गुरुवार, 5 मार्च 2015

होली का पर्व

सामाजिक त्योहार होली हमें भाईचारे का संदेश देता है जिसको हम भूलते जा रहे हैं और अपनी-अपनी दुनिया में खोए रहना अधिक पसंद करते हैं। यह मिलजुल कर रहने की सीख देता है। हम एक-दूसरे को गुलाल लगाकर गले मिलते हैं। यह परंपरा मनोमालिन्य को दूर करती है व सबको मिलाने का कार्य करती है।
      कुछ वर्ष पहले तक एक सप्ताह पूर्व ही इस त्योहार को बच्चे मनाना शुरू कर देते थे। शहरों में यह त्योहार अब केवल रंग खेलने तक ही सीमित रह गया है परन्तु ग्रामीण इलाकों में आज भी उसी उल्लास से इस त्योहार को मनाया जाता है।
       वसंत ऋतु में चारों ओर रंग-बिरंगे फूल अपनी छटा बिखेरते हैं। यह समय हवा में भी फूलों की सुगंध फैलती है। हवा सुगंधित व शीतल होती है। ठंड का प्रकोप भी कम होने लगता है। ऐसे खुशगवार मौसम में त्योहार मनाने की मस्ती छा जाती है। यदि फूलों के अर्क से होली खेली जाए तो हर व्यक्ति खुशबू से सराबोर हो जाएगा।
       रंगों से होली खेलने से पूर्व रात्रि को पारंपरिक होलिका दहन किया जाता है जिसके फेरे लेकर मनोकामना पूर्ण करने का विधान है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। न जलने का वरदान प्राप्त बुआ होलिका जब परम ईश्वर भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर बैठती है तब वह जल जाती है और प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं होता।
        तांत्रिक लोग विशेष पूजा का विधान करते हैं। इन दिनों तंत्र-मंत्र का प्रयोग करने लोग नहीं चूकते। होली के त्योहार से लगभग पन्द्रह दिन पहले व एक सप्ताह बाद तक कोई भी शुभकार्य सम्पन्न नहीं किया जाता।
       इस दिन कुछ लोग भांग पीते हैं और कुछ शराब। ऐसा करके वे त्योहार के दिन रंग में भंग डालते हैं। हुड़दंग मचाने से त्योहार की गरिमा नष्ट होती है। इसे बचना हमारा नैतिक दायित्व है।
        इसके अतिरिक्त लोग पक्के रंगों से खेलते हैं जो साबुन रगड़ कर भी नहीं उतरता बल्कि कई दिनों तक त्योहार की याद ताजा करता है। कुछ लोग कीचड़ आदि से खेलते हैं जो गलत है। लोग टोलियों में घर से बाहर निकलकर त्योहार का लुत्फ उठाते हैं। बच्चे विभिन्न प्रकार की रंग-बिरंगी पिचकारियों व रंग या पानी भरे गुब्बारे फैंककर खूशी प्रकट करते हैं।
       ईको फ्रेंडली रंगों से अथवा रंगबिरंगे सुगंधित फूलों से ही होली खेलनी चाहिए। गंदगी को हमेशा ही नजरअंदाज करना चाहिए। वातावरण को दूषित न करके हमें बजाय आनन्द से सराबोर होना चाहिए। जोर-जोर से बजने वाले ढोल-डमाके इस त्योहार की रौनक में चार चाँद लगाते हैं।
       बरसाने की लट्ठमार होली भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में भी प्रसिद्ध है। आजकल टीवी इसकी कवरेज करता है। बहुत से ऐसे लोग हैं जो विशेष रूप से बरसाने जाकर इस उत्सव के दर्शक बनते हैं और अपनी उपस्थिति को दर्ज करवाते हैं।
        घरों में अनेक प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं जिन्हें खाकर सभी लोग उत्साहित होते हैं तथा मित्रों-संबंधियों को दावत भी देते हैं।
          होली के इस पावन त्योहार पर अपने अंतस् की बुराइयों को दहन करना चाहिए और इसमें होने वाली बुराइयों को यदि हम दूर कर सकें तभी इस त्योहार की सार्थकता है।

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