मृत्यु के चिह्न
हर मनुष्य को अपने विषय में जानने की उत्सुकता होती है। वह अपने जीवन के सभी उतार-चढ़ाव को जानना, समझना चाहता है। इसी प्रकार वह अपनी मृत्यु के विषय में भी सब कुछ जान लेना चाहता है। इसलिए जब भी मौका मिलता है, वह अपना हाथ आगे बढ़ाकर सारी जानकारी जुटाना चाहता है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हम इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि यह मानवीय स्वभाव है। इसके लिए वह ज्योतिषियों के पास भी जाता है। अपनी जन्म पत्रिका बनवाता है।
आज हम यह चर्चा करेंगे कि मृत्यु का समय किस प्रकार जाना जा सकता है। यानी अब हमारा इस संसार में कितना समय बचा है। हमारे महान ग्रन्थों में इस विषय पर प्रकाश डाला गया है। शरीर के विभिन्न अंगों के कार्य करने में असमर्थ हो जाने पर ज्ञात किया जा सकता है कि हमारी कितनी आयु शेष बची है।
'त्रिशिखब्रह्मनोपनिषद्' के मन्त्र 120 से 126 में बताया गया है कि मनुष्य के किन-किन अंगों के कार्य न करने पर उसकी आयु कितनी शेष बच जाती है? उसके लिए उन्होंने कुछ चिह्न बताए हैं जो निम्नलिखित हैं -
अंगुष्ठादिसवावयवस्फुरनदशनेरपि।
अरिष्टैरजीवितस्यापि जानियात्क्षयमात्मन:।।
अर्थात् अँगूठे आदि अवयवों में स्फुरण न हो, तो जीवन का अन्त समझना चाहिए। यह जानकर मनुष्य को मोक्ष के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
ज्ञात्वा यतेत कैवलयप्राप्तये योगवित्तय:।
पादांगुष्ठे करंगुष्ठे स्फुरणं यस्य न श्रुति:।।
तस्य संवत्सरादूर्ध्वं जीवितव्यक्षयो भवेत्।।
मणिबन्धे तथा गुल्फे स्फुरणं यस्य नास्ति।।
अर्थात् जिसके हाथों और पैरों के अंगूठों में स्फुरण न हो तो मनुष्य के जीवन एक वर्ष में समाप्त हो जाता है। जब मनुष्य के (मणिबन्ध) कलाई और (गुल्फ) टखने का स्फुरण समाप्त हो जाए तब मनुष्य छह मास तक जीवित रहता है।
षष्णमासवधिरेतस्य जीवितस्य स्थितिर्भवेत्।
कर्णस्फुरणं यस्य तस्य त्रैमासिकी स्थिति:।।
अर्थात् जब मनुष्य के कर्ण(कान) में स्फुरण न हो तो तीन मास पश्चात मृत्यु हो जाती है।
कुक्षि मेहनपार्श्वे च स्फुरणानुपलम्भने।
मासावधिजीवित्सातु दर्शनेतदर्धस्य।।
अर्थात् कुक्षि और उपस्थेन्द्रिय में स्फुरण न हो तो मनुष्य जीवन की अवधि केवल एक मास की शेष बचती है। यदि नेत्रों में स्फुरण न हो तो पन्द्रह दिन का जीवन शेष बचता है।
आश्रिते जठरे द्वारे दिनानि दश जीवितम्।
ज्योति: खधोतवद्यस्य तदर्ध तस्य जीवितम्।।
अर्थात् यदि जठर द्वार पर स्फुरण न हो तो दस दिन ही मनुष्य का शेष रह जाता है। और यदि ज्योति जुगनू के समान हो जाए तो पाँच दिनों में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।
जिह्वाप्रादर्शने त्रीणि दिनानि स्थितिरात्मन:।
जवालायादर्शनान्ते मृत्युद्विदिने भवति ध्रुवम्।।
अर्थात् जिह्वा(जीभ) के न दिखाई देने पर तीन दिन में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। यदि ज्वाला न दिखाई दे तो निश्चित ही दो दिनों में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।
इस सम्पूर्ण समीक्षा का अर्थ यही है कि जब मनुष्य को अपने समक्ष ऐसे लक्षण प्रकट होने लगें, उस समय उसे लापरवाह नहीं होना चाहिए। उसे शीघ्रता से अपने सोचे हुए कार्यों को निपटा लेना चाहिए। ताकि अन्त समय में उसे पश्चाताप न करना पड़े। उसे सच्चे मन से विचार करना चाहिए और उसे अपना मन भगवद् भजन में लगाना चाहिए। अन्तिम समय में भी यदि वह संसार से विमुख होकर ईश्वर की ओर उन्मुख होता है तो भी उसका कुछ हद तक कल्याण सम्भव है।
इस मरणधर्मा संसार में मृत्यु अटल सत्य है। जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। मृत्यु से कोई भी संसारी जीव बच नहीं सकता। उसे बस अपने कर्मों की शुचिता की ओर ध्यान देना चाहिए।
यह भी सत्य है कि मृत्यु आने पर पल भर की भी मोहलत नहीं मिलती। उस समय मनुष्य चाहे कितनी प्रार्थना कर लें, अथवा मालिक के सामने गिड़गिड़ाए पर अपनी कमाई धन-दौलत के बदले भी वह जीवन का एक पल नहीं खरीद सकता। इसलिए अपना इहलोक और परलोक सुधारने के लिए उस मालिक का स्मरण अनवरत करते रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त और कोई चारा नहीं।
चन्द्र प्रभा सूद
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