गुरुवार, 12 मार्च 2015

क्रोध से बचें

हमारे अंतस में विराजमान शत्रुओं में क्रोध प्रमुख शत्रु है। इसे गले लगाने से हमें सदा ही परहेज करना चाहिए।
      इस क्रोध के विषय में चेतावनी देते हुए शास्त्र कहता है-
क्रोधो मूलमनर्थानां क्रोध: संसारबन्धनम्।
धर्मक्षयकर: क्रोध: तस्मात् क्रोधं विवर्जयेत्॥
        अर्थात् क्रोध सभी बुराइयों की जड़ है। संसार में बंधन कारण है, धर्म का नाश करने वाला है। इसलिए इसका त्याग करना चाहिए।
       क्रोध हमारा ऐसा शत्रु है जो विवेक यानि हमारी सोचने-समझने की शक्ति को नष्ट करता है। आम भाषा में हम कहते हैं कि क्रोध में इंसान पागल हो जाता है। उसे स्वयं यह ज्ञान नहीं होता कि वह क्या करने जा रहा है? सहन शक्ति से क्रोध जब परे हो जाता है तब मनुष्य जानवर की तरह व्यवहार करने लगता है। वह उस समय हत्या या आत्महत्या जैसे जघन्य अपराध भी कर बैठता है।
       हत्या जैसे अपराध की सजा अकेला वह नहीं भोगता बल्कि उसका निरपराध परिवार भी इस कष्ट का भागीदार बनता है। इसका पश्चाताप उसे मृत्यु पर्यन्त ही करना पड़ता है। आत्महत्या करके वह तो मुक्त हो जाता है पर अपनों का जीवन दुरुह कर देता है।
         ऐसे क्रोधी को कोई भी पसंद नहीं करता। सभी उससे किनारा करने में ही अपनी भलाई मानते हैं और यही सोचते हैं कि बर्र के छत्ते में कौन हाथ डाले? लोग उससे बात करने या संबंध रखना नहीं चाहते उससे किनारा ही करना चाहते हैं।
         महर्षि परशुराम इतने विद्वान और शक्तिशाली थे परंतु अपने क्रोधी स्वभाव के कारण उन्हें समाज में यथोचित स्थान नहीं मिला। इसी क्रोध के वशीभूत होकर उन्होंने अनेक बार क्षत्रियों का संहार किया। रामायण में शिव धनुष के टूटने पर राजा जनक के दरबार में लक्षमण और परशुराम का संवाद हम सबको याद है।
      ऋषि दुर्वासा का नाम यदि आज भी किसी प्रसंग में आ जाए तो लोगों के मन में उनके प्रति श्रद्धा का भाव नहीं जागता।
         जितना अधिक इस शत्रु को अपने गले लगाएँगे उतना ही घर, परिवार, मित्रों व समाज से कटते जाएँगे। हमारे सामने मुँह पर शायद कोई भी अपनी प्रतिक्रिया न करे पर पीठ पीछे हमारा उपहास करेंगे।
      ऐसे क्रोधी लोगों के साथ दोस्ती स्वार्थ के कारण ही होती है। जब तक स्वार्थों की पूर्ति होती रहती है तब तक उनकी मित्रता बनी रहती है। उसके बाद सब अपने-अपने रास्ते चले जाते हैं। और तो और उनके अपने परिवार जन भी उनकी इस आदत से परेशान रहते हैं। वे इसी यत्न में लगे रहते हैं कि किसी भी प्रकार से उनका यह क्रोधी स्वभाव शांत स्वभाव में बदल जाए।
        जब क्रोध आए तो उसे शांत करने के लिए कुछ कारगर नुस्खे हैं। कहते हैं मन में सौ तक उल्टी गिनती गिन सकते हैं। हम इसके अतिरिक्त ठंडा पानी पी सकतें हैं। सबसे अच्छा उपाय है ईश्वर का नाम मन में स्मरण करें। इस प्रकार अभ्यास करने से हम क्रोध को वश में कर सकते हैं।
        जब तक हम अपने इस शत्रु क्रोध पर नियन्त्रण करने का यत्न नहीं करेंगे तब तक न हमें सुख-चैन मिलेगा और न ही हम कभी किसीके प्रिय बनेंगे।

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