हम सभी भेड़चाल चलते हैं। सभी जानते हैं कि एक भेड़ जिधर चलती है उसके पीछे शेष भेड़े चल पड़ती हैं बिना जाने कि वह कहाँ जा रही है। वही हाल हम सभी का भी है। कारण बहुत स्पष्ट है कि अपने आस-पास के माहौल से हम बहुत शीघ्र प्रभावित हो जाते हैं। इसलिए परेशानियों का सामना करते रहते हैं।
आज हमारे पड़ौसी ने महंगी वाली नयी गाड़ी खरीदी है पर हमारे वाली कार उसकी गाड़ी के सामने पुरानी लगेगी। यह तो कोई बात नहीं हुई। उसकी सामर्थ्य थी उसने गाड़ी खरीद ली। इसमें तो कोई बड़ी बात नहीं। सभी लोग आपने साधनों के अनुसार उपयोगी वस्तुएँ खरीदते हैं। खुश होते हैं और उसका उपभोग करते हैं। पर हमारा क्या हम तो परेशान हो गए। हम उसके सुख में खुश नहीं हो सकते।
बस शुरु हो गया हमारे घर में कलह-क्लेश। घर के सभी सदस्य उठते-बैठते ठंडी आहें भरेंगे और अपने भाग्य को कोसते हुए व्यंग्य बाण छोड़ेंगे। फिर शुरु होगा जोड़-तोड़ का सिलसिला। चाहे हमें उसकी जरुरत हो या न हो, हमारे पास उसे खरीदने के साधन है अथवा नहीं। पर हम तो ऐसे हैं जो खरीद कर ही दम लेंगे। न हम अपनी होने वाली कटौतियों के बारे में सोचेंगे और न ही असुविधाओं के बारे में। बस दिनरात एक ही रट व आहें जो जीवन दूभर कर देती हैं। जरूरत होगी तो कर्ज लेकर ही हम अपने पड़ौसी को दिखा देंगे कि तू क्या चीज है हम भी कम नहीं।
हमारी यह एक नाक बेचारी है जो हर दूसरे दिन कट जाती है। अब हमारे घर भी पड़ौसी जितनी या उससे महंगी गाड़ी आ गई। अब तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं और हमारी छोटी-सी चढ़ने वाली नाक कटी नहीं बच गई बल्कि अब ऊँची हो गई। अपने इलाके में वाहवाही हो गई।
हम दूसरों के खुशी में खुश नहीं होते और न ही उनकी सुख को खुले दिल से स्वीकार करते हैं बल्कि ईर्ष्या में जलते हैं। उनका कुछ नहीं बिगड़ता पर हाँ, अपना खून अवश्य जलता है।
मैंने यह एक छोटा-सा उदाहरण प्रस्तुत किया है संकीर्ण मानसिकता का और हमारे द्वारा की जा रही भेड़चाल का। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जहाँ इन भौतिक वस्तुओं की पाने की ललक में न जाने कितने मासूमों के खून से होली खेली गई।
इन तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है। एक के बाद एक ये तृष्णाएँ हमारा सुख-चैन छीनकर हमें मानसिक रूप से बीमार बना देती हैं। हम भी सांसारिक प्रलोभनों में फंसकर दिन-रात मृगतृष्णा के पीछे भागते हुए थककर चूर हो जाते हैं और दुनिया में हंसी का पात्र बनते हैं।
इन वस्तुओं की होड़ हम करते हैं जो दुख का कारण हैं परन्तु सकारात्मक होड़ नहीं करते जो सुख-शांति का कारण हैं। हम यह होड़ नहीं करते कि हमारा पड़ोसी, मित्र या संबंधी परोपकार के कार्य करता है, दान देता है, भगवत भजन में व्यस्त रहता है, उसके बच्चे आज्ञाकारी हैं, वह सादा जीवन उच्च विचार का पोषक है, उसके घर में सुख-शांति है। जो इन सब उपलब्धियों से मालामाल हैं हम उन्हें मूर्ख समझकर उनका मजाक उड़ाते हैं। जबकि कुछ समय बीतने पर यही लोग दूसरों की ईर्ष्या का कारण बनते हैं। यदि समय रहते इन सबकी होड़ में जुट जाएँ तो अपने को धन्य कर सकते हैं और अपने जीवन को भेड़चाल के कारण भटकने से बचा सकते हैं।
शुक्रवार, 27 मार्च 2015
भेड़चाल
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