गुरुवार, 10 जुलाई 2025

अन्ना बना देता है शत्रु मोह

अन्धा बना देता शत्रु मोह

मोह मनुष्य का एक ऐसा शत्रु है जो आँखों के रहते हुए भी मानो उन पर पट्टी बाँधकर उसे अन्धा बना देता है। वैसे मनीषी कहते हैं कि मनुष्य को मोह का गुलाम नहीं बनना चाहिए। उसे मोह का त्याग करना चाहिए। मोह के वशीभूत होकर मनुष्य अत्याचार और अनाचार तक कर बैठता है। मोह के कारण उसकी विवेकी बुद्धि कुण्ठित हो जाती है। तब वह कुछ भी समझने-बूझने की स्थिति में नहीं रहता। वह सच और झूठ की पहचान करने में असमर्थ हो जाता है।
               मोह सृष्टि को चलाने के लिए एक सीमा तक आवश्यक है। अगर यह मोह न हो तो सन्तान का पालन-पोषण नहीं हो सकता। माता-पिता का सन्तान के प्रति मोह ही होता है जिसके कारण न वे उसे स्वयं से कभी दूर जाने देना चाहते हैं और न ही कभी उससे दूर जाना ही नहीं चाहते। चाहे सन्तान उन पर कितना ही क्रोध करे अथवा अपमानित करे। या दुर्भाग्य है कि इस सबको नगण्य करते हुए जूते खाकर भी उस नालायक सन्तान से अलग नहीं होना चाहते। घर-परिवार में सामंजस्य स्थापित करना और एक-दूसरे की परवाह करने में भी कठिनाई होती।
              मोह तब तक मान्य है जब तक वह पैर की बेड़ी न बने। पारिवारिक मोह यदि सामंजस्य के लिए हो तो वह परिवार की शक्ति बनता है। इसे हम एक-दूसरे की परवाह या चिन्ता का नाम भी दे सकते हैं। इसे हम बहुत बड़ी उपलब्धि कह सकते हैं कि परिवार एकजुट है। जिन परिवारों में माता-पिता और बच्चे एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं, वहॉं पर सुख-समृद्धि और खुशियों का निवास होता है। परन्तु जिन घरों में स्थितियॉं विपरीत होती हैं, वहॉं पर सारे प्रयत्न विफल हो जाते हैं।
               इसके विपरीत कई बार माता-पिता मोह के कारण अत्यधिक लाड़-प्यार में बच्चों को बचपन में बिगाड़ देते हैं। ऐसे बच्चे बड़े होकर स्वच्छन्द हो जाते हैं और कुमार्गगामी हो जाते हैं। ये बच्चे अपने घर-परिवार के लिए सिरदर्द बन जाते हैं और समाज के लिए अभिशाप। उस समय माता-पिता उन्हें दुत्कारते हैं और अपने भाग्य को कोसते हैं। तब तक पानी सिर से ऊपर हो जाता है। बच्चों से मोह होना स्वाभाविक है परन्तु उनके जीवन के साथ खिलवाड़ करना उचित नहीं है।
              सोशल मीडिया, समाचार पत्र व टीवी ऐसे बच्चों के कुकर्मों को उजागर करते रहते हैं जिनके माता-पिता उच्च पदों पर आसीन हैं अथवा बड़े-बड़े व्यापारी हैं या सम्भ्रान्त कुल से सम्बन्ध रखते हैं। ये वही बच्चे होते हैं जिन्हें अतिमोह के कारण उनके माता-पिता बचपन में ही बिगाड़ देते हैं। उनकी जायज व नाजायज माँगों को न कहने के बजाय बिना परिणाम सोचे पूरा करते हैं। यही बच्चे बड़े होकर देश व समाज विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं। अतिमोह का शिकार ये मासूम बच्चे समाज के अपराधी बन जाते हैं।
               यदि उन्हें बचपन में सही दिशानिर्देश मिला होता तो वे निश्चित ही अन्य बच्चों की भाँति सभ्य समाज का हिस्सा होते उसकी नफरत का नहीं। कच्ची मिट्टी के समान इन बच्चों को उनके ही अपने माता-पिता जी का जंजाल बना देते हैं। ये बच्चे बड़े होकर जब उसी प्रकार व्यवहार करते हैं तो माता-पिता उन्हें सही रास्ते पर लाना चाहते हैं। जो आदतें बचपन में पक जाती हैं, उन्हें बदलना बहुत कठिन हो जाता है। यदि अतिमोह का त्याग करके अपने बच्चों को अनुशासित किया जाता और अच्छे संस्कार दिए जाते तो निश्चित ही वे समाज में उदाहरण बन जाते।
              ऐसे बिगड़ैल बच्चे एक आयु के पश्चात माता-पिता की पहुँच से बहुत दूर निकल जाते हैं। तब उन्हें वापिस लौटा कर लाना नामुमकिन तो नहीं पर कठिन अवश्य हो जाता है। समय रहते यदि माता-पिता चेत जाते तो बच्चे यूॅं हर जगह तिरस्कृत न होते। ऐसे बच्चों के साथ कोई मित्रता नहीं करना चाहता। आस-पड़ोस के लोग, उनके बन्धु-बान्धव और उनके अपने परिवारी जन उन्हें अपने घर और बच्चों से दूर रखना चाहते हैं। उन्हें इस बात का डर होता है कि उन बच्चों की देखा-देखी उनके स्वयं के बच्चे न बिगड़ जाऍं।
               रामायण का उदाहरण लेते हैं। महारानी केकैयी ने अपने पुत्र भरत के अतिमोह के कारण भगवान राम को राज्य छोड़कर चौदह वर्षों तक जंगलों में भटकने के लिए विवश किया। इसका तात्पर्य यह था कि चौदह वर्षों का समय बहुत होता है। इस बीच प्रजा भगवान राम को भूल जाएगी। इससे उनके पुत्र भरत के राज्य करने का मार्ग निष्कंटक हो जाएगा। राजा दशरथ की मृत्यु हो जाने और भरत का राज्य लेने से इन्कार कर देने के कारण उनके परिवार पर मानो संकटों का पहाड़ ही टूट पड़ा।
                इसी प्रकार महाभारत काल में महाराज धृतराष्ट्र का अपने पुत्र दुर्योधन के अतिमोह के कारण उन्होंने अपने छोटे भाई महाराज पाण्डु के पुत्रों के साथ अन्याय किया। उन्हें उनका राज्य नहीं दिया। पाण्डवों और द्रौपदी पर दुर्योधन के द्वारा किए गए अनेक अत्याचारों को मूक समर्थन दिया। इन दुखदाई स्थितियों के कारण महाभारत का युद्ध हुआ जिसमें विनाश का भयावह ताण्डव हुआ। बहुत से योद्धा और विद्वान मारे गए। इसके नुकसान को हम भारतीय आज तक भुगत रहे हैं।
               हमें विचार करते हुए अपने नजरिए में थोड़ा-सा परिवर्तन लाना होगा ताकि हम अतिमोह से बच सकें। हम अज्ञानतावश मोह का पल्लू पकड़कर अपने बच्चों के जीवन से खिलवाड़ न करें बल्कि उन्हें अपनी स्वस्थ सांस्कृतिक विरासत सौंपे। तभी हमारी आने वाली पीढ़ियाँ ऐसी बनेंगी जिन पर हम, हमारा देश व समाज गर्व कर सकेगा।
चन्द्र प्रभा सूद 

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