें। उन्हें अपने पैर की जूती की तरह न समझें।
चन्द्र प्रभा सूद 

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