गुरुवार, 1 मई 2025

हर स्थिति के लिए तैयार रहिए

हर स्थिति के लिए तैयार रहिए

मनुष्य जीवन में सदैव उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इसलिए उनका सामना करना उसकी विवशता है जाती है। घबरा कर अथवा परेशान होकर वह उनसे अपना मुॅंह नहीं मोड़ सकता। ये सब जीवन का एक भाग ही होते हैं। सदा अच्छा और मीठा हमारे हिस्से आए और कड़वा दूसरों के पास पहुॅंच जाए। ऐसा तो कभी हो नहीं सकता। यह सर्व विदित सत्य है कि मनुष्य को अपने जीवन में हर स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। उसके जीवन में उतार-चढ़ाव क्रम से आते रहते हैं। उसे अपनी परेशानियों से दो-दो हाथ करने से घबराना नहीं चाहिए।
          इसी सत्य की भाँति यह भी उतना ही सत्य है कि अच्छे समय में तो सभी मित्रों-सम्बन्धियों का सहयोग मिलता है। मनीषी कहते हैं कि मक्खियॉं गुड़ पर ही आती हैं। इस बात को यहॉं लिखने का उद्देश्य मात्र इतना है कि यदि मनुष्य सुखी व सम्पन्न है अथवा उसका व्यापार उड़ान पर है या वह ऊॅंचे पद पर कार्यरत हैं, उसके पास तब तो चाटुकारों की लाइन लग जाती है। लोग उसकी प्रशस्ति गाने लगते हैं। उसके आगे-पीछे घूमने लगते हैं। उसके सभी बन्धु-बान्धव, जान पहचान वाले, पड़ौसी आदि किसी बहाने से उसके घर आने लगते हैं और उपहार लाना भी नहीं भूलते।
          इसके विपरीत जब वह दुखी या परेशानी में होता है तो सबसे पहले उसके बन्धु-बान्धव उसका साथ छोड़ देते हैं। उसके मित्र और पड़ौसी भी कन्नी काटने लगते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं वह कुछ मॉंग न ले। कहीं उसकी सहायता न करनी पड़ जाए। मनीषी कहते हैं कि दुखों के आने पर मनुष्य का साया भी उसका साथ छोड़ देता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि परेशानी के समय जब अपना साया भी साथ छोड़ देता है, उस समय दूसरे लोगों से क्या शिकवा शिकायत करना? 
         ऐसे विपरीत समय में अपने पास यदि कुछ बचाया हुआ संचित धन होगा तो कष्ट का समय थोड़ी सुविधा से गुजर जाता है। तब किसी के सामने हाथ फैलाने की आवश्यकता ही नहीं होती। ऐसी अनचाही स्थितियों के लिए सबसे आवश्यक है कि धीरे-धीरे छोटी-छोटी बचत करके अपने धन को बचाया जाए। कहने का तात्पर्य है कि जितनी भी हमारी कमाई है उसमें से कुछ अंश आने वाले धूप-छाँव अर्थात् उत्कर्ष व अपकर्ष के समय के लिए बचाकर रखें। 
          वैसे तो हमारी जरूरतें हमेशा ही मुँह बाये खड़ी रहती हैं। न चाहते हुए भी अनचाहे खर्चे आकर हमारा बजट बिगाड़ देते हैं। फिर भी सभी समस्याओं से जूझते हुए मनुष्य को उनके सामने डटकर खड़े हो जाना चाहिए। हमारा प्रयास सदा यही होना चाहिए-
        ते ते पाँव पसारिये जेती लम्बी सौर।
अर्थात् मनुष्य के पास जितनी लम्बी चादर हो, उसे उतने ही पैर फैलाने चाहिएँ। अन्यथा उसके पैर चादर से बाहर निकल आते हैं।
         दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि अपने मित्रों, सम्बन्धियों अथवा पड़ौसियों आदि की होड़ करके जीवन को कष्टप्रद नहीं बनाना चाहिए। ईश्वर ने हमारे कर्मों के अनुसार हमें जितना दिया है, उसी में ही अपने जीवन की गाड़ी चलानी चाहिए और सन्तुष्ट रहने का प्रयास करना चाहिए। अन्यथा फिर इस संसार में खाली हाथ ही रह जाना पड़ता है। यानी यह तो जबरदस्ती कष्टों को न्योता देने वाली बात हो जाएगी। जहॉं तक हो सके ऐसी स्थिति से बचकर रहना चाहिए। अपने जीवन को अनावश्यक ही नरक नहीं बनाना चाहिए।
          कहते हैं न बूँद-बूँद से घट भर जाता है। इसी तरह जो भी थोड़ा-बहुत बचाऍंगे तो वह धीरे-धीरे इकट्ठा होकर हमारा सुरक्षा कवच बन जाएगा। इसके लिए  छोटी-छोटी बचत कर सकते हैं। बैंक में या डाकखाने में अपनी सुविधानुसार राशि की आर. डी. करवा सकते हैं। जब वह मैच्योर हो जाए तब उस राशि की एफ. डी. करवा सकते हैं। इस प्रकार धन बढ़ता रहता है। यह सबसे सुरक्षित तरीका है पैसा जोड़ने के लिए। अधिक ब्याज के लालच में अपने परिश्रम से कमाए धन को धूर्त या ठगी करने वाली कम्पनियों में निवेश करने से बचना ही श्रेयस्कर होता है।
            इस प्रकार अपने जीवन में सोच-विचार कर आगे कदम बढ़ाना चाहिए। एवं विध हम स्वयं को सुखी और समृद्ध बना सकते हैं। यह धन हमारा सुख-दुख का साथी बनकर हमें हर समय साथ निभाता है। यह हमें आत्मविश्वास से भर देता है जिससे जीवन में सफलता हमारे कदम चूमने लगती है। इस तरह हम अपने को हर स्थिति के लिए तैयार कर सकते हैं। अत: रास्ते में आने कठिनाइयों से जूझने के अपने सफल प्रयासों की बदौलत हम प्रसन्नतापूर्वक अपने जीवन की नौका संसार सागर के पार तैरा सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद 

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