रविवार, 1 मार्च 2015

ईश्वर का प्रिय

ईश्वर को हम सब अपने-अपने तरीके से स्मरण करते हैं। कुछ कर्मकाण्ड से, कुछ पूजा-पाठ करके, कुछ जप-तप करके और कुछ व्रत आदि के द्वारा प्रभु को पाने का यत्न करते हैं। हम अपनी भक्ति में सफल हो पाते हैं या नहीं, हम नहीं जानते। केवल वह मालिक ही जानता है कि उसे हमारी आराधना में सच्चाई दिखाई देती है या मात्र प्रदर्शन।
         ईश्वर की उपासना यदि ईमानदारी व सच्चे मन से की जाए तभी उसे भाती है। प्राणीमात्र के प्रति मन में सद् भावना न हो तो मनुष्य उसका प्रिय नहीं बनता। हम अपने बच्चों व बन्धु-बान्धवों से प्यार करते हैं। उनके सुख-दुख में हर्ष-शोक का अनुभव करते हैं। उसी प्रकार वह मालिक चाहता है कि उसकी बनाई सृष्टि से भी हम प्यार करें।
         हम में से बहुत से लोग ऐसे भी होंगे जो अपने-आपको सबसे बड़ा भक्त मानते हैं। वे दावा करते हैं कि वे ईश्वर के बहुत पास हैं या यूँ कहें कि वे स्वयं को ईश्वर ही मानने लगते हैं। दूसरों पर अत्याचार करके अपना अहम तुष्ट करते हैं।
       ऐसी कथा सुनी थी कि नारद जी को बड़ा अभिमान था कि वे प्रभु के सबसे बड़े भक्त हैं। एक बार नारद जी भगवान के पास गए और कहा कि मुझसे बड़ा आपका कोई भक्त नहीं है। पर प्रभु ने उन्हें यह कहकर निराश किया कि वे सबसे बड़े भक्त नहीं बल्कि उनसे भी बड़ा भक्त कोई और है। नारद जी के पूछने पर उन्होंने गाँव में रहने वाले एक किसान के बारे में बताया। यह सुनकर नारद जी को अच्छा नहीं लगा, वे बहुत परेशान हो गए।
         नारद जी चल दिए उस परम भक्त से मिलने। वे जब उस किसान से मिले तो आश्चर्यचकित रह गए कि किसान दिन में सिर्फ तीन बार प्रभु को याद करता है। एक बार प्रातः खेत में जाते समय, दूसरा दिन में खाना खाते समय और तीसरी बार जब वह वापिस घर आता है।
        नारद जी को यह सब समझ नहीं आया कि दिन में केवल तीन बार प्रभु को याद करने वाला किसान उनसे बड़ा भक्त कैसे हो गया? यही प्रश्न उन्होंने प्रभु से किया। वे मुस्कुराए और तेल से भरा पात्र नारद जी को देते हुए बोले- 'जाओ पृथ्वी का चक्कर लगाकर आओ पर तेल की एक भी बूँद गिरनी नहीं चाहिए।'
        नारद जी भ्रमण कर प्रभु से प्रशंसा पाने की कामना से कार्य पूर्ण करने की चर्चा करने लगे। तब प्रभु ने पूछा इस कार्य को करते समय कितनी बार मुझे याद किया? नारद जी ने इंकार में सिर हिला दिया यह कहकर कि तेल पात्र से न गिरे बस इसी काम में लगा रहा।
        तब प्रभु ने उन्हें समझाया कि जो मुझे सच्चे मन से याद करता है और अपने काम को करते समय मेरा स्मरण करता है वही मुझे प्रिय होता है।
        मुख्य बात है कि ईश्वर मनुष्य की भावना को देखता है। दिखावे या रिश्वत वाली भावना को पसंद नहीं करता। वह हमारे अपने अंदर विद्ममान है। जब चाहो मन में झांको और उसे पा लो। ईश्वर को निश्छल, ईर्ष्या-द्वेष से रहित, सच्चे व ईमानदार लोग पसंद आते हैं। इसलिए हम अपने अंतस में जितना अधिक सद् गुणों का विस्तार करेंगे उतना ईश्वर के समीप जाएँगे।

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