मंगलवार, 17 मार्च 2015

आँख मिचौली

आओ सखी आज हम आँख मिचौली खेलें
चंदा आ गया खेलने और आ गए तारे सारे
किसकी होगी बारी और कौन ढूँढेगा पहले
यह क्या? भाई कोई आगे बढ़ आओ पहले

चंदा ने समझी मुश्किल और लगा था कहने
मुँह न ताको भाई तुम क्यों लगे खेल में डरने
भाई खेल-खेल कर यूँ खोज निराली कर ले
खुशी मिलेगी तुझे अनोखी ये रस तू चख ले

चंदा ने फिर आँखें मूँदी लगा दस तक गिनने
ये सारे साथी चले ढूँढने ओट को भागे-भागे
हम सब हैं तैयार चलो कहीं-कहीं पर छुपने
भगदड़ मच गई चारों ओर चले हैं जब छुपने

चमकना छोड़ गगन के तारे सारे भागे छुपने
नहीं सूझ रहा है जाना सबको कौन ठिकाने
हो रही है धक्का-मुक्की जगह सुरक्षित पाने
देखो सब-के-सब छिपने को कैसे मचल रहे

चंदा अब आँखें खोले लगा आवाज लगाने
आ रहा हूँ बस मैं तुमको देखो खेल दिखाने
उसको पकड़ लूँगा जो दिख जाएगा सामने
चौकस हो लो एकबार फिर मत आना कहने

आया चंदा आया देखो हम सबको पकड़ने
सब छिप देखें इस खेल के मूक दर्शक बने
घूमता-घूमता चंदा आया उसने तारे पकड़े
बस अब खेल का पलटा पासा हमने देखे

फिर वही खेल दुबारा मिलके सब ही खेले
जिन्दगी भी हरपल चलती रहती यूँही ऐसे
कभी जीत है कभी हार है सयाने यह कहते
ईश्वर का धन्यवाद करके चलो आगे बढ़ते

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