रविवार, 25 मई 2025

अपने रहस्यों को प्रकट न करें

अपने रहस्यों को प्रकट न करें 

अपने रहस्यों को कभी दूसरों के समक्ष प्रकट नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से स्वयं की हानि होती है। दूसरे को उन्नति करते देखकर बहुत कम लोग हैं जो प्रसन्न होते हैं। आजकल प्रायः लोग एक-दूसरे की टाँग खींचने में ही व्यस्त रहते हैं। अपनी हानि भले ही हो जाए पर दूसरा आगे न बढ़े, यह घातक प्रवृत्ति पनपती जा रही है। इस स्वार्थ वृत्ति के कारण हम पिछड़ रहे हैं।
         'चाणक्यनीति:' में आचार्य चाणक्य ने कहा बहुत सुन्दर शब्दों में हमें बताया है - 
      मनसा चिन्तितं कार्यं वाचा नैव प्रकाशयेत् ।
     मन्त्रवत् रक्षयेद् गूढं कार्य चापि नियोजयेत् ।।
अर्थात् मन में सोचे हुए कार्य को मुख से बाहर नहीं निकालना चाहिए। मन्त्र के समान गुप्त रखकर उसकी रक्षा करनी चाहिए। गुप्त रखकर ही उस काम को करना भी चाहिए।
          इस श्लोक में कहा है अपने रहस्य या अपनी योजना की मन्त्र के समान रक्षा करनी चाहिए। वेद, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद आदि हमारे महान ग्रन्थ हैं। प्राचीन काल में श्रवण परम्परा के कारण वेदों को श्रुति ग्रन्थ कहते हैं। उस समय आज की भॉंति प्रिंटिंग की सुविधा नहीं थी। गुरु परम्परा से शिष्य वेदपाठ करके उन्हें कण्ठस्थ करते थे। इस पर भी वेद मन्त्रों की संख्या ज्ञात है। इसीलिए आचार्य चाणक्य ने मन्त्र के समान रहस्य की रक्षा करने के लिए कहा है।
        जी-तोड़ परिश्रम करके मनुष्य योजना बनाता है। यदि उस योजना का वह बिना हल्ला किए या शोर मचाए क्रियान्वयन कर ले तो उसमें सफलता प्राप्त कर सकता है। परन्तु यदि योजना को कार्य रूप में परिणत करने से पूर्व उसे सार्वजनिक कर दिया जाए तो हो सकता है कि मामूली-सा परिवर्तन करके कोई अन्य उस योजना का लाभ उठा ले। जिसने श्रम करके योजना बनायी है, वह ठगा हुआ महसूस करे और देखता ही रह जाए। ऐसा भी हो सकता है कि लाभ लेने के स्थान पर उसे हानि ही उठानी पड़ जाए। उस समय सिर धुनकर रोने का कोई लाभ नहीं होता। उस समय फिर वही स्थिति हो जाएगी- 
'अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।'
         अत: समझदारी इसी में है कि अपना कार्य चुपचाप करो। कार्य सफलतापूर्वक जब पूर्ण हो जाएगा तो बिन कहे ही सबको पता चल जाएगा कि अमुक व्यक्ति ने ऐसा कार्य किया है।
            यहॉं हम अपने देश भारत का उदाहरण लेते हैं। यदि पोखरण में परमाणु विस्फोट से पहले विश्व में चर्चा फैल जाती तो शायद विश्व के दबाव में आकर हमें यह कार्यक्रम रद्द करना पड़ जाता। शायद आज तक भी हम परमाणु सम्पन्न राष्ट्र न बन पाने का दुख मना रहे होते। शत्रु देश के चेलेंज का सामना करने के लिए विवश होते।
           इसी प्रकार राष्ट्रीय सुरक्षा की योजनाएँ यदि किसी भी तरह से शत्रु देश के हाथ लग जाएँ तो देश में असुरक्षा का वातावरण बन जाएगा। शत्रु देश उन सभी योजनाओं के सफल होने से पूर्व हमला करके देश को हर प्रकार से कमजोर बना सकता है। उस पर अपना आधिपत्य भी जमाकर उस देश को अपने अधीन कर सकता है।
            इसी प्रकार निष्ठुर आतंकवादी संगठन जन-साधारण के जान-माल की परवाह किए बिना गुपचुप होकर बड़े खुफिया तरीके से अपनी कुयोजनाओं को अंजाम देते हैं। उसमें सफल भी हो जाते हैं। अगर उनके रहस्य खुफिया एजेंसियों को, सी बी आई को, रॉ को या सरकार को पहले पता चल जाऍं तो उनके कुत्सित षडयन्त्र का पर्दाफाश हो सकता है। और फिर उन आतताइयों को मुँह की खानी पड़ सकती है।
             इसी प्रकार अपने मन के रहस्यों को भी किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। यदि अपने दुख किसी को विश्वस्त मानकर बताएँगे तो हो सकता है कि सामने तो वह आपके दुख में दुखी होने का ढोंग करे। परन्तु पीठ पीछे सबके सामने नमक-मिर्च लगाकर, चटकारे लेकर आपका उपहास करे। तब तो लोगों को चर्चा करने का एक अवसर मिल जाएगा।
          अपनी खुशी यदि बाँटना चाहेंगे तो लोग तब भी मजाक बनाएँगे और पीठ पीछे कहने से नहीं चूकेंगे कि जरा-सी सफलता क्या मिली इसके तो पैर ही जमीन पर नहीं पड़ रहे। पता नहीं अपने को क्या समझता है। यह बहुत ही घमण्डी होकर आसमान में उड़ने का प्रयास रहा है।
           अपनी योजनाओं को बनाने में सावधानी बरतना बहुत आवश्यक है। इसी प्रकार अपने मन के भावों को यथासम्भव प्रकट न किया जाए, यही सभी के लिए हितकार होता है। अपने-आप को सन्तुलित रखें और दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करते हुए आगे बढ़ते जाएँ।
चन्द्र प्रभा सूद 

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