सोमवार, 30 मार्च 2015

ब्रह्मयज्ञ

ब्रह्मयज्ञ का स्थान हमारे पञ्च महायज्ञों में सबसे पहले आता है। जिस प्रकार नए दिन का उदय ब्रह्ममुहूर्त से होता है उसी प्रकार मनुष्य के दिन का आरंभ ब्रह्म की पूजा-अर्चना से करने का विधान है।
       प्रातःकाल जागने के पश्चात अपने नित्य-नैमित्तिक कार्यों से निपटकर ईश्वर की आराधना करनी चाहिए। इससे मन में उत्साह व स्फूर्ति बने रहते हैं। मनुष्य को आत्मिक बल मिलता है।
        ईश्वर को स्मरण करना उसे धन्यवाद देना हमारा दायित्व है। अपने बच्चों को जिन्हें हमने जन्म दिया है उनसे यह उम्मीद करते हैं कि वे हमारे प्रति समर्पित रहें, कहीं भी रहें हमारा ध्यान रखें। इसी तरह इस संसार का जनक वह भी हमसे अपेक्षा करता है कि नित्य प्रातः जागने के बाद हम उसका ध्यान करें।
       ईश्वर की आराधना किस विधि से की जाए यह हर मनुष्य का व्यक्तिगत मामला है। विश्व में अनेक धर्म हैं और उन सबके अनुयायी भी बहुत हैं। वे सभी हमें उस ईश्वर तक जाने का मार्ग बताते हैं। यह व्यक्ति विशेष की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह किस धर्म के सिद्धान्तों को मानता है। वह निराकार की उपासना करता है या साकार की। वह सगुण ब्रह्म की नवधा भक्ति करता है या निराकार ब्रह्म के निमित्त संध्या-वंदन करता है। इन सब विधियों को न करके वह केवल नाम जाप करता है।
       किसी भी पद्धति से उस मालिक की उपासना करिए वह प्रसन्न हो जाता है। बहुधा लोग कहते हैं पूजा-प्रार्थना में मन नहीं लगता। मन लगे या न लगे केवल श्रद्धापूर्वक अपने नियम का पालन करना हमारा कर्त्तव्य है उसे निभाते रहिए शेष सब उस पर छोड़ दीजिए। धीरे-धीरे हमारा आराधना में मन रमने लगेगा।
        ईश्वर अपने प्रति मनुष्य की बस सच्ची श्रद्धा व विश्वास चाहता है और कुछ नहीं। सच्ची लगन लगनी चाहिए बस।
         वह अपनी उपासना का प्रदर्शन कदापि नहीं चाहता। यदि सच्चे मन से उसे पुकारा जाए तो वह हमारी सभी मनोकामनाओं को हमारे कर्मानुसार यथासमय अवश्य पूरा करता है। वह हम लोगों की तरह स्वार्थी नही है। वह मुक्त हाथों से भर-भरकर नेमते हमें बाँटता है और कभी जताता नहीं। हमें मात्र अपनी पात्रता सिद्ध करनी है
      वैसे तो सोते-जागते, उठते-बैठते, अपने कर्त्तव्यों का पालन करते समय यदि उस मालिक को स्मरण करते रहें तो मन में सात्विक वृत्तियों का उदय होता है। कुमार्ग पर भटकने से मनुष्य का  बचाव हो जाता है। मैं अपनी बहनों महिलाओं से कहना चाहती हूँ कि यदि हो सके तो भोजन बनाते समय प्रभु के नाम का स्मरण करती रहें। आप स्वयं अनुभव करेंगी कि उस भोजन का स्वाद कई गुणा बढ़ गया है।
      अपने सद् ग्रन्थों(धार्मिक ग्रन्थों) का अध्ययन भी करना चाहिए। उनका मनन करके अपने जीवन की दिशा निर्धारित करनी चाहिए। इससे जीवन को चलाने का सही मार्गदर्शन मिलता है।
        ईश्वर का प्रातः नियमपूर्वक स्मरण ब्रह्म यज्ञ कहलाता है। इस यज्ञ को हम सभी करते हैं पर शायद इस विशेष नाम से नहीं। हम चौबीसों घंटे आपाधापी का जीवन जीते हैं। वह समय हमारा नहीं होता बल्कि वह घर-परिवार, बन्धु-बान्धवों व रोटी कमाने के चक्करों का होता है। हमारा अपना समय वही होता है जब हम अपने कुछ पल उस मालिक को याद करने में व्यतीत करते हैं। उस समय का सुकून हमारे पूरे दिन का शक्ति स्त्रोत बनता है।
       इसलिए यदि हम अपने इस नश्वर मानव जीवन को सफल बनाकर अपने अंतिम लक्ष्य मोक्ष की ओर कदम बढ़ाना  चाहते हैं तो श्रद्धापूर्वक सच्चे मन से उसकी शरण में जाना होगा तभी ब्रह्मयज्ञ करना सार्थक होगा।

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