मंगलवार, 31 मार्च 2015

देवयज्ञ

देवयज्ञ पञ्च महायज्ञों में दूसरे स्थान पर है। देव शब्द का उच्चारण करते ही हमें उन देवताओं का स्मरण होने लगता है जिनकी हम उपासना करते हैं। इन देवों की पूजा-अर्चना हम नियमपूर्वक करते हैं। उस आराधना को हम ब्रह्मयज्ञ का नाम देते हैं।
       दिव्य गुणों से युक्त व्यक्तियों को हम देव कहते हैं। इसका यही अर्थ है सज्जनों की संगति करना। जो दयालु, परोपकारी, सहृदय व विनीत लोग होते हैं वे सज्जन कहलाते हैं। ये मनसा, वाचा और कर्मणा एक होते हैं। ऐसे लोगों की संगति करनी चाहिए। इनके संसर्ग से हमारा चतुर्मुखी विकास होता है, चारों दिशाओं में हमारा यश फैलता है और हम सफलता के सोपान चढ़ते जाते हैं। चाहे स्वार्थवश कहें अथवा स्वभाववश दिव्य जनों का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
      देवयज्ञ का अर्थ हम कर सकते हैं कि सभी देवों को उनका यथायोग्य भाग (हिस्सा या अंश) दिया जाए। प्रकृति के कहे जाने वाले ये सभी देव हम पर उपकार करते हैं। इनसे हम प्रतिदिन कुछ-न-कुछ ग्रहण करते रहते हैं। यदि ये हमारी तरह स्वार्थी हो जाएँ तो यह ब्रह्माण्ड नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा। हम सभी जीवों का जीवन पल में ही समाप्त हो जाएगा।
       इसी बात को हम दूसरे शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं कि मनुष्य को जिससे भय लगता है अथवा जिससे उसका स्वार्थ सिद्ध होता है वह उसकी ही पूजा करता है। इसी कारण ही शायद देवपूजा का विधान किया गया होगा।
        सूर्य हमें प्रकाश व ताप देता है, इन्द्र यानि बादल जिनके बरसने से हमें खाने के लिए अनाज व पीने के लिए जल मिलता है। वायु जीवनदायिनी शक्ति है। उसके बिना एक पल भी जी नहीं सकते। वृक्ष हमें फल व छाया देते हैं। इसी प्रकार प्रकृति के सभी अवयव हमारे जीवन के लिए उपयोगी हैं। इसीलिए हम इन सभी को देव कहते हैं।
        भौतिक जीवन में भी यदि कोई हम पर उपकार करता है या हमारी सहायता करता है तो हम उसे धन्यवाद देते है। यदि उसका हम पर अधिक उपकार हो तो हम धन्यवाद के साथ-साथ उसे उपहार भी देते हैं। इसी प्रकार हमें इन देवों के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए।
       हमारा अपना एक परिवेश है जिसमें हम बदबू व गंदगी फैलाते हैं। इन सबको उनका भाग यज्ञ-हवन करके दे सकते हैं। हमारे शास्त्रों में बहुत से यज्ञों का विधान है। हम सोशल मीडिया पर देखते हैँ और समाचार पत्रों में पढ़ते हैं कि आजकल हवन का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। लोग कभी मैच में टीम इंडिया के जीतने, कभी किसी के स्वास्थ्य लाभ के लिए और भी किसी-न-किसी बहाने हवन करते रहते हैं।
       यज्ञ की में जिस सामग्री का उपयोग किया जाता है उसकी सुगन्ध व यज्ञ का धुआँ बहुत दूर तक पर्यावरण में फैलते हैं। यह वैज्ञानिक सत्य है कि इससे वातावरण शुद्ध होता है व कई प्रकार के रोगाणु नष्ट होते हैं। इसी प्रकार धूप व अगरबत्ती जलाकर घर व बाहर का शुद्धिकरण किया जा सकता है।
          यह देवयज्ञ केवल हमारे अपने लिए व अपने घर लिए ही नहीं अपितु सम्पूर्ण सृष्टि के लिए आवश्यक है। अतः पर्यावरण  को शुद्ध करने और अपने जीवन को सुखी व समृद्ध बनाने के लिए हम सबको देवयज्ञ करना चाहिए।

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