बुधवार, 18 मार्च 2015

माँ की गोद

माँ की गोद ऐसा स्थान है जहाँ हर बच्चा स्वयं को सबसे अधिक सुरक्षित समझता है। उसे वहाँ हर प्रकार का सुकून मिलता है। वह कितने भी कष्ट में क्यों न हो बस माँ की गोद मिल गई तो मानो उसे स्वर्ग मिल गया। फिर उससे बढ़कर उसे और कुछ भी नहीं चाहिए।
        बच्चा थका हारा  जब घर में घुसता है तो वह माँ की तलाश करता है। वह न दिखे तो रोने-चिल्लाने लगता है।उस समय उसे ऐसा लगता है कि मानो उसका सब कुछ खो गया है। इसी प्रकार जब आस-पड़ोस, मुहल्ले या विद्यालय में कहीं लड़ाई करके या पिटकर आता है तो माँ की गोद में सिर रखकर सुबककर अपनी बेचारगी पर रोना चाहता है। वह जानता है कि उसकी पीड़ा को उसके बिना बताए ही माँ खुद समझ जाएगी, उसका मजाक नहीं उड़ाएगी बल्कि उसे सांत्वना देगी और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरेगी।
       वह अपनी माँ को भली-भाँति जानता है। उसे पता है कि घर-परिवार में जब बड़े बच्चों से प्रताड़ित किया जाएगा तब माँ उनका लिहाज नहीं करेगी बल्कि उन्हें डांट-फटकार लगाकर उसका पक्ष लेगी। इसी प्रकार पिता या घर के किसी अन्य बड़े व्यक्ति से डांट-मार खाकर माँ की गोद में सुख व चैन पाता है।
         बच्चे की पूरी दुनिया उसकी माँ होती है। उसका संसार माँ की गोद में ही समाप्त होती है। उसके बड़े होने पर जब उसकी प्राथमिकताएँ बदलने लगती हैं तब भी माँ के बिना वह अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता। उसका रुठना-मानना व जिद्द करना उसकी माँ के दम पर ही होता है। जो बच्चे अपनी जरूरतों के बारे में अपने पापा से नहीं कह सकते वे माँ से ही उन्हें पूरी करवाते हैं।
        आज इस भौतिक युग की आपाधापी के इस जीवन में कुछ बच्चे माता-पिता के साथ रहते हैं परन्तु कुछ अन्य बच्चों को आजीविका की मजबूरी में घर से दूर देश-परदेश में रहना पड़ता है।
     वे सभी रिश्तों को भूल सकते हैं पर माँ की ममता और उसके निस्वार्थ प्रेम को कदापि नहीं। मृत्यु पर्यन्त मनुष्य अपनी माँ को याद करता रहता है। माँ के इस संसार से विदा हो जाने पर भी प्रतिदिन कितनी ही बार अपनी माँ को 'हाय माँ' कहकर याद करता है।
        यह सांसारिक माँ पर हम इतना प्यार व दुलार लुटाती है और बिन माँगे अपने बच्चों की सारी आवश्यकताएँ पूरी करती है। हम उस माँ को कैसे भूल जाते हैं जिसने हमें इस संसार में पैदा किया है। हमें उस मालिक विषय में सोचने की फुर्सत भी नहीं मिलती।
        उस प्रभु की गोद में विश्राम करने का विचार हमारे मन में भी नहीं आता। हमारी वह जगत् जननी माँ सदा ही इस प्रतीक्षा में  रहती है कि कब उसके बच्चे बाँहे पसारे हुए उसके पास आएँगे और उसकी गोद में सुख व चैन पाएँगे। हम इतने अहसान फरामोश बच्चे हैं जो उसकी सुध बिसरा बैठते हैं।                     
             इस संसार में आँखें खोलने के बाद हम धीरे-धीरे इसी दुनिया के होकर रह जाते हैं। उस माँ से दूरी बना लेते हैं और भौतिक रिश्ते-नातों में मस्त हो जाते हैं। स्वार्थों के कारण उसे अपने से दूर कर देते हैं। जब हम उस माँ का दिल दुखाते हैं, तो फिर हम सुखी नहीं हो सकते, कष्ट तो हमारे पास आना ही है।
        इस जीवन में स्वयं को कष्टों से बचाने और अपने लिए सुख-शांति की तलाश करने के लिए तो उस प्रभु की, उस जगत् जननी माँ की महान गोद की शरण लेनी चाहिए। वह खुले दिल से हमारी प्रतीक्षा में बाट जोहती है।

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