शनिवार, 21 मार्च 2015

बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह

बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते हैं। उन्हें जैसा भी रूप हम देना चाहते हैं उन्हें उसी साँचे में ढालना पड़ता है। इसे हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि जैसा माता-पिता उन्हें बनाना चाहते हैं वैसे ही वे बन जाते हैं।
        बच्चा जब इस संसार में आँख खोलता है तभी से उसकी शिक्षा आरंभ हो जाती है। उसके दूध पीने, सूसू-पाटी आदि की ट्रेनिंग शुरु होती है। ज्यों-ज्यों बड़ा होने लगता है तब बैठना-उठना, खांन-पान चलना आदि सिखाया जाता है। फिर और बड़ा होने पर स्कूली शिक्षा दी जाती है। तो इस प्रकार बच्चा आयुपर्यन्त कुछ-न-कुछ सीखता रहता है।
       बच्चे को जैसा परिवेश अपने घर-परिवार में मिलता है वैसे ही वह बनता है। इसलिए माता-पिता को सबसे पहले स्वयं पर ध्यान देना आवश्यक है। ऐसा न हो कि बच्चा वह सब सीख ले जो हम उसे नहीं सीखाना चाहते। यदि उसे बचपन में सही दिशानिर्देश मिल जाए तो वे निश्चित ही सभ्य समाज का एक अटूट हिस्सा बनता है उसकी नफरत का नहीं।
          बच्चे की सबसे पहली पाठशाला उसका घर होता है। अपने घर में जैसा देखता है उसे ही ब्रह्म वाक्य मान लेता है। घर में उसे झूठ का व्यवहार दिखाई देता है तो उसे झूठ बोलने में बुरा नहीं लगता। इसी तरह जब घर में सबको एक-दूसरे से छिपाव-दुराव करते देखता है तो अपनी गलतियाँ छुपाने लगता है। घर में पीठ पीछे एक-दूसरे की बुराई सुनकर अपना उल्लू सीधा करना सीख जाता है।
       कई बार माता-पिता अत्यधिक लाड़-प्यार में बच्चों को बचपन में बिगाड़ देते हैं। ऐसे बच्चे बड़े होकर स्वच्छन्द हो जाते हैं और कुमार्गगामी हो जाते हैं। ये बच्चे घर-परिवार के लिए सिरदर्द बन जाते हैं और समाज के लिए अभिशाप।तब माता-पिता उन्हें दुत्कारते हैं व अपने भाग्य को कोसते हैं। तब तक पानी सिर से निकल जाता है।
        ऐसे बच्चे जो बच्चे किसी कारण से बचपन में बिगड़ जाते हैं वे माता-पिता की पहुँच से बहुत दूर निकल जाते हैं। तब उन्हें वापिस लौटाना नामुमकिन तो नहीं पर कठिन अवश्य हो जाता है।
        सोशल मीडिया, समाचार पत्र व टीवी ऐसे बच्चों के कुकर्मों को उजागर करते रहते हैं जिनके माता-पिता उच्च पदों पर आसीन हैं अथवा बड़े-बड़े व्यापारी हैं या संभ्रांत कुल के होते हैं। ये वही बच्चे होते हैं जिन्हें अतिमोह के कारण अनावश्यक लाड़-प्यार में माता-पिता बचपन में ही बिगाड़ देते हैं। उनकी जायज व नाजायज माँगों को न कहने के बजाय बिना परिणाम सोचे पूरा करते हैं। यही बच्चे बड़े होकर देश व समाज विरोधी गतिविधियों में कब लिप्त हो जाते हैं उन मासूम बच्चों को पता ही नहीं चलता और वे समाज के अपराधी बन जाते हैं।
         वास्तव में हमें अपने गिरेबान में झाँकने की आवश्यकता है। छोटा बच्चा अपने आसपास के माहौल को बड़ी बारीकी से देखता है। उससे बहुत कुछ सीखता है।
        यह बात हम सबको अवश्य याद रखनी चाहिए कि इस संसार में बच्चा जब जन्म लेता है तब वह मासूम होता है। इस दुनिया के छल प्रपंचो से अनजान होता है। तभी बच्चों को भन सच्चा कहते हैं। उन्हें छल-कपट के संस्कार हमीं देते हैं।
        उन भोले-भाले बच्चों पर हम अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का अनावश्यक दबाव न डाले तभी उनका चहुँमुखी विकास हो सकता है।

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