रविवार, 8 मार्च 2015

ईश्वर की लीला

ईश्वर की लीला बड़ी विचित्र है जिसका हम अज्ञानी मनुष्य पार नहीं पा सकते। पल में वह क्या-से-क्या कर देता है? कुछ भी हमें समझ नहीं आता। वह हमें हैरान करता हुआ पल में ही राजा को रंक बना देता है व रंक को राजा। देखते-ही-देखते वह आलिशान भवनों को मटियामेट कर देता है। बड़ी-बड़ी सभ्यताओं को यूँ ही पलक झपकते नष्ट-भ्रष्ट कर देता है। उसकी माया वही जाने। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि कोई इसका भेद आजतक नहीं जान सका।
           आने वाली प्रातः राज्य प्राप्त करने वाले भगवान राम को रातोंरात जंगलों में भटकने के लिए भेज दिया। राजा हरिश्चन्द्र को श्मशान का रखवाला बना उनकी पत्नी व पुत्र को बिकवा दिया।
        आज जिनकी हम पूजा करते हैं उन स्वामी दयानन्द सरस्वती को अपने ही रसोइए से जहर पिलवा दिया। भगवान कहे जाने वाले ईसा मसीह को सूली पर टंगवा दिया।
         इस प्रकार हम नहीं जानते कि वह किसको भाग्यशाली बना दे। उसके सिर पर अपना वरद हस्त रख उसे इतिहास में अमर कर दे और सबके सिर-आँखों पर बिठा दे।
       सर्व विदित सत्य है कि रामायण के रचयिता आदिकवि वाल्मीकि अपने जीवन के पूर्वकाल में डाकू थे। ऋषियों को लूटने के लिए पकड़ा तो उन्होंने घर जाकर पूछने के लिए कहा की तुम्हारी इस पाप की कमाई में कौन-कौन भागीदार होगा। पत्नी-पुत्रादि परिवार जनों ने पाप की कमाई में बराबर के भागीदार होने से इंकार करते हुए उत्तर दिया कि तुम्हारा काम परिवार का पालन करना है। कैसे भी धन कमाओ हमें कोई मतलब नहीं। तुम अपने दुष्कर्मों को स्वयं भोगोगे, हम नहीं।
        इस घटना ने उनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया। साधना करते हुए वे अमर रामकथा के रचयिता बने। महर्षि वाल्मीकि व उनकी रचित रामायण दोनों ही  इस संसार में प्रसिद्ध हो गए।
        इसी प्रकार दुर्दान्त डाकू अंगुलीमाल को भी महात्मा बुद्ध की शरण में भेजकर महात्मा बना दिया।
         महाकवि कालिदास जैसे महामूर्ख को इतना विद्वान बना दिया कि वह आज भारत में ही नहीं पूरे विश्व में प्रसिद्ध व अनुकरणीय हैं। साँप को रस्सी समझकर पत्नी के पास पहुँचने वाले उस अंधप्रेमी तुलसीदास से रामचरितमानस लिखवाकर अमर कर दिया।
       उसके चमत्कारों का बखान करने लगें तो न जाने कितने जन्म बीत जाएँगे पर उसकी लीलाओं का, चमत्कारों का वर्णन समाप्त नहीं होगा।
        ऐसे उस महान प्रभु की शरण में जाने से ही सद् गति मिलती है। वह किसी का भी अहंकार सहन नहीं करता। रावण, हिरण्यकश्यप जैसे शक्तिशालियों की भी गर्वोक्तियाँ को सहन नहीं करता जो स्वयं को भगवान मानने लगे थे। उनको भी उसने नष्ट कर दिया।
        जितना विनम्र व जिज्ञासु बनकर हम उसकी शरण में जाएँगे उतना ही उसके हृदय में स्थान पाएँगे क्योंकि वह अपनी शरण में सच्चे मन से आए हुए जीवों को निराश नहीं करता। उसे केवल हमारे अंतस् के  भाव ही भाते हैं। दिखावे या प्रदर्शन से उसे हम नहीं प्राप्त कर सकते। वह कठोर परीक्षाएँ लेता है। जो उसकी कसौटी पर खरे उतरते हैं वे उसके प्रिय बनते हैं अन्य नहीं।

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