घर मनुष्य की पहचान
मनुष्य जिस घर में रहता है, उसी से उसकी पहचान होती है। उसके घर में की गई सजावट को देखकर ही उस व्यक्ति विशेष के बारे में दूसरे लोग अपनी राय बनाते हैं। उस घर की कलात्मक साज-सज्जा को देखकर यह ज्ञात कर सकते हैं कि वहाँ रहने वाले लोग किस रुचि के हैं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि उस घर में रहने वाले लोग प्राचीन वस्तुओं के प्रेमी हैं या कलाकार हैं अथवा वहाँ अपनी समृद्धि के अनुसार मूल्यवान वस्तुओं से सजावट की गई है।
कुछ लोग समृद्ध होते हैं परन्तु अपने घर में फरनीचर आदि वस्तुओं की सार सम्हाल नहीं करते बल्कि उन्हें यहॉं वहॉं कबाड़ की तरह रख देते हैं। घर यदि सुन्दर बना हुआ है तो भी वहाँ जाने पर मन को अच्छा नहीं लगता। वे घर जहाँ चारों ओर गन्दगी का साम्राज्य होता है। घर का सामान इधर-उधर बिखरा रहता है। वहाँ घुसते ही ऐसा लगता है कि कहाँ आ गए? ऐसे घर में नकारात्मक ऊर्जा विद्यमान रहती है। वहाँ के परिवेश में दम घुटने लगता है और नाक-भौंह सिकुड़ने लगती हैं। मन में उदासीनता बसने लगती है और शीघ्र ही वहॉं से चलने की इच्छा होने लगती है।
इसके विपरीत कुछ लोगों के घर शीशे की तरह चमकते रहते हैं। हर वस्तु वहॉं पर व्यवस्थित रहती है। ऐसे घर की गृहस्वामिनी की प्रशंसा करने का मन करता है। वहाँ जाने पर मन प्रसन्न होता है। इसलिए वहॉं पर कुछ अधिक समय बैठने का मन करता है। ऐसे घरों में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
केवल ईंट पत्थरों से बना मकान घर नहीं कहलाता। कंक्रीट का बना वह बेजान घर तब तक ईंट-पत्थर का घर कहलाता है जब तक वहाँ आपसी सौहार्द व मेलजोल न हो। मकान घर तभी बनता है जब परिवार के सभी लोग एक मुट्ठी की तरह आपस में मिलजुल कर रहें। छिटपुट बातें हो भी जाएँ तो उन्हें नजरअंदाज करके प्यार से रहें। माता-पिता की सभी आवश्यकताओं को बच्चे हमेशा पूरा करते हों। कभी दुख-तकलीफ होने पर, उनका ध्यान रखते हों। बहु सास-ससुर को यथोचित सम्मान देने वाली हो और वह समयानुसार कहने से पहले ही उनकी सारी सुविधाओं को जुटाए।
घर में बड़े-बजुर्ग अपने अहं को छोड़कर मनमानी न करके सदा अपने बच्चों से सामंजस्य बनाकर चलने वाले हों। उनकी हर समय आलोचना करने के बजाय उनके सिर पर आशीर्वाद भरा हाथ रखने वाले हों। बच्चों की समस्याओं को बड़े-बूढ़े समझकर उनका मजाक बनाने के स्थान पर उनका साथ दें। तभी तो उस घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इन घरों में रहने वाले सदस्य एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करते हैं व उनकी बात का मान रखते हैं। ऐसे घरों के लोगों के विषय में गुरु नानक देव जी की यह उक्ति सटीक है-
'एक ने कही दूजे ने मानी नानक कहे दोनों ज्ञानी।'
इस प्रकार का माहौल यदि घर में हो तो वह घर धरती पर स्वर्ग के समान होता है। हो सकता है घर में भौतिक समृद्धि शायद कम हो पर सुख-शान्ति बनी रहती है।
इसके विपरीत यदि उस घर में जितने सदस्य हैं, वे सब यदि एक-दूसरे की जड़ें काटने में लगे रहते हों। एक का मुँह पूर्व में हो और दूसरे का पश्चिम में हो। हर रोज, हर समय उस घर में किसी का चीखना-चिल्लाना चलता रहता हो। कोई किसी की शक्ल देखना पसन्द न करता हो। ऐसा घर नरक से भी बदतर होता है। जहाँ सदा कलह-क्लेश व अशान्ति रहती है, ऐसे घर में कितनी भी भौतिक समृद्धि हो सुकून नहीं दे सकती। ऐसा घर नरक के समान होता है। वहॉं कोई भी व्यक्ति आना पसन्द नहीं करता।
यदि हम चाहते हैं कि हमारी सन्तान आज्ञाकारी हो तो हमें अपने बड़ों के प्रति वैसा ही व्यवहार रखना होगा। कितनी भी सुख-समृद्धि हो, घर का सुख-चैन नहीं खरीद सकती। उसके लिए स्वयं की भावनाओं पर नियन्त्रण रखना बहुत ही आवश्यक होता है। तभी घर के बच्चे भी बड़ों की देखा-देखी उसी की ही अनुपालना करेंगे। उस समय उन्हें सिखाना नहीं पड़ेगा। अब यह हमारे हाथ में है कि हम अपने घर को स्वर्ग के समान सुन्दर बनाना चाहते हैं अथवा नरक के समान कष्ट भोगते हुए जिन्दगी के दिन गिनना चाहते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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