शनिवार, 26 जुलाई 2025

दीनबन्धु बनें

दीनबन्धु बनें 

दीनबन्धु एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ है गरीबों का दोस्त अथवा दुखी जनों का मित्र। दीनबन्धु शब्द का प्रयोग प्रायः भगवान के एक नाम के रूप में किया जाता है। ईश्वर गरीबों और जरूरतमन्दों के लिए दयालु और सहायक है। दीनबन्धु हमें बहुत प्रिय है पर हम लोग दीनबन्धु नहीं बनना चाहते। हम चाहते हैं कि कोई और दीनबन्धु बन जाए तो बहुत हमारे लिए बहुत अच्छा होगा। हम यह सोचते हैं कि दीनबन्धु तो हम ईश्वर को कहते हैं, हमें उसके जैसा बिल्कुल नहीं बनना। हम जैसे भी हैं वैसे ही बहुत अच्छे हैं। 
            हमारी इस सोच को ग़लत सिद्ध करती है अंग्रेजी भाषा की यह उक्ति करती है - 
        charity begins at home.
अर्थात् चैरिटी की शुरुआत अपने घर से ही होनी चाहिए।
           चैरिटी का अर्थ है दान देना, परोपकार या भलाई के लिए काम करना। सभी लोग यही सोचते हैं कि चैरेटी तो की जाए पर उसकी शुरुआत पड़ौसी के घर से होनी चाहिए, मेरे घर से नहीं। हम लोगों की सोच बड़ी विचित्र है। हर व्यक्ति सोचता है कि मैं अपनी कमाई को व्यर्थ ही दूसरों पर क्यों लुटाऊँ? समाज की भलाई करने का ठेका क्या मैंने ही लिया हुआ है? दूसरे शब्दों में कहें तो यह कि अन्य लोग परोपकार के कार्य करें तो बहुत अच्छी बात है पर खून-पसीने से कमाई हुई अपने पल्ले की दमड़ी भी खर्च नहीं होनी चाहिए।
              दुखियों-पीड़ितों से हम तथाकथित तौर पर बहुत अधिक सहानुभूति रखते हैं। उनके लिए सभाएँ-गोष्ठियाँ करते हैं। बड़े-बड़े पेपर भी उनके लिए निकालते हैं। भाषण देते हैं और रैलियाँ भी निकालते हैं। कितने ही शोध ग्रन्थ हमने उनके कष्टों व निदान के लिए लिख दिए हैं। आए दिन संसद में भी उनके उत्थान के लिए चर्चाएँ होती रहती हैं। अर्थशास्त्री उनके आँकड़े जुटाने हेतु माथापच्ची करते रहते हैं। हमारा मन भी उन बेचारों के लिए सचमुच पिघलता रहता है।
             जब किसी की सहायता करते का समय आता है तब हम बगलें झाँकने लगते हैं। पढ़ने और सुनने में कितना अच्छा लगता है कि परोपकार के कार्य हमें करने चाहिए। अपनी कमाई का दस प्रतिशत अंश हमें दानादि में व्यय करने चाहिए। हम इतने समझदार हैं कि इस सत्य को किनारे कर देते हैं जो कहता है कि मनुष्य सामाजिक प्राणी है और समाज से बहुत कुछ लेता रहता है। इसलिए उसका नैतिक दायित्व बनता है कि वह समाज के हितार्थ अपनी सामर्थ्य के अनुसार जो भी योगदान दे सकता है, उसे प्रसन्नतापूर्वक अपना सहयोग करना चाहिए।
            यदि सभी लोग अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार थोड़ा-थोड़ा सहयोग करें तो समाज के बहुत से असहाय लोगों का भला हो सकता है। उनकी व उनके परिवार की देखभाल हो सकती है। हमारे देश में अनेकों लोग धन-सम्पत्ति से समृद्ध हैं। यदि वे चाहें तो किसी बस्ती या गाँव को गोद लें सकते हैं। वहाँ हर प्रकार की सुविधाऍं जुटा सकते हैं। वहॉं बच्चों के लिए शिक्षा, पुस्तकें, स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाऍं, भोजन और स्वच्छ जल जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं।
           चैरिटी में धन, समय, आवश्यक वस्तुओं आदि का दान शामिल हो सकता है। कुछ धर्मार्थ संस्थाऍं बेघर लोगों को भोजन और आश्रय प्रदान करती हैं। शिक्षा के लिए कुछ लोग धन जुटाते हैं और जरूरतमन्द बच्चों को छात्रवृत्ति प्रदान करते हैं। कुछ स्वयंसेवी अस्पतालों में मरीजों की देखभाल निःशुल्क करते हैं। कुछ व्यक्ति स्थानीय खाद्य बैंक में दान करते हैं। बहुत से संस्थान भोजन का वितरण करते हैं। बहुत से लोग इन संगठनों को यथाशक्ति दान देते हैं। आमतौर पर गैर-लाभकारी संगठन लाभ कमाने के बजाय अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए काम करते हैं।
            इस प्रकार कुछ समाजसेवी संस्थाऍं इस कार्य को बहुत कुशलता से निभा रही हैं। सरकार भी इसके लिए कटिबद्ध है। परन्तु फिर भी अभी इन दीन-हीन अवस्था के लोगों के लिए और भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। ईश्वर ने यदि हमें समर्थ बनाया है तो हम लोगों को अपने सच्चे मन से दीनबन्धु बनकर सहयोग करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद 

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