अहंकार हमारा आंतरिक शत्रु
अहंकार हमारा आंतरिक शत्रु है। यह भी मनुष्य की विवेक शक्ति पर प्रहार करता है। मनुष्य अपने अहंकार में जब चूर हो जाता है तब सारी दुनिया उसे बौनी लगने लगती है। अपने अहं के कारण वह बाकी सारी दुनिया को अपने ठेंगे पर रख लेने का दम भरने लगता है। वह सारे संसार को आग लगा देने की बातें करने लगता है। ऐसे व्यक्ति के बच्चे भी अपने बड़े लोगों को देखकर वैसे ही बनने लगते हैं। उनकी सोच भी वैसी हो जाती है। यह वास्तव में दुखद स्थिति है कि उस समय उनकी सोच केवल मैं तक ही सीमित होकर रह जाती है।
मनुष्य अहंकार किस बात का करता है? यह एक ज्वलंत प्रश्न है। इस विषय पर विचार करने पर समझ आता है कि कुछ ऐसी विशेष बातें हैं जिन पर मनुष्य गर्व करता है। मनुष्य अपने पद या फिर सत्ता पर गर्व करता है। वह यह भूल जाता है कि जब यह पद उसके पास नहीं रहेगा तब उसे कोई नहीं पूछेगा। यह जो सलाम उसे मिलते हैं वे उसे नहीं बल्कि उसके पद को ठोके जाते हैं। इसलिए पद का भी गर्व नहीं करना चाहिए। न जाने कितने ऐसे और लोग होंगें जो उनके बराबर या और उनसे उच्च पद पर होंगे।
कुछ लोग अपनी सुन्दरता पर इतराते फिरते हैं। हालॉंकि यह भी तो सौन्दर्य स्थाई नहीं है। यदि सुन्दरता का अहं है तो वह आयु के ढलने पर स्वत: नष्ट हो जाती है जब चेहरे पर झुरियाँ आ जाती हैं। किसी एक्सीडेंट या अथवा चेचक जैसी किसी बिमारी या किसी अन्य किसी बिमारी के हो जाने पर सौन्दर्य नहीं रहता। उस समय चेहरे की चमक खो जाती है, वह पीला पड़ जाता है। इन सब कारणों से यह चेहरा खराब हो सकता है। सोचने वाली बात है कि मनुष्य इस सुन्दरता के लिए क्यों वहम पालता है, घमण्ड करता है?
धन-सम्पत्ति पर क्या गर्व करना? पैसा तो हाथ का मैल है। धन पर अहंकार करने वाले लोग भूल जाते हैं कि माया तो महाठगिनी है जो जब चाहे साथ छोड़ देती है। कब किसी रंक को राजा बना दे और कब राजा को रंक बना दे? कुछ पता नहीं कि जीवन में अगले पल क्या होने वाला है? प्राकृतिक अपदाऍं जैसे भूकम्प और बाढ़ आदि। पलक झपकते ही सब धराशाही हो जाता है। अतिवृष्टि और अनावृष्टि भी धन गॅंवाने के कारण बन जाते हैं। ईश्वर न करे यदि अपने देश का किसी अन्य देश से युद्ध हो जाए तब भी यह धन धरा रह जाता है। उस स्थिति में हम कहॉं जाऍंगे हमें नहीं पता? आवश्यक नहीं है कि तब धन-सम्पत्ति को समेटने का समय भी हमें मिल सके।
योग्य सन्तान का भी गर्व करने का क्या लाभ है? दुनिया में बहुत ही योग्य व आज्ञाकारी सन्ताने हैं जो अपने माता-पिता का ही अपितु नहीं पूरे विश्व का गौरव हैं। यह कोई नहीं जानता कि ये बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहेंगे भी या उन्हें छोड़कर किसी अन्य प्रदेश अथवा दूर परदेस में चले जाऍंगे। बच्चे माता-पिता के पास किसी भी कारण से आ नहीं पाते और बुजुर्ग होते माता-पिता उनके पास जा नहीं सकते। उस समय उनकी प्रतीक्षा करना ही एकमात्र सहारा बच जाता है।
मनुष्य को अपने बराबर अन्य कोई बुद्धिमान दिखाई ही नहीं देता। अपने अहं के कारण वह मनुष्य हर किसी को देख लेने का दम भरता है और दुनिया को आग लगा देने की गुस्ताखी करता है। हर कोई उसे कीड़े-मकौड़ों की तरह लगता हैं जिसे वह चुटकी बजाते ही मसलने की बात करता है। वह किसी दूसरे इन्सान की इज्जत करना तो जैसे भूल जाता है। विद्वत्ता भी अहंकार का विषय नहीं है क्योंकि ज्ञान किसी की बपौती नहीं। इस दुनिया में अक्षय ज्ञान का भण्डार है। हर व्यक्ति दुनिया के सम्पूर्ण ज्ञान का जानकार नहीं होता। उसका ज्ञान तो किसी विषय तक ही सीमित होता है। इसी प्रकार भक्ति व शक्ति आदि का भी मान अहंकार का विषय नहीं है। फिर इन सब भौतिक सम्बन्धों या उपलब्धियों पर अभिमान करना कदापि उचित नहीं है।
अहंकारी अपने आप को भगवान समझने लगता है व अपने वचन को पत्थर की लकीर। इसी अहंकार के रहते वह उस परमसत्ता भगवान को भी अपमानित करने से नहीं चूकता और अंततः उसे भी चुनौती दे डालता है।
हमारे बड़े-बुजुर्गों की कही बातों में सार अवश्य होता है। वे कहते हैं- 'घमंडी का सिर नीचा।' अहंकार करने वाला अपने आप को कितना भी महान समझ ले पर अंत में उसे अपमानित होना पड़ता है, शर्मिंदा होना पड़ता है। हम पीछे मुड़कर इतिहास की ओर दृष्टि डालते हैं। वाल्मीकि रामायण में प्रसंग आता है कि जब लव और कुश अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ लेते हैं तो भगवान राम के रक्षक उन्हें चुनौती देते हुए कहते हैं - '
शस्त्र बच्चों की भी गर्वोक्तियों को सहन नहीं करते।
कहने का तात्पर्य है कि अहंकार चाहे किसी बच्चे का हो या किसी बड़े का कभी स्वीकार नहीं किया जाता वह हमेशा ही विनाश का कारण बनता है। रावण, कंस और हिरण्यकश्यप जैसे बली अहंकारी काल के गाल में समा गए। दुर्योधन के अहंकार ने महाभारत का युद्ध करवाकर देश की अपूरणीय क्षति की। इतिहास गवाह है कि कितने बड़े-बड़े साम्राज्य इस अहंकार की भेंट चढ़ गए। उन्हें याद करने वाला कोई नहीं है।
विवेकशील व्यक्तियों को चाहिए कि वे वृथा अहंकार को छोड़कर ईश्वर से यह प्रार्थना करें कि वह इस शत्रु से हमें बचाए जिससे हमारा लोक व परलोक दोनों सुधर जाएँ।
चन्द्र प्रभा सूद
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