रविवार, 15 मार्च 2015

शत्रु अहंकार

अहंकार हमारा आंतरिक शत्रु है। यह भी मनुष्य की विवेक शक्ति पर प्रहार करता है। मनुष्य अपने अहंकार में इतना चूर हो जाता है कि बाकी सारी दुनिया को अपने ठेंगे पर रख लेने का दम भरता है। उसकी सोच केवल मैं तक सीमित हो जाती है।
       उसे अपने बराबर अन्य कोई बुद्धिमान दिखाई ही नहीं देता। अपने अहम के कारण वह मनुष्य हर किसी को देख लेने का दम भरता है और दुनिया को आग लगा देने की गुस्ताखी करता है। हर कोई उसे कीड़े-मकौड़ों की तरह लगता हैं जिसे वह चुटकी बजाते ही मसलने की बात करता है। वह किसी इंसान की इज्जत करना तो जैसे भूल जाता है।
        सोचने वाली बात है कि मनुष्य किस लिए घमंड करता है? यदि सुन्दरता का अहम है तो वह आयु ढलने पर स्वत: नष्ट हो जाती है जब चेहरे पर झुरियाँ आ जाती हैं। अथवा चेचक जैसी बिमारी या किसी अन्य बिमारी हो जाने पर सौंदर्य नहीं रहता।
       धन-संपत्ति का क्या गर्व करना? वह तो हाथ का मैल है। वे भूल जाते हैं कि माया तो महाठगिनी है जो जब चाहे साथ छोड़ देती है। पद का भी गर्व नहीं करना चाहिए। न जाने कितने ऐसे और लोग होंगें जो उनके बराबर या और उनसे उच्च पद पर होंगे।
         योग्य संतान का भी क्या गर्व करना है? दुनिया में बहुत ही योग्य व आज्ञाकारी संताने हैं जो अपने माता-पिता नहीं पूरे विश्व का गौरव हैं।
        विद्वत्ता भी अहंकार का विषय नहीं है क्योंकि ज्ञान किसी की बपौती नहीं। इस दुनिया में अक्षय ज्ञान का भंडार है। हर व्यक्ति दुनिया का संपूर्ण ज्ञान का जानकार नहीं होता। उसका ज्ञान तो किसी विषय तक ही सीमित होता है। इसी प्रकार भक्ति  व शक्ति आदि का भी मान अहंकार का विषय नहीं है। फिर इन सब भौतिक संबधों या उपलब्धियों पर अभिमान करना उचित नहीं है।
          अहंकारी अपने आप को भगवान समझने लगता है व अपने वचन को पत्थर की लकीर। इसी अहंकार के रहते वह उस परमसत्ता भगवान को भी अपमानित करने से नहीं चूकता और अंततः उसे भी चुनौती दे डालता है।
        हमारे बड़े-बुजुर्गों की कही बातों में सार अवश्य होता है। वे कहते हैं- 'घमंडी का सिर नीचा।' अहंकार करने वाला अपने आप को कितना भी महान समझ ले पर अंत में उसे अपमानित होना पड़ता है, शर्मिंदा होना पड़ता है।
         हम पीछे मुड़कर इतिहास की ओर दृष्टि डालते हैं। वाल्मीकि रामायण में प्रसंग आता है कि जब लव और कुश अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ लेते हैं तो भगवान राम के रक्षक उन्हें चुनौती देते हुए कहते हैं- 'शस्त्र बच्चों की भी गर्वोक्तियों को सहन नहीं करते।'
        कहने का तात्पर्य है कि अहंकार चाहे किसी बच्चे का हो या किसी बड़े का कभी स्वीकार नहीं किया जाता वह हमेशा ही विनाश का कारण बनता है। रावण, कंस और हिरण्यकश्यप जैसे बली अहंकारी काल के गाल में समा गए।
        दुर्योधन के अहंकार ने महाभारत का युद्ध करवाकर देश की अपूरणीय क्षति की। इतिहास गवाह है कि कितने बड़े-बड़े साम्राज्य इस अहंकार की भेंट चढ़ गए। उन्हें याद करने वाला कोई नहीं है।
         विवेकशील व्यक्तियों को चाहिए कि वे वृथा अहंकार को छोड़कर ईश्वर से यह प्रार्थना करें कि वह इस शत्रु से हमें बचाए जिससे हमारा लोक व परलोक दोनों सुधर जाएँ।

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