जीवन को सुखी और खुशहाल बनाना
अपने जीवन को सुखी और खुशहाल बनाना हम सबके लिए बहुत ही आवश्यक है। जीवन हमें एक ही बार मिलता है, बार-बार नहीं। इसी जीवनकाल में हम अपने सत्कर्मों के द्वारा जितनी अधिक सुगन्ध चारों ओर फैलाएँगे उतना ही उत्साहित होकर भरपूर जीवन जी सकेंगे। कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में दुखी या मायूस नहीं होना चाहता। परन्तु यदि जीवन में उदासीनता छा ही जाएगी तो जीवन भार बन जाता है। फिर इस भार को ढोना हमारी मजबूरी हो जाती है।
इस सत्य को कोई भी नहीं झुठला सकता कि जीवन भर मनुष्य अंगारों पर चलता रहता है। उसे अनेक दुखों-परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वास्तव में जीवन फूलों की सेज बिल्कुल भी नहीं है। यहॉं कदम-कदम पर काँटे चुभते रहते हैं जो मनुष्य को लहूलुहान करते रहते हैं। फिर भी इस जीवन को तो जीना ही पड़ता है। आत्महत्या करके इस जीवन को समाप्त कर देना, यह कोई हल नहीं हो सकता।
अपने जीवन को सफलता की ऊँचाई तक ले जाने के लिए बस थोड़ा-सा मन को संतुलित करना है। हर परिस्थिति में यानि सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय, निन्दा-प्रशंसा आदि इन विरोधी स्थितियों में सम रहना आवश्यक है। ये सब समय से सबके जीवन में आती रहती हैं। इनसे घबराने के बजाय डटकर मुकाबला करना चाहिए।
हमें पुरानी असफलताओं को सदा साथ लेकर नहीं चलना चाहिए बल्कि उनका विश्लेषण करना चाहिएकि हमसे कहाँ चूक हो गई? यदि इस दृष्टि से सोच-विचार करेंगे तब निश्चित ही इसका समाधान खोजना सरल हो सकेगा। उन गलतियों से शिक्षा लेकर हम आगे बढ़ सकते हैं। इसीलिए मनीषी कहते हैं-
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले
अथवा ऐसा भी कह सकते हैं-
रात गई बात गई
कहने का तात्पर्य मात्र यह है कि आने वाली प्रत्येक घटना चाहे वह सुखद हो अथवा दुखद, हमें जीवन में कुछ-न-कुछ अनुभव सिखाकर जाती है। कड़वी यादों को भूलाकर हमें अपने जीवन के अनुभव को समेटकर आगे बढ़ते रहना चाहिए। जीवन तो कभी रुकता नहीं, वह तो प्रवहमान है। समय अपनी गति से चलता रहता है। इसलिए अपने जीवन में आगे बढ़ जाना ही बुद्धिमानी है। यदि सारा समय हम दुखों और परेशानियों का पिष्टपेषण करते रहेंगे तो जीवन दुश्वार हो जाएगा।
घर-परिवार, बन्धु-बान्धवों और मित्रों के बीच कभी हुए आपसी मनमुटाव को बातचीत से हल करने का प्रयास करके स्वयं को सन्तुलित बनाए रखना हितकर होता है। हमेशा प्रयास यही करना चाहिए कि बातचीत का रास्ता कभी बन्द न हो। इस प्रकार करने से रिश्तों में आई दूरियाँ मिट जाएँगी और मन पर पड़ा बोझ हट जाएगा। फिर धीरे-धीरे स्थितियॉं सामान्य होने लगती हैं। मनो में विराजमान कटुताऍं दूर हो जाती हैं। यह स्थिति सभी के लिए प्रसन्नतावर्धक होती है।
एक साथ कई कार्य आरम्भ करके हड़बड़ी में नहीं रहना चाहिए। इस तरह सभी कार्य अधूरे रह जाते हैं और मन व्यथित होने लगता है। उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हम जिन्दगी में कुछ कर ही नहीं सकते। एक कार्य समाप्त करके दूसरे को हाथ में लेने से कार्य सन्तोषजनक तरीके से सम्पन्न होता है। इसी प्रकार जीवन में आई हुई समस्याओं को भी एक-एक करके सुलझा लेना चाहिए। अपनी दृष्टि पैनी रखनी चाहिए जिससे आने वाली समस्याओं का पूर्वाभास हो सके।
दूसरों से होड़, तुलना या मुकाबला नहीं करना चाहिए। यदि उनसे आगे रहेंगे तो बहुत अच्छा है अन्यथा मन में हीन भावना जन्म लेने लगती है। जो परिस्थितियाँ हमारे वश में नहीं हैं, उन्हें ईश्वर और समय पर छोड़ देना चाहिए। यह बात मन में अच्छी तरह बैठा लेनी चाहिए कि दुनिया में हर तरह के लोग हैं। उनके द्वारा किए गए दुर्व्यवहार से अपने मन को व्यथित नहीं करना चाहिए। दूसरे की सुख-समृद्धि से जलने वालों की कोई कमी नहीं है। उन ईर्ष्यालु लोगों को नजरंदाज करते हुए आगे बढ़ जाना चाहिए।
अपने अमूल्य समय को व्यर्थ न गॅंवाकर उसे रचनात्मक कार्यों में अथवा समाज सेवा में लगाना चाहिए। दूसरों का सहयोग करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। क्षमा को अपना मजबूत अस्त्र बना लेना चाहिए जिससे अपने मन को शान्ति बनी रह सके। दिन में कुछ पल आत्मचिन्तन के लिए अवश्य रखने चाहिए जिससे अपनी गलतियों को दूर करके अपने अन्तस में सद् गुणों का समावेश किया जा सके। सबसे मुख्य बात यह है कि ईश्वर को धन्यवाद देना कभी नहीं भूलना चाहिए क्योंकि वही हमारा सच्चा हितैषी है। सांसारिक रिश्ते-नाते हमसे मुँह मोड़ सकते हैं और साथ छोड़ सकते पर वह हमारा हर स्थिति में सहायक रहता है। हमारा हाथ थामकर हमें हमारे लक्ष्य तक ले जाता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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